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तुम्हे शिकायत है

इस गहरे अँधेरे से ,

पर क्या तुमने कोशिश की

एक दिया जलाने की ?

या मेरे हाथों से हाथ मिलाकर

बनाया कोई सुरक्षा घेरा

कुछ जलते दीयों को

हवा से बचाने के लिए ?

 

नही न ?

 

कोई बात नहीं !

अभी सूखा नही है

समय का फूल !

 

चलो ढूँढे !

समंदर में डूबे सूरज को ,

इकठ्ठा करें

एक मुट्ठी धूप ,

उछाल दें पर्वतों पर ,

घाटियों में भी !

खिला दें

मुरझाते फूलों को !

 

कुछ तो पिघले ,

गुलाब की पंखुड़ियों पर जमी

ओस की बूंदें !

और पहुंचे

नर्म नंगी दूब तक !

 

वो दर्द

जो ठंडी हवाओं ने बढ़ा दिया है

कुछ तो कम हो !

 

 

 

 

..................................... अरुन श्री !

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Comment by नादिर ख़ान on November 6, 2012 at 4:08pm

कुछ तो पिघले ,

गुलाब की पंखुड़ियों पर जमी

ओस की बूंदें !

और पहुंचे

नर्म नंगी दूब तक !

 

वो दर्द

जो ठंडी हवाओं ने बढ़ा दिया है

कुछ तो कम हो !

अरुण जी, बहुत ही उम्दा भाव सुंदर रचना ।

Comment by Brij bhushan choubey on January 25, 2012 at 2:27pm

महीने के सर्वश्रेष्ठ रचना  हेतु बहुत बहुत बधाई आपको .....वाकई काफी खुबसूरत रचना है |

Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on January 24, 2012 at 10:43pm

bahut hi satik prashn uthati kavita .....sadhuvad 

Comment by राज लाली बटाला on January 23, 2012 at 9:41pm

महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना का पुरस्कार हेतु हार्दिक बधाई  स्वीकारें ...:)  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 19, 2012 at 12:57pm

bahut sundar kavita likhi hai bahut pasand aai.badhaai.

Comment by Shanno Aggarwal on January 8, 2012 at 2:44am

अरुण जी को हार्दिक बधाई व शुभकामनायें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 8, 2012 at 12:40am

’एक मुट्ठी धूप’ को इस मंच पर माह की सर्वश्रेष्ठ रचना चयनित होने पर रचनाकार श्री अरुणजी को मेरी हार्दिक बधाइयाँ. 

Comment by satish mapatpuri on January 8, 2012 at 12:30am
OBO पर महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना का पुरस्कार हेतु कोटिश: बधाई. अरुणजी, मैं भी रामगढ़ प्रखंड के मापतपुर का रहनेवाला हूँ , कलानी गाँव मेरे लिए  पूज्य है ............ क्योंकि, यह मेरे खानदानी कुलगुरुजी का गाँव है. मेरे पिताजी स्व. गुलाब चाँद लाल उस एरिया के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे
Comment by AjAy Kumar Bohat on January 7, 2012 at 1:58pm

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है अरुण जी, बधाई स्वीकार करें...

Comment by Arun Sri on January 6, 2012 at 11:55am

धन्यवाद अतेंद्र जी !

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