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ग़ज़ल - ग़मों का दौर हूँ मैं

ग़ज़ल - ग़मों का दौर हूँ मैं

ग़मों का दौर हूँ मैं ,

ग़ज़ल है और हूँ मैं |

 

दशहरी गंध तुम हो ,

तुम्हारी बौर हूँ मैं |

 

तेरा हर तिल गिना है ,

नज़र का गौर हूँ मैं |

 

हो तुम सपनीली आँखें ,

उनींदी ठौर हूँ मैं |

 

मुझे सबने सहेजा ,

हाँ अंतिम कौर हूँ मैं |

 

सज़ा बाज़ार में हूँ ,

मगर सिरमौर हूँ मैं |

  

{अभिनव अरुण - मेरा लेखकीय नाम }

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on August 12, 2011 at 7:40pm
 गुरु जी निहाल हो गया !! आपका आशीष है शुक्रिया !!
Comment by Rash Bihari Ravi on August 12, 2011 at 7:15pm

मुझे सबने सहेजा ,

हाँ अंतिम कौर हूँ मैं |

 

wahh kya bat hain bahut sundar

 

Comment by Abhinav Arun on August 12, 2011 at 6:51pm

आदरणीय श्री विवेक जी आपने इन अशारों को सराहा मैं आभारी हूँ आपका शुक्रिया !!

Comment by विवेक मिश्र on August 11, 2011 at 12:45pm

ग़मों का दौर हूँ मैं ,

ग़ज़ल है और हूँ मैं |/

मुझे सबने सहेजा ,

हाँ अंतिम कौर हूँ मैं |/

इन दोनों अश'आर के कहन भाव के क्या कहने.. वाह अरुण जी. बधाई.

Comment by Abhinav Arun on August 6, 2011 at 2:02pm

श्री वीनस जी और श्री वीरेंद्र जी आभार ,ग़ज़ल को सराहा आपने !!

Comment by वीनस केसरी on August 6, 2011 at 12:32am

बेहतरीन मतला, लाजवाब ग़ज़ल

 

बधाई

Comment by Veerendra Jain on August 6, 2011 at 12:16am

bahut hi badhiya... Arun ji...badhai swikar karen...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2011 at 9:36pm

भाई अभिनव अरुणजी,   .. आना यों.. और कुछ कह जाना .. होना बना रहेगा.

इसकी, सही, बहुत ज़रूरत है.

Comment by Abhinav Arun on August 5, 2011 at 9:27pm

आदरणीय श्री सौरभ जी , जानता हूँ यह ग़ज़ल विस्तृत समीक्षा के काबिल नहीं , फिर भी आपकी उदारता , आशीर्वाद मिला , आभारी हूँ !!

Comment by Abhinav Arun on August 5, 2011 at 9:25pm
बागी जी अभिवादन !! इधर कुछ व्यस्तता के कारण कुछ "गहरा " नहीं कह पा रहा हूँ ! कोशिश होती है की ओ बी ओ के आयोजनों में प्रतिभागिता सुनिश्चित कर सकूं |... और इस तरह साहित्यिक काम काज भी चलता रहे | ...धारा से कट जाने का डर सदा रहता है | यह ग़ज़ल भी इसी तौर पर कही गयी और "ताकि सनद रहे " की तर्ज़ पर यहाँ टंकित भी की गयी | साथ ही तुकबंदी सा होने का डर भी सताता रहा अतः एक एक्सक्यूज लिया कह सकते हैं | वैसे अक्सर मेरे साथ होता है की अपनी पुरानी रचना में भी बाद में कमियाँ ही दिखती हैं .. | हो सकता है यह एक रचनाकार का असंतोष ही है जो उसे लिखते जाने को प्रेरित करता है |

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