For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

.
नव-पावस के भीगे हम-तुम...
कुछ अनचीन्हे कुछ परिचित-से मृदुभावों में जीएँ हम-तुम।

इस भावोदय की वेला में चलो अलस की साँझ भुला दें
चाह रहे जो कहना अबतक आज जगत को चलो सुना दें
इच्छाएँ कह अपनी सारी जड़-चेतन झन्ना दें हम-तुम ॥ नव-पावस के भीगे हम-तुम...

अर्थ बने क्यों रुकने के अब, अलि तन्द्रिल हो क्यों उपवन में
गंध बँधे कब तक कलियों में, पवन रुके कब तक आँगन में
नीरस-चर्या सभी बदल कर नव-उल्लास गहें मिल हम-तुम ॥ नव-पावस के भीगे हम-तुम...

सम्बोधन ही क्यों बन्धन हो, हो नव-परिचय की आतुरता
सुन स्वर की आवृति मन अल्हड़, हुलस ’सगुन-सेनुर’ है गाता
कुहके रह-रह फुदके सिहरन, अब हैं सृजन-चितेरे हम-तुम ॥ नव-पावस के भीगे हम-तुम...

चलो बना कर मन को तितली प्रहर कली का फूल खिला दें
नव-ऊर्जा की चीख-चुहल से सोई बुलबुल आज जगा दें
तज बन्धन सब रूढ़ि-कथाएँ कुछ उत्पात करें मिल हम-तुम॥ नव-पावस के भीगे हम-तुम...

Views: 422

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2010 at 5:32pm
भाइयों आप सभी को धन्यवाद..
सहयोग बनाए रखिएगा
Comment by Rash Bihari Ravi on August 2, 2010 at 4:39pm
चलो बना कर मन को तितली प्रहर कली का फूल खिला दें
नव-ऊर्जा की चीख-चुहल से सोई बुलबुल आज जगा दें
main kya bolu bahut kuch hain
Comment by Kuldeep Kumar on August 2, 2010 at 10:47am
bahut sunder Sir ji ............

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 29, 2010 at 12:20am
अभिनन्दन राणाप्रताप..
एक समय ऐसा आता है जो ’सृजन-चितेरा’ होने का भान करा देता है.. और वो समय.. वो क्षण .. . सारी उम्र के लिए मन के किसी कोने में सदा के लिए चस्पाँ हो जाता है.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 28, 2010 at 10:19pm
सुन्दर, प्रवाहमय नवगीत....नव गीत इसलिए की काफी सारे नए बिम्बों का प्रयोग हुआ है जैसे

अलस की साँझ, जड़ चेतन झन्ना देना, हुलस ’सगुन-सेनुर’ है गाता, नव-ऊर्जा की चीख-चुहल, फुदके सिहरन

गीत में लोक शब्दों का भी आला प्रयोग अपनापन लेकर आया है. कुल मिलाकर मन को प्रफुल्लित करने वाला नवगीत. सौरभ सर आपका बहुत बहुत आभारी हूँ इस सार्थक रचना को पढवाने के लिए.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 27, 2010 at 9:19pm
सम्बोधन ही क्यों बन्धन हो, हो नव-परिचय की आतुरता
सुन स्वर की आवृति मन अल्हड़, हुलस ’सगुन-सेनुर’ है गाता
कुहके रह-रह फुदके सिहरन, अब हैं सृजन-चितेरे हम-तुम ,

बहुत खूब सौरभ भईया, खुबसूरत शब्दों के समावेश से यह रचना अति सुंदर बन पड़ी है, इस बेहतरीन अभिव्यक्ति हेतु साधुवाद,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर बागपतवी जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी,  बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। मैं हूं बोतल…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश  जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया रिचा जी,  अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
4 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
4 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आप का बहुत धन्यवाद।  "दोज़ख़" वाली टिप्पणी से सहमत हूँ। यूँ सुधार…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service