For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम दिवस -शहीद दिवस

राष्ट्र धर्म राष्ट्र  चेतना

की सुधि किन्हें कब आती है

घर की देहरी पर चुपके से वो

जलते दीपक को आँचल उढ़ाती है

 

कुछ करते नमन शहीदों को

कुछ घर में ही रह जाते हैं

भूले भटके यदा कदा

वीरों के गीत सुनाते हैं

 

करते रक्षा देश की जो

देते अपनी कुर्बानी

बहाते लहू जिनके लिए

भूल  अपनी जवानी

 

टूटे सपने बुनते अपने

घुट घुट कर मर जाते हैं

सूनी गोद उजड़ी मांग

रक्षा बंधन कैसे मनाते हैं

 

होली मनाते दीवाली मनाते

दुनिया का हर पर्व मनाते हो

मनाते जैसा प्रेम दिवस

शहीद दिवस मनाते हो  ?

 

 

 

 

Views: 831

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2012 at 12:51pm

snehi rakesh ji baki linon ke bare main kya rai hai. balidaniyon evam unke balidan se laabh leno valon ke prati main baat kahne main safal hua ki nahi. kai log kahte hain ki aap kya kahna chahte hain samjhna kathin hota hai. kahin racna main adura pn to nahi rah jata hai . be hichak marg darshan karen, ye vidyalay hai aur ham sab ek hi class ke chatra. dhanyvad.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 23, 2012 at 12:14pm

देश के अमर शहीदों के नाम की गई यह कृति अविस्मरणीय है आदरणीय प्रदीप जी! बधाई!

Comment by Arun Sri on March 23, 2012 at 10:42am

एक ज्वलंत प्रश्न के साथ कविता का अंत कविता को अनमोल बना जाता है !  एक विचारणीय विषय पर ह्रदय स्पर्शी रचना !

Comment by MAHIMA SHREE on March 23, 2012 at 10:32am
आदरणीय सर ..
वन्देमातरम!!
हृदयस्पर्शी रचना के लिए आपको मेरी हार्दिक बधाई ...
Comment by अश्विनी कुमार on March 23, 2012 at 9:31am

आदरणीय प्रदीपजी सादर अभिवादन ,,शहीदों के प्रति कोमल तथा द्रवित करने वाले भावों के मोती पिरोती हुई अति सुंदर काव्य प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई .................||जय भारत|| 

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 23, 2012 at 7:49am

आदरणीय प्रदीप जी, सादर नमस्कार. कुछ एक लाइंस बहुत सुन्दर बन पड़ी है और भाव भी अच्छे निकल कर आये हैं, अंत बहुत ही अच्छा: "

मनाते जैसा प्रेम दिवस

शहीद दिवस मनाते हो  ?

Snehi ki taraf se badhaiyaan, evam shubhkamnaayen.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2012 at 7:31am

AADARNIYA NIRJA JI. ABHAR . VANDE MATRAM. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2012 at 7:29am

AADARNIYA SAURABH JI, SADAR ABHIVADAN.  SANIK KI MAAN APNE BETE KI PRATIKSHA MAIN DARVAJE PAR DIPAK JALATI HAI .. NAV VARSH MANGAL MAY HO. DHANYAVAD. 

SIR JI SIDE KE BOX SE HINDI NAHI TYPE HO RAHA HAI. KHARABI AA GAYI HAI KYA. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2012 at 12:54am

एक सीधे सटीक प्रश्न से प्रस्तुत रचना का अंत रोमांचित कर देता है.  बहुत कुछ कहती रचना के लिये सादर बधाई, आदरणीय प्रदीप जी.

 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 22, 2012 at 11:09pm

aapne bhav samjha, abhar. mridu ji.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
23 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service