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ग़ज़ल - भोगा हुआ यथार्थ..

.

जिसकी  रही  कभी नहीं आदत उड़ान की

अल्फ़ाज़ खूबियाँ कहें खुद उस ज़ुबान की

*

भोगा हुआ यथार्थ जो सुनाइये,  सुनें

सपनों भरी ज़ुबानियाँ  दिल की न जान की..

*

जिसके खयाल हरघड़ी परचम बने उड़ें

वो खा रहा समाज में इज़्ज़त-ईमान की ..

*

जिनके कहे हज़ारहा बाहर निकल पड़े

ऐसी जवान ताव से चाहत कमान की..

*

जबसे सुना कि शोर है अब इन्क़िलाब का

ये सोच खुश हुआ बढ़ी  कीमत दुकान की.

*

हर नाश से उबारता, भयमुक्त जो करे

हर रामभक्त बोलता, "जै हनुमान की" !

*

तन्हा हुए दलान में चुपचाप सो गया  

ये शायरी ज़बां है किसी बेज़बान की..

 

-- सौरभ

 

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 1, 2012 at 1:29pm

भाई दुष्यंतजी, भाई सुभाषजी तथा भाई राकेशजी, आपकी सकारात्मक प्रतिक्रियाओं से अभिभूत हूँ. सहयोग बनाये रखें.

हार्दिक धन्यवाद

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 1, 2012 at 9:49am

bahut khub shrimaan saurabh ji.

Comment by Subhash Trehan on September 23, 2011 at 2:57pm

उम्दा गजल के माध्यम से आदर्शवादी लोगों के लिए याथार्थवादी सन्देश। बहुत खूब साहब।

Comment by दुष्यंत सेवक on September 6, 2011 at 3:51pm

जबसे सुना कि शोर है अब इन्क़िलाब का ये सोच खुश हुआ बढ़ी  कीमत दुकान की.

मैं इस बिंब से ख़ासा प्रभावित हुआ गुरुवर ....वैसे तो सभी शेर आला हैं....लेकिन वर्तमान हालातों को देखते हुए यह सबसे सटीक बन पड़ा हैं हार्दिक आभार सर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2011 at 6:33pm

भाईगणेशबाग़ीजी,  अपने ओबीऒ के मंच पर एक बेहतर प्रयास पुनर्प्रारम्भ हुआ है - ग़ज़ल के सभी अशार बह्र की कसौटी पर कसे जायँ.  चूँकि सभी सदस्यों, जो हर तरह से अलग-अलग पृष्ठभूमि से हैं,  को इस लिहाज से साथ लेकर चलना कि एक विधा के मानक पर खरे उतरें, स्वयं में शैक्षणिक एवं संप्रेषणीय कौशल के साथ-साथ असीम धैर्य की मांग करता है. काव्य-विधा के प्रति सदस्यों को जागरुक करना, उत्सुक करना तथा सफल योगदान हेतु उत्प्रेरित करना,  इस ओबीओ की विशेष खासियत है, जिसके चलते कई-कई नये-हस्ताक्षर मंच की ओर आकर्षित हुये हैं.  इस क्रम में ओबीओ के मंच से प्रत्येक माह आयोजित तीन मुख्य आयोजनों का महत्त्वपूर्ण योगदान है.

इधर वीनसभाई का बह्र के प्रति सुस्पष्ट आग्रह   --तरही मुशायरे की प्रविष्टियों को कमसेकम ग़ज़ल की कसौटी पर खरा उतरने के पूर्व बह्र को संतुष्ट तो करना ही चाहिये--  ने सदस्यों की रचना-प्रक्रिया को विशेष रूप से अपील किया है.

मैं समझता हूँ, यह एक शुभ-संकेत है. कहना न होगा, बाग़ीजी, हमारे जैसे कइयों ने, जिन्होंने ओबीओ के मंच से ही ग़ज़ल कहना प्रारम्भ किया है, के लिये इस तरह का कोई आग्रह अपने प्रयास को विधिवत् रूप से साधने और सँवारने का वातावरण उपलब्ध करायेगा, साथ ही, ग़ज़लगोई के क्रम में और गंभीरता आएगी.

 

इस लिहाज से, हमने सद्यः समाप्त हुए मुशायरे की अपनी प्रविष्टि को बह्र के हिसाब पुनः देखा और ऊला तथा सानी को अपने तईं पुनः कस कर आप सभी के समक्ष पुनर्प्रस्तुत किया है. यह प्रशिक्षण-प्रक्रिया का ही हिस्सा है.

प्रस्तुत ग़ज़ल के अशार को इस विधा की कसौटियों के आलोक में देख संप्रेषित प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित हैं.  वीनसभाई ने कुछ अशार को उपरोक्त लिहाज से संसुस्त किया है.

 

नीचे मेरी प्रतिक्रियाओं में देखें,  एक और शे’र आप सभी की संसुस्ति की चाहना रखता है. कृपया आप और सभी सुधी और गुणीजन अपने सुझावों से मार्गदर्शन करेंगे, ऐसी आशा है. 

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 4, 2011 at 5:31pm

आदरणीय सौरभ भैया, आपकी यह ग़ज़ल तरही मुशायरे में भी खूब दाद बटोरी थी, यह संशोधित प्रारूप और भी उम्द्दा हो गया है | बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2011 at 12:48am

वीनस भाई, हार्दिक धन्यवाद. 

 

अच्छा, अनुमोदित पंच महाभूतों में एक और संलग्न होकर यदि शिव-सुत षडानन का प्रारूप बनाये तो कैसा रहे ? --

भोगी हुयी सचाई  कहो तो  सही, सुनें

सपनों भरी  ज़ुबानियाँ दिल की न जान की..

 

Comment by वीनस केसरी on September 3, 2011 at 11:36pm

जिसकी  रही  कभी नहीं आदत उड़ान की

अल्फ़ाज़ खूबियाँ कहें खुद उस ज़ुबान की

 

जिसके खयाल हरघड़ी परचम बने उड़ें

वो खा रहा समाज में इज़्ज़त-ईमान की ..

 

जिनके कहे हज़ारहा बाहर निकल पड़े

ऐसी जवान ताव से चाहत कमान की..

 

जबसे सुना कि शोर है अब इन्क़िलाब का

ये सोच खुश हुआ बढ़ी  कीमत दुकान की.

 

तन्हा हुए दलान में चुपचाप सो गया  

ये शायरी ज़बां है किसी बेज़बान की..

 

बहुत सुन्दर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 3, 2011 at 5:05pm

हार्दिक धन्यवाद रविभाई.

Comment by Rash Bihari Ravi on September 3, 2011 at 3:50pm

sir bahut badhia sab ke sab ek se badh kar ek

कृपया ध्यान दे...

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