सुप्रभात मित्रों , आप सभी के अवलोकन हेतु सत्य सनातन पर लिखी अपनी कुछ पंक्तियाँ | सादर
सत्य सनातन व्याकुल होकर देख रहा अपने उपवन को
खर -पतवार सरीखे मजहब खा जायेंगे सुन्दर वन को ||
मैंने ही सारी वशुधा को एक कुटुंब पुकारा था
मेरी ही साँसों से निकला शांति पाठ का नारा था ||
दया धर्म मानवता जैसी सरल रीत मैंने सिखलाई
परहित धर्म आचरण शिक्षा मैंने ही सबको बतलाई ||
क्या हालत कर दी हे मानव भूल गया क्यूँ अंतर्मन को
खर -पतवार सरीखे मजहब खा जायेंगे सुन्दर…
Added by Manoj Nautiyal on March 15, 2013 at 9:15am — 3 Comments
मित्रों , आज आप सभी के अवलोकन हेतु ..... ब्रिज मंडल की होली की एक छोटी सी झलकी | आशा है आपको यह होली गीत पसंद आएगा |
कान्हा ने होरी खेलन को टोली मस्त बनायी है
ग्वाल ,बाल सब रंग डारे गोपी डरकर घबराई है
ब्रज मंडल में बरसाने से राधा जी की सखियों ने
रंग लायी भर भर पिचकारी धूम मचाने आई है ||
पकड़ो -पकड़ो - इसको श्याम बड़ा नटखट ये
चुपके - छुपके बैठा गोपी संग घूंघट में
घेर…
Added by Manoj Nautiyal on March 5, 2013 at 3:51pm — 4 Comments
वो बात पूछती है अक्सर सहेलियों में
क्या प्यार की लकीरें सच हैं हथेलियों में ||
आया जवाब ऐसा इजहार -ए- मुहोब्बत
ना में जवाब ढूंढो हाँ का पहेलियों में ||
उसकी हसीन सूरत , कैसे बयाँ करूँ मै
हसीन चाँद लाखों जैसे जलें दियों में ||
गुस्ताख ये नजर भी हर सू उसे निहारे
फूलों की शोखियों में रंगीन तितलियों में ||
नाराजगी तुम्हारी मासूमियत भरी हैं
जैसे छुपी मुहोब्बत हो माँ की गालियों में…
Added by Manoj Nautiyal on March 5, 2013 at 12:22am — 3 Comments
Added by Manoj Nautiyal on March 4, 2013 at 8:22pm — 1 Comment
सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||
नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में
जूनून -ए - इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ?
मिटा डाले सभी नगमे…
Added by Manoj Nautiyal on March 1, 2013 at 2:00pm — 8 Comments
दोस्तों एक गजल लिखने की कोशिश की है अपने कुछ मित्रों के सहयोग से आशा है आप लोग अवलोकित करके मुझे मार्गदर्शित करेंगे |
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जूनून -ए-इश्क में आबाद, ना बर्बाद हो पाए
मुहब्बत में तुम्हारी कैद ना ,आज़ाद हो पाए ||
कहानी तो हमारी भी बहुत ,मशहूर थी लेकिन
जुदा होकर न तुम शीरी न हम, फरहाद हो पाए ||
न कुछ तुमने छुपाया था ,न कुछ हमने छुपाया था
न तुम…
Added by Manoj Nautiyal on February 25, 2013 at 6:00pm — 12 Comments
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राजनीति के सिलबट्टे पर घिसता पिसता आम आदमी
मजहब के मंदिर मस्जिद पर बलि का बकरा आम आदमी ||
राजतंत्र के भ्रष्ट कुएं में पनपे ये आतंकी विषधर
विस्फोटों से विचलित करते सबको ये बेनाम आदमी ||
क्या है हिन्दू, क्या है मुस्लिम क्या हैं सिक्ख इसाई प्यारे
लहू एक हैं - एक जिगर है एक धरा पर बसते सारे
एक सूर्य से रौशन यह जग , एक चाँद की…
Added by Manoj Nautiyal on February 22, 2013 at 4:14pm — 4 Comments
मित्रों संसार में मित्रता का सबसे बड़ा उदाहरण है कृष्ण और सुदामा की मित्रता का वृत्तांत | उसी करुण मित्रता के दृश्य को एक रचना के माध्यम से लिखने का प्रयास किया है | कृपया आप अवलोकित करें |
एक बार द्वारिका जाकर बाल सखा से मिल कर देखो
अपने दुःख की करुण कहानी करूणाकर से कह कर देखो ||
हे नाथ ! दशा देखो घर की, दुःख को भी आंसू आयेंगे
तुम्हरी , मेरी तो बात नहीं बच्चों को क्या समझायेंगे ?
