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Sanjeev Kulshreshtha's Blog (3)

बुलंदी

ना कर  खुदी  को  बुलंद  इतना

कि अपनो का साथ छूट  जाएँ

और खुदा  भी  ना  पूछे,

बता  तेरी  रजा  क्या  हे

गर बढ़ना हे आगे 

तो अपनों को साथ 

लेकर चल

मंजिल पर पहुच कर

कही अकेला ना रह जाये

हर ख़ुशी बेमानी हे

गर अपनों से ना बांटी जाये

Added by Sanjeev Kulshreshtha on April 9, 2012 at 11:55am — 1 Comment

सकून

सच्चाई को खोजने चला था,

झूठ ही झूट मिले,

मोहब्बत खोजने चला,

तो बेवफाई मिली,

जब खोजना छोड़ दिया,

तो तन्हाई मिली,

अब तो खुदी को खोजने चला हूँ ,

जो चाहा था बेवजह था

जो मिला है बेइंतहा है

यूही भटक रहा था

अब सकून ही सकून है |

Added by Sanjeev Kulshreshtha on March 1, 2012 at 1:00pm — 8 Comments

चाहत

जिनको चाहा था, वो अनजानों की भीढ़ में खो गए

जो चाहते हें, वो अपनो  की भीढ़ में खो गए

हम तनहा थे तनहा ही रह गए

काश भीढ़ में चाहत होती

अपनो का ना सही, अनजानों का साथ तो होता

Added by Sanjeev Kulshreshtha on October 4, 2011 at 8:49pm — 1 Comment

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