तुम्हे शिकायत है
इस गहरे अँधेरे से ,
पर क्या तुमने कोशिश की
एक दिया जलाने की ?
या मेरे हाथों से हाथ मिलाकर
बनाया कोई सुरक्षा घेरा
कुछ जलते दीयों को
हवा से बचाने के लिए ?
नही न ?
कोई बात नहीं !
अभी सूखा नही है
समय का फूल !
चलो ढूँढे !
समंदर में डूबे सूरज को ,
इकठ्ठा करें
एक मुट्ठी धूप ,
उछाल दें पर्वतों पर ,
घाटियों में भी !
खिला दें
मुरझाते फूलों को !
कुछ तो पिघले ,
गुलाब की पंखुड़ियों पर जमी
ओस की बूंदें !
और पहुंचे
नर्म नंगी दूब तक !
वो दर्द
जो ठंडी हवाओं ने बढ़ा दिया है
कुछ तो कम हो !
..................................... अरुन श्री !
Comment
कुछ तो पिघले ,
गुलाब की पंखुड़ियों पर जमी
ओस की बूंदें !
और पहुंचे
नर्म नंगी दूब तक !
वो दर्द
जो ठंडी हवाओं ने बढ़ा दिया है
कुछ तो कम हो !
अरुण जी, बहुत ही उम्दा भाव सुंदर रचना ।
महीने के सर्वश्रेष्ठ रचना हेतु बहुत बहुत बधाई आपको .....वाकई काफी खुबसूरत रचना है |
bahut hi satik prashn uthati kavita .....sadhuvad
महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना का पुरस्कार हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें ...:)
bahut sundar kavita likhi hai bahut pasand aai.badhaai.
अरुण जी को हार्दिक बधाई व शुभकामनायें.
’एक मुट्ठी धूप’ को इस मंच पर माह की सर्वश्रेष्ठ रचना चयनित होने पर रचनाकार श्री अरुणजी को मेरी हार्दिक बधाइयाँ.
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है अरुण जी, बधाई स्वीकार करें...
धन्यवाद अतेंद्र जी !
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