भूखी , नंगी व्याकुलता के दर्शन हैं…
Added by Manoj Nautiyal on February 19, 2013 at 5:55pm — 3 Comments
Added by Manoj Nautiyal on February 19, 2013 at 9:37am — 5 Comments
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दिया अब सब्र का भी बुझ रहा अंतिम बगावत है
मगर ये रात खुलती ही नहीं लम्बी अमावस है ||
तमन्ना की जमीं पर जब कभी भी घर बनाया था
हकीकत की लहर ने एक पल में सब डुबा डाला |
मेरी कोशिश मनाने की अभी तक भी निरंतर है
सभी नाराज होने की वजह को भी मिटा डाला ||
तुम्हारा रूठना अब लग रहा मुझको क़यामत है
सभी आदत बदल लूँगा…
Added by Manoj Nautiyal on February 18, 2013 at 3:00pm — 16 Comments
मित्रों गोपियों के विरह को और उनके कृष्ण प्रेम को महसूस करने की कोशिश की है ....... आशा है आपको यह गीत पसंद आएगा
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प्रेम तत्व का सार कृष्ण है जीवन का आधार कृष्ण है |
ब्रह्म ज्ञान मत बूझो उद्धव , ब्रह्म ज्ञान का सार कृष्ण हैं ||
मुरली की धुन सामवेद है , ऋग् यजुर आभा मुखमंडल
वेद अथर्व रास लीला है ,शास्त्र ज्ञान कण कण…
Added by Manoj Nautiyal on February 6, 2013 at 1:00pm — 11 Comments
ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं
बिना बोले कभी आंसू बहुत कुछ बोल जाते हैं
समझने के लिए इनको मोहोब्बत का सहारा है
......नहीं तो देखने वाले तमाशा ही बनाते हैं ||
सिसक हो बेवफाई की कसक चाहे जुदाई की
पिघलता है सभी का दिल हवन की आहुती जैसे
ख़ुशी नमकीन पानी से अधिक रंगीन बनती है
कभी आंसू लगे सैनिक कभी हो सारथी जैसे ||
कहीं जब दूर जाए लाडला माँ से जुदा होकर
बहाए प्रेम के मोती दुआएं जब निकलती हैं
करे जब याद माँ का घर बहू जो बन…
Added by Manoj Nautiyal on February 1, 2013 at 4:30pm — 8 Comments
जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब
तुम्हारी बात को माने बिना भी रह नहीं सकता
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||
तुम्हे तो सब पता है एक दिन की भी जुदाई में
वो सारा दिन मुझे बासी कोई अखबार लगता था
तुम्हारी दीद के सदके कई दिन ईद होती थी
तुम्हारा साथ जैसे स्वर्ग का दरबार लगता था ||
नज़र किसकी लगी…
Added by Manoj Nautiyal on January 31, 2013 at 7:30pm — 9 Comments
प्रेम की बात करते हो बड़े ही गर्व में रह कर
प्रेम जब हो गया तुमको पहन ली शर्म की चादर ||
जहाँ पर प्यार होता है वहां इनकार होता है
वहीँ इकरार की खातिर तड़पते हैं कई रहबर ||
गुरूर-ए -इश्क में रहना रिवाज -ए -हुस्न की फितरत
अदाओं की पनाहों में मिटे आशिक कई बनकर ||
तुम्हे मालूम है जब भी हमारा दिल धड़कता है
मुझे मालूम होता है तुम्हारी याद है दिलबर…
Added by Manoj Nautiyal on January 30, 2013 at 9:45pm — 1 Comment
कभी नहीं बन सकता हूँ मै हरिश्चंद्र जी का अनुगामी
..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||
कितने ही शब्दों को मैंने सच्चाई से डरते देखा
अपने ही भावों को अक्सर अंतर्मन में मरते देखा
दुःख की सर्द सुबह और रातें पीड़ा की गर्मी भरते हैं
आहों की स्वरलहरी दबकर आत्मपीड मंथन करते हैं
