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तुम आग हो ये मैं जानता हूँ ,

तुम आग हो ये मैं जानता हूँ ,
फिर भी जलने को दिल करता है ,
तुम्हारी तपिश से दिल में ,
एक हलचल सी उठती है ,
उसी हलचल में खो जाता हूँ ,
तुम आग हो ये मैं जानता हूँ ,

मगर तुम्हे आग कहना ग़लत होगा ,
कारण, तुम्हारा वो रूप भी देखा है ,
जो बर्फ की शीतलता लिए ,
तन मन को रोमांचित कर देता है ,
और मैं तुम्हारा हो जाता हूँ ,
तुम आग हो ये मैं जानता हूँ ,

कभी कभी लगता हैं मुझे ,
सावन की रिमझिम फुहार हो ,
और तुम जब बरसती हो ,
तो मेरे अन्दर ज्वाला उठती है ,
और मैं उस में जल जाता हूँ ,
तुम आग हो ये मैं जानता हूँ ,

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2010 at 9:15pm
बहुत अच्छे गुरु जी, रचना में वाकई दम है, आप के ख्यालात अच्छे हैं किन्तु जैसा प्रधान संपादक जी ने कहा है व्याकरण और वर्तनी सम्बंधित त्रुटियाँ रचना के रचनात्मकता को समाप्त कर देती हैं |

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