For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : ‘’सुभान’अल्ला’’ (1222-1222-1222-1222)

सवाल-ए-इश्क़, रुख़ पे, क्या असर लाये, सुभान’अल्ला!

झुकी नज़रेँ उठेँ, उठ कर झुकेँ, हाए, सुभान’अल्ला!

 

पलक से, वक़्त बे-क़ाबू, हवा मोड़े जो, चाल ऐसी,

खुले जो ज़ुल्फ, मौज आये, घटा छाये, सुभान’अल्ला!

 

तेरी खुशबू के रंगोँ से, बहारोँ की धनक महके,

तेरी आवाज़, क़ुदरत का सुकूँ, हाए, सुभान’अल्ला!

 

उफक़ ये हुस्न, तो, वो चाँद-सूरज हैँ तेरी बिन्दी,

सितारा, बन तेरी नथनी, चमक पाये, सुभान’अल्ला!

 

कमर प्याला, सुराहीदार गर्दन, जिस्म मै’ख़ाना,

गुलाबी होँट अंगूरी, नशा छाये, सुभान’अल्ला!

 

अदा-शोख़ी क़यामत, सादगी-शर्म-ओ-हया ऐसी,

हक़ीक़त क्या, तसव्वुर भी मचल जाये, सुभान’अल्ला!

 

है चेहरा, ईद का वो चाँद, जिस को देख कर, यारोँ,

झुका सजदे मेँ, हर काफिर, सदा आये, ‘सुभान’अल्ला’!

 

तेरी हस्ती मेरी साँसेँ, दवा-‘आब-ए-हयात’ आँखेँ,

हँसी शबनम-सी, गुलशन की सहर लाये, सुभान’अल्ला!

 

मेरे बे-दार ख़्वाबोँ के तरन्नुम की जवाँ महफिल,

मुहब्बत की शमा से रौशनी पाये, सुभान’अल्ला!

 

यही यादेँ, मेरे दिन-रात, साहिल हैँ, समन्दर​ हैँ,

“बशर” की डूबती कश्ती, ग़ज़ल गाये, ‘’सुभान’अल्ला’’!!!

 

********************************************

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

* शब्दावली मौज = लहर, धनक = इंद्रधनुष, उफक़ = क्षितिज, मै’ख़ाना = शराब’ख़ाना, मदिरालय, तसव्वुर = कल्पना, काफिर = नास्तिक, सदा = आवाज़, हस्ती = ज़िन्दगी, आब-ए-हयात = अमृत, शबनम = ओस, गुलशन = बाग़ या बगीचा, सहर = सुबह, बे-दार = जागते हुए, निद्रारहित, तरन्नुम = संगीत, साहिल = किनारा

Views: 671

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सन्दीप सिंह सिद्धू "बशर" on November 13, 2013 at 2:49pm

Saurabh Pandey साहब, ये तो आप का हुस्न-ए-नज़र है । आप का ख़ास इंतिख़ाब, दाद और हौसला'अफज़ाइ सर-आँखोँ पर । तह-ए-दिल से आप का शुक्रिया ।

Comment by सन्दीप सिंह सिद्धू "बशर" on November 13, 2013 at 2:49pm

शकील जमशेदपुरी साहब, तह-ए-दिल से शुक्रिया आप का । 
Shijju Shakoor साहब, बहुत-बहुत शुक्रिया आप का ।
Sushil Joshi साहब, इंतिख़ाब-ओ-दाद के लिए हम आप के दिल से शुक्रगुज़ार हैँ ।

Umesh Katara साहब, आप की दाद सर-आँखोँ पर । तह-ए-दिल से आप का शुक्रिया ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 12, 2013 at 10:57pm

कमर प्याला, सुराहीदार गर्दन, जिस्म मै’ख़ाना,

गुलाबी होँट अंगूरी, नशा छाये, सुभान’अल्ला!

है चेहरा, ईद का वो चाँद, जिस को देख कर, यारोँ,

झुका सजदे मेँ, हर काफिर, सदा आये, ‘सुभान’अल्ला’!.. . .

इन दो अश’आर में मजाज़ी और हक़ीक़ी इश्क़ का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत हुआ है. 

बधाई स्वीकारें.

Comment by umesh katara on November 9, 2013 at 9:59am

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्
शानदार संदीप भाई जी
है चेहरा ईद का वो चाँद जिस को देखकर यारो
झुका सजदे में हर काफिर सदा आये सुभान अल्ला
दाद कबूलें आदरणीय

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:53am

अदा-शोख़ी क़यामत, सादगी-शर्म-ओ-हया ऐसी,

हक़ीक़त क्या, तसव्वुर भी मचल जाये, सुभान’अल्ला!

 

है चेहरा, ईद का वो चाँद, जिस को देख कर, यारोँ,

झुका सजदे मेँ, हर काफिर, सदा आये, ‘सुभान’अल्ला’!............... वाह वाह क्या कहने आ0 संदीप भाई जी..... बहुत खूब...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 6, 2013 at 11:15am

///तेरी खुशबू के रंगोँ से, बहारोँ की धनक महके,

तेरी आवाज़, क़ुदरत का सुकूँ, हाए, सुभान’अल्ला!/// Waah bahut badhiya daad kubul k

 

aren

Comment by शकील समर on November 6, 2013 at 10:53am

सुभान अल्लाह...क्या कहने।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
10 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service