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हर दिल अज़ीज़....

हर दिल अज़ीज़....

रिश्तों को निभा लेने की जिसमे तमीज है,
यकीन मानिये   वो ,   हर-दिल- अज़ीज़ है.
#
ठहरा रहे जमीं को, क्योंकर कुसूरवार,
पौधे  वही  उगेंगे,  बोये  जो  बीज है!
#
उनको दवा न दीजिये,आँखों क़े मर्ज़ की,
नज़रें   चुरा  रहें  वो, दिल क़े मरीज़ हैं.
#
पत्थर सा सख्त चेहरा,रखते हैं जो यहाँ,
दो  घडी  में  पर  वो,  जाते  पसीज  हैं.
#
सिरहाने का  तकिया ,  उसको  बनाइये,
मुश्किलों से हाँथ में , आई  जो  चीज़ है.
#
अविनाश बागडे....

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Comment

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Comment by AVINASH S BAGDE on March 23, 2012 at 5:31pm

आपका ह्रदय से आभार.नीरज भाई...आपने तो इस अंदाज में दाद दी है कि मै निरुत्तर हूँ.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 23, 2012 at 5:26pm

Seema agrawal  mam...bahut-bahut aabhar.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 12, 2012 at 10:19am

संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' जी....बहुत-बहुत धन्यवाद...

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 11, 2012 at 7:43pm

आदरणीय अविनाश जी,

उनको दवा न दीजिये,आँखों क़े मर्ज़ की,
नज़रें   चुरा  रहें  वो, दिल क़े मरीज़ हैं.
वाह-वाह!! बहुत ख़ूब!! निःशब्द हो गया मैं तो|
Comment by AVINASH S BAGDE on March 11, 2012 at 4:10pm

भाई अभिनव जी, हरीश जी ..बहुत-बहुत धन्यवाद...
Comment by AVINASH S BAGDE on March 11, 2012 at 4:09pm

आदरणीय सौरभ जी और वीनस जी,

आपकी बातो से मै सौ फी सदी सहमत हूँ......कोशिशें सुधरने की जारी रहेगी....आभार.
Comment by Abhinav Arun on March 11, 2012 at 3:57pm
रिश्तों को निभा लेने की जिसमे तमीज है,
यकीन मानिये   वो ,   हर-दिल- अज़ीज़ है.
वाह वाह श्री अविनाश जी यकीन मानिये गांठ बाँध ली मैंने |एक एक शेर बोल रहा है !! बधाइयाँ !!
Comment by Harish Bhatt on March 11, 2012 at 12:39pm

Avinaash ji namastey.

sahi baat hai. 

ठहरा रहे जमीं को, क्योंकर कुसूरवार,

पौधे  वही  उगेंगे,  बोये  जो  बीज है!
Comment by वीनस केसरी on March 10, 2012 at 11:06pm

सुन्दर भाव है

आगे  जो कहना चाह रहा हूँ सौरभ जी पहले ही कह चुके हैं


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 10, 2012 at 11:03pm

भाई अविनाशजी, भाव बहुत ही अच्छे हैं. सादर बधाई स्वीकार करें. हाँ, ग़ज़ल के शिल्प के लिहाज से अभी बहुत कुछ करना है.

मैं कुछ कहूँ इससे पूर्व ही आप समझ सकते हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ.

 

ठहरा रहे जमीं को, क्योंकर कुसूरवार,
पौधे  वही  उगेंगे,  बोये  जो  बीज है! ..   इतने खूबसूरत भावों से पगे इस शेर से शुतुर्गुर्बा का दोष तो दूर किया ही जा सकता है.
इस मंच की सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का वास्ता, हम-आप मिलजुल कर बहुत कुछ सीखते-समझते जायेंगे. 
सादर

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