कल्पित दुनिया नहीं मिटा सकती है सच की सूनामी
..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||
नहीं मिला है मुझे अभी तक दर्पण जैसा परम हितैषी
खोजे केवल मुझको मुझमे…
Added by Manoj Nautiyal on January 30, 2013 at 12:16pm — 7 Comments
देश चलाने वाले ही जब बिकने को तैयार खड़े हों
पैदा होते ही बचपन का पालन पोषण कर्ज तले हो
आम आदमी के घर में हो दो रोटी की खातिर दंगे
कौन बचाए अस्मित माँ की जिसके लाल दलाल बने हों ।।
धर्म नाम की धोखेबाजी मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में
रक्तपात के उपदेशों का पाठ चल रहा हर द्वारे में
घोटालों की राजनीति में सब गुदड़ी के लाल पड़े हों
कौन बचाए अस्मित माँ की जिसके लाल दलाल बने हों ।।
हिजड़ों की बस्ती के दर्शन दिल्ली के दरबार मिलेंगे
संचालक मैडम के आसन दस जनपथ…
Added by Manoj Nautiyal on December 5, 2012 at 9:25pm — 9 Comments
आग लगाकर इक पुतले को परचम लहराएगी जनता
असली रावण मंच विराजित जय कारे गायेंगी जनता
दस शीशों से पहचाना था जिस रावण को पुरसोत्तम ने
कल युग में बस एक शीश से कैसे पहचानेगी जनता ?
कुम्भकरण भर पेट पड़े हैं इन्द्रप्रस्थ के दरबारों में
भांति भांति के इन्द्रजीत हैं गली गली में चौबारों में
चोरों की चौपाल जहाँ हो वहां भला क्या होगी समता
कल युग में बस एक शीश से कैसे पहचानेगी जनता ?
दूषित मन की अभिलाषाएं अखबारों की ताजा ख़बरें
चौराहे पर स्वेत वस्त्र में लिपटे हैं…
Added by Manoj Nautiyal on October 23, 2012 at 5:36pm — 4 Comments
अर्थ रह गए गलियारों में शब्द बिक रहे बाजारों में
रचनाओं के सृजन कर्ता भटक रहे हैं अंधियारों में ।।
केवट भी तो तारक ही था जिसने तारा तारन हारा
कलयुग में ये दोनों अटके विषयों के मझधारों में ।।
कृष्ण नीति की पुस्तक गीता सच्चाई को तरसे देखो
हर धर्म धार दे रहा बेहिचक आतंकी के औजारों में ।।
मंदिर मस्जिद घूम रहा है धर्म नहीं है जिस पंछी का
धर्म ज्ञान को रखने वाला झुलस रहा है अंगारों में ।।
धर्मों के…
ContinueAdded by Manoj Nautiyal on October 22, 2012 at 9:58am — 5 Comments
कभी गुलामी के दंशों ने , कभी मुसलमानी वंशों ने
मुझे रुलाया कदम कदम पर भोग विलासीरत कंसो ने
जागो फिर से मेरे बच्चों शंख नाद फिर से कर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो||
मनमोहन धृष्टराष्ट बन गया कलयुग की पहचान यही है
गांधारी पश्चिम से आकर जन गण मन को ताड़ रही है
भरो गर्जना लाल मेरे तुम माँ का सब संकट हर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो…
Added by Manoj Nautiyal on October 19, 2012 at 7:18am — 5 Comments
हमारे हौसले अब भी उन्हें छू कर निकलते हैं
उन्हें शक है मुहोब्बत में कई शोले पिघलते हैं ।।
कोई अनजान सा गम है जुदाई के पलों का भी
ये कैसी आग है जिसमे बिना जल कर सुलगते हैं ।।
खफा होती हुयी जब भी दिखाई दी हमें चाहत
खता कुछ भी नहीं रहती बिना कारण चहकते हैं ।।
सुना है आज कल उनकी गली में हुश्न तनहा है
घडी भर दीद करने को भला क्यूँ कर हिचकते हैं…
Added by Manoj Nautiyal on October 19, 2012 at 7:16am — 2 Comments
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