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ग़ज़ल : रूबरू अब सलाम होता है… "राज"

वजन : 2122 1212 22

वक़्त किसका गुलाम होता है 

कब कहाँ किसके नाम होता है 

 

कल तलक जिससे था गिला तुमको 

आज किस्सा तमाम होता है 

 

खास है  जो  मुआमला अपना 

घर से निकला तो  आम होता है 

 

आज जग में सिया नहीं मिलती 

औ’ किताबों में राम होता है 

 

चिलमनो में मुहब्बतें कल थी 

अब तमाशा ये आम होता है 

 

अश्क कल दर्द के जो पीते थे 

हाथ में आज जाम होता है  

 

रास्ते तो करीब आ जाएं  

दूर कितना  मुकाम होता है  

 

रंजिशे तुम जहां कहीं पालो    

 मौन  उस पर  विराम  होता है 

 

‘राज’ ख्वाबों  में ही नहीं मिलती 

रूबरू अब सलाम होता है 

*******************************

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Comment

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Comment by rajesh kumari on July 2, 2013 at 8:48pm

आदरणीया कुंती जी ग़ज़ल पर आपके आत्मीय शब्द मिले तहे दिल से आभार मेरा लिखना सार्थक हुआ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2013 at 8:47pm

प्रिय रामशिरोमणि पाठक जी ग़ज़ल पर आपकी सराहना  मिली दिल से आभार 

Comment by सानी करतारपुरी on July 2, 2013 at 7:31pm

आदरणीया राज जी, बहुत खुबसूरत ग़ज़ल कही है ..मुबारकबाद 

Comment by वेदिका on July 2, 2013 at 5:53pm

बहुत खूब गजल लिखी आपने आदरणीया राजेश जी! 

अगर सबसे खूब सूरत शेअर चुनु भी तो कौन सा चुनुं, वाह एक से बढ़ कर एक:))

रंजिशे तुम जहां कहीं पालो    

 मौन  उस पर  विराम  होता है,,बहुत साफ़ गोई से कहा आपने 

कल तलक जिससे था गिला तुमको 

आज किस्सा तमाम होता है ,,,,, बहुत सही 

 

  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 2, 2013 at 5:09pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल है राज जी, 

"आज जग में सिया नहीं मिलती 

बस किताबों में राम होता है "   आपने बहुत गहराई से सोच के  लिखा है वाह

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 2, 2013 at 4:03pm
आदरणीया..राजेश कुमारी जी, बहुत ही खूबसूरत रचना.,.. " कलतलक जिससे था गिला तुमको

आज किस्सा तमाम होता है

पास है जो मुआमला अपना

घरसे निकलावो आम होता है "......तहे दिल से शुभकामनाऐ, स्वीकार कीजीऐ
Comment by coontee mukerji on July 2, 2013 at 3:58pm

राजेस कुमारी जी , आपकी लेखनी का कोई जवाब नहीं एक पंक्ति अनुभवों के मद में पिरोया हुआ....................

आज जग में सिया नहीं मिलती 

बस किताबों में राम होता है ...........सत्य  है.......................

रास्ते तो करीब आ जाएं  

दूर कितना  मुकाम होता है...........और कितनों को जिंदगी में मुकाम हासिल होता है क्या जाने.

Comment by ram shiromani pathak on July 2, 2013 at 3:25pm

चिलमनो में मुहब्बतें कल थी 

अब तमाशा ये आम होता है 

 

अश्क कल दर्द के जो पीते थे 

हाथ में आज जाम होता है  /////////वाह वाह 

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है आदरणीया राजेश कुमारी जी ///हार्दिक बधाई आपको 

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