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"मेरा बेबस प्यार"




अब नहीं याद मुझे वो शैदाई ख्वाब, ऐ बेवफा सनम...
जिसमें तेरी आँखों में जन्नत नज़र आया करती थी...
जिसमें तेरी साँसों की गर्मी से मेरी ठिठुरन जाया करती थी...
जिसमें होती थी रौशन रोज़ चांदनी रातें...
जिसमें तेरी मेरी धड़कन कुछ बहक सी जाया करती थी...

अब नहीं मज़ा देती वो पूर्णमासी की रातें...
जिसमें सारी रात चंदा निहारते बीत जाया करती थी...
जिसमें जुगनुओं की चमक से आँखें चौंध जाया करती थी...
जिसमें भुलाती थी दिनभर की टूटन तेरी मुस्कानें...
जिसमें तेरी मेरी बतियाँ हर सवाल मिटा दिया करती थी...

अब नहीं करती सावन का इंतज़ार ये आँखें...
जिसमें तेरे संग भीगने की लहर मन में जागा करती थी...
जिसमें तेरी आँखों की शरारत मुझे छेड़ जाया करती थी...
जिसमें सिहरती थी तेरी छुअन से हर सासें...
जिसमें तेरी मेरी मोहब्बत के गीतों से बूंदें सुर मिलाया करती थी...

अब ना हैं वो ख्वाब... ना वो रातें... ना वो इंतज़ार...
बस है तो सिर्फ मैं और मेरा बेबस प्यार...
सिर्फ मैं...
और मेरे बेवफा सनम का...
मुझपे किया हर वार...!!

:::: जुली मुलानी ::::
:::;Julie Mulani ::::

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Comment by Julie on October 12, 2010 at 1:26am
Itz My Pleazure Rajesh jee... Thank-U SO Much for Reading...!! :-)
Comment by Rajesh Kumar Singh on October 11, 2010 at 11:57pm
Awesome poem , Many many thanks

Julie Jee
Comment by Julie on September 2, 2010 at 1:51am
बागी जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका, मेरी कविता को एक पहचान दे दी आज आपने...!! :-)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 1, 2010 at 11:55pm
जुली जी आपकी रचनाओं में कुछ अलग ही बात होती है, यह भी रचना एक नये कलेवर मे है, काफी रुचिकर कविता और खुबसूरत प्रस्तुति , धन्यवाद,

कृपया ध्यान दे...

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