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Nilesh Shevgaonkar's Blog (183)

ग़ज़ल -निलेश "नूर"

मुझे वो याद करते हैं जो भूले थे कभी मुझको,

बस ऐसे ही जहां भर की मिली है दोस्ती मुझको.   

.

ज़माना ज़ह्र  में डूबे हुए नश्तर चुभोता है,

बचाती ज़ह्र  से लेकिन मेरी ये मयकशी मुझको.    

.

मुझे कहने लगा ख़ंजर, “मुहब्बत है मुझे तुमसे,

कि इक दिन मार डालेगी तुम्हारी सादगी मुझको.” 

.

ज़माने का जो मुजरिम है सज़ाए मौत पाता है,

मिली मेरे गुनाहों पर सज़ाए ज़िन्दगी मुझको.

.

ख़ुदाया शह्र -ए-पत्थर में बना मुझ को तू आईना,

समझनी है अभी इन…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 29, 2014 at 6:30pm — 24 Comments

"नूर" की ग़ज़ल -देख तेरा जो हाल है प्यारे

२१२२ १२१२ २२/११ २  

.

देख तेरा जो हाल है प्यारे

ज़िन्दगी का सवाल है प्यारे.

.

लोग मुर्दा पड़े हैं बस्ती में,

बस तुझी में उबाल है प्यारे.

.

आम कहता है ख़ुद को जो इंसाँ,

उसकी रंगत तो लाल है प्यारे.

.

उसकी थाली में मुझ से ज़्यादा घी,

बस यही इक मलाल है प्यारे. 

.

हम ने अपना लहू भी वार दिया,

सबको लगता गुलाल है प्यारे.   

.

ख़ाक ही ख़ाक बस उड़ेगी अब,

ये हवाओं की चाल है प्यारे. 

.

अब तो…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 5, 2014 at 9:30pm — 21 Comments

ग़ज़ल -निलेश "नूर"

२१२२, २१२२,२१२२, २१२२  



क्या सुनाऊं दोस्त तुझको ज़िन्दगानी की कहानी,

चार सू तूफ़ान हैं और अपनी कश्ती बादबानी.

***

जब मिले पहले पहल तुम, ख्व़ाब थे रंगीन सारे,

सुर्ख आँखें हैं मेरी उस दौर की ज़िन्दा निशानी.

***

याद की इन आँधियों में दिल बिखर जाता है ऐसे,   

जिल्द फटने पर बिखरती डायरी जैसे पुरानी.

***

देर तक रोता रहा क़ातिल मेरा, मैंने कहा जब, 

जान तू ले ले मेरी तो होगी तेरी मेहरबानी.

***

खो गए है हर्फ़ सारे, बुझ गए…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2014 at 11:00am — 31 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है

२१२२/२१२२/२१२ 

.

जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है,

फिर भी वो कहता हमें मगरूर है.

.

दोष है फ़ितरत का, ज़ख्मों का नहीं,

ज़ख्म जो प्यारा है वो नासूर है.   

.

ख़ासियत कुछ भी नहीं उसमे, फ़क़त,

वो मेरा क़ातिल है सो मशहूर है.

.

नब्ज़ मेरी थम गयी तो क्या हुआ,

जान मुझ में आज भी भरपूर है.

.

जिस्म है बाक़ी हमारे दरमियाँ,

पास है, लेकिन अभी हम दूर है