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अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव's Blog – October 2013 Archive (3)

अमीरी की नई परिभाषा ( व्यंग्य कविता) अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

बच्चन पूछे केबीसी में , रट लो शायद काम आए।                                                              

अमीरों की नई सूची बनेगी, शायद तेरा नाम आए॥                                             

 

प्याज के संग जो रोटी खाये, गरीब नहीं कहलाएंगे।                                        

तैंतीस रुपये कमाने वाले,…

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Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 23, 2013 at 3:30pm — 15 Comments

सार्थक दशहरा (कविता)-अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

सार्थक दशहरा

***************

धर्म की विजय हुई त्रेता में, राम ने मारा रावण को।

उसकी याद में हमने भी, हर साल जलाया रावण को॥                                 

कलियुग में मायावी रावण, रूप बदलकर आता है।              

वो भ्रष्टाचारी,  अत्याचारी,  अनाचारी कहलाता है॥          

अधर्मी रावण का पुतला, हर बरस जलाया जाता है।        

कई रूप में अंदर बैठा रावण, हँसता है, मुस्काता है॥              

अपने अंदर के रावण को ,…

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Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 14, 2013 at 9:00am — 16 Comments

बड़े साहब की गाँधी जयंती (कविता)- अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

बड़े साहब थे बड़े मूड में, भृत्य भेजकर मुझे बुलाये।                                                                                               

छुट्टी का दिन व्यर्थ न जाये, आओ इसे रंगीन बनायें॥                                                                                                          

आज के दिन जो मिले नहीं, उस चीज का नाम बताये।                                                                                            

और बोले कहीं से जुगाड़ करो, फिर…

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Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 2, 2013 at 12:30am — 13 Comments

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