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मातृ दिवस के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"


माँ का आँचल बाल को, सदा सुरक्षा ढाल
टलता जिसकी छाँव में, आया संकटकाल।१।
*
हीरे, मोती, स्वर्ण का, रख कितना भी तोल
माँ की ममता का नहीं, पास किसी के मोल।२।
*
माँ के आँचल के तले, मिलती ऐसी छाँव
हर्षित होकर नाचता, हर दुखियारा गाँव।३।
*
चाहे मन  से हो  स्वयं, माँ  यूँ बहुत उदास
बच्चों को देती मगर, सदा खुशी की आस।४।
*
अपने सब दुख भूलकर, देती सबको हर्ष
माता  जीवन  नींव  है, माता  ही  उत्कर्ष।५।
*
रग-रग में माँ के भरे, ममता, करुणा, त्याग
नीदों  को  सन्तान  की, लोरी  गाती  जाग।६।
*
माँ से  घर  मंदिर  बने, पाकर  हर  सँस्कार
हर पल हर क्षण कीजिए, यूँ माँ का आभार।७।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 29, 2023 at 5:39am

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 28, 2023 at 8:58pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत बढ़िया दोहे लिखे हैं आपने. हार्दिक बधाई.

 

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