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ग़ज़ल :- ये खबर इस शहर पे तारी हुई

 ग़ज़ल :- ये  खबर इस शहर पे तारी हुई 
 
यह खबर इस शहर पे तारी हुई ,
मछलियों  की जाल से यारी हुई |
 
फूल था मधुरस लुटा हल्का हुआ ,
तितली थी एहसास से भारी हुई |
 
आप किस्सागो नहीं  मालूम है ,
आपकी चुप्पी से दुश्वारी हुई |
 
लहरों के षड्यंत्र में फंसने लगी ,
नाव थी हालात  की मारी हुई |
 
रात भर तारों को हांका चाँद ने ,
सुब्ह को रुकने के लाचारी हुई |
 
द्रोह के  पासे सभी उलटे पडे ,
कब कहाँ और किससे गद्दारी हुई |
 
सुख में बच्चे बाप से लिपटे रहे ,
दुःख में माँ  के गोद की बारी हुई |
 
अब सभी को उसकी शादी की फिकर ,
बाप  के  बिन बेटी बेचारी हुई |
          
                      =   अभिनव अरुण
 
 
 
 
 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on August 15, 2011 at 11:48am

आभार बागी जी आपकी  प्रतिक्रिया मेरी प्रोत्साहन है | इस ग़ज़ल की आप द्वारा की गयी विस्तृत समीक्षा ने सचमुच इसका वज़न बाधा दिया ! आप सबके स्नेह से कलम चलती और लिखती रहे यही कामना है | हार्दिक आभार !!

Comment by Abhinav Arun on August 15, 2011 at 11:44am

abhaar sateesh jee shukriya |

Comment by satish mapatpuri on August 14, 2011 at 11:15pm
लहरों के षड्यंत्र में फंसने लगी ,
नाव थी हालात की मारी हुई |

लाजवाब शे 'र ....................... शुक्रिया


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 14, 2011 at 8:31pm
//यह खबर इस शहर पे तारी हुई ,
मछलियों  की जाल से यारी हुई |//
वाह भाई वाह क्या ख्यालात है, खुद ही जिबह होने को तैयार, खुबसूरत मतला |
 
//फूल था मधुरस लुटा हल्का हुआ ,
तितली थी एहसास से भारी हुई |//
खुबसूरत शे'र अरुण जी, कुछ तो नमक है वरना अब तो लोग जिसका खाते है उसी को दुत्कारते है |
 
//आप किस्सागो नहीं  मालूम है ,
आपकी चुप्पी से दुश्वारी हुई |//
बहुत खूब, होता है भाई कभी कभी, चुप्पी ज्यादा खतरनाक है |
 
//लहरों के षड्यंत्र में फंसने लगी ,
नाव थी हालात  की मारी हुई |//
क्या कहने भाई |
 
//रात भर तारों को हांका चाँद ने ,
सुब्ह को रुकने के लाचारी हुई |//
आय हाय, चाँद ने तारों की हकारी की, सुन्दर कथ्य |
 
//द्रोह के  पासे सभी उलटे पडे ,
कब कहाँ और किससे गद्दारी हुई |//
गद्दारों से गद्दारी कुछ तो गड़बड़ है :-)
 
//सुख में बच्चे बाप से लिपटे रहे ,
दुःख में माँ  के गोद की बारी हुई |//
सुन्दर कहन, दुःख में बस माँ ही याद आती है, किन्तु दुःख तो तब और बढ़ जाता है जब माँ की गोद भी मवस्सर ना हो |
 
//अब सभी को उसकी शादी की फिकर ,
बाप के बिन बेटी बेचारी हुई |//
ye शे'र भी बहुत ही खुबसूरत है , शानदार ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करे बंधु |

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