21122---21122---2112 |
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हाय मिली क्या खूब शराफत, तुम भी न बस |
बात करो, हर बात शरारत, तुम भी न बस |
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हम को सताने यार गज़ब तरकीब चुनी |
देख हमें गैरों पे इनायत, तुम भी न बस |
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जब भी कहा- है प्यार भला क्या, कुछ तो कहो |
लम्स की वो पुरजोर वकालत, तुम भी न बस |
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बात को समझो यूं भी न छेड़ो, हिज्र के गम |
रोज़ करेंगे नैन बगावत, तुम भी न बस |
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नाम हमारे चाँद सितारे, कर भी तो दो |
दिल से लिखोगे आज वसीयत, तुम भी न बस |
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जी में जो आये जिद्द कभी तकरार कभी |
फिर से वही आदाब इबादत, तुम भी न बस |
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सिर्फ मुहब्बत सिर्फ मुहब्बत, रात से दिन |
चुप तो रहो नासाज़ तबीयत, तुम भी न बस |
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लोग करेंगे बात, हिदायत दी थी मगर |
फिर से वही आँखों से हिमाकत, तुम भी न बस |
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बात घुमाकर रात करोगे, तुम तो मियां |
जान चुके ‘मिथिलेश’ हकीकत, तुम भी न बस |
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(आ. वीनस भाई और आ. गिरिराज सर को समर्पित: उनकी ग़ज़ल की कठिन बह्र पर एक प्रयास) |
Comment
आदरणीय मिथिलेश जी बहुत सुंदर ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय मिथिलेश भाई , मैने तुम्हारे सँबोधन को तो एक ज़िद्दी बच्चे के प्रेम के रूप मे स्वीकार कर ही लिया था , पर यहाँ बात तुलनात्मक भी हो रही थी , नये सदस्य अगर आपके दोनो को ( आ. वीनस भाई और मुझे ) दिये संबोधनों को एक साथ पढ़ॆं तो उनको ये भ्रम भी हो सकता था ,आ. वीनस भाई से गिरिराज भाई जी जानकारी अधिक है , इसीलिये नाम के आगे सर सम्बोधन लगा है , जैसा कि मुझे लगा । मै जानता और मानता हूँ कि आप तो नही मानने वाले , मेरी प्रतिक्रिया खुद अपने को जानकार समझे जाने से बचाने के लिये थी , आपके अधिकारों से आपको वंचित करने के लिये नहीं । मै रिश्तों को जीने वाला हूँ , आपको ( छोटे भाई को ) हक़ दिया है तो दिया है । लेकिन मुझे खुद को सम्बोधन के कारण साबित हो रहे अनावश्यक ज्ञानी समझे जाने से खुद को बचाना भी है , ताकि मै अंत तक एक विद्यार्थी होने के भाव मे जी सकूँ , और आप सब से सीखता रहूँ । इतनी सावधानी तो मुझे रखनी ही पड़ेगी ।
\\ क्या जी .. तुम भी न बस !!
दाद दाद दाद \\
आदरणीय सौरभ सर, आपकी दाद और आपके दाद देने के अंदाज़ दोनों ने मुग्ध कर दिया
कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाना आपका अंदाज़ रहा है, कितने ही भाव समाहित है, ढेर सारा अपनापन लिए.
आपकी प्रतिक्रिया से आदरणीय योगराज सर के आलेख "लघुकथा विधा : तेवर और कलेवर" की पंक्तियाँ याद आ गई-
"जो कहा जाता है वह तो महत्वपूर्ण होता ही है, किन्तु उससे भी महत्वपूर्ण वह होता है जो "नहीं कहा जाता". लघुकथाकारों के लिए इस "जो नहीं कहा जाता" को समझना बहुत आवश्यक है।
आदरणीय वीनस भाई जी ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ. आपकी दाद मिलना मेरी लिए बड़ी बात है. हार्दिक धन्यवाद.
आपने लिखा है-
\\ मैंने इस बहर पर कुछ कहा हो याद नहीं आता ...\\
आपने आदरणीय गिरिराज सर से इस बह्र पर चर्चा की थी और आ. गिरिराज सर ने इसी बह्र पर हाल ही में ग़ज़ल लिखी है, उस ग़ज़ल की बह्र लय की चर्चा के क्रम में उन्हीं की मार्फ़त मुझे मालूम हुआ. बह्र आपने बताई, ग़ज़ल उन्होंने लिखी उसी प्रेरणा से मैंने भी प्रयास किया और अभ्यासी के नाते अपने प्रेरणा दाताओं को ग़ज़ल समर्पित कर दी. अरे हाँ आपके नाम के संबोधन के साथ जी नहीं लगा पाया, त्रुटिवश छूट गया, क्षमा चाहता हूँ, उसे सुधार लेता हूँ.
सादर
आदरणीय कृष्ण भाई जी ग़ज़ल के प्रयास की सराहना, शेर कोट करने लायक समझने और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ. सादर
आदरणीय श्याम नरेन् वर्मा जी ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ. सादर
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, ग़ज़ल के प्रयास को आप जैसे सुलझे हुए गज़लकार का अनुमोदन मिल गया, अभ्यासी धन्य हुआ. अभ्यास के क्रम में ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ. सादर
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ. सादर
आदरणीय सुनील प्रसाद जी, ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ. सादर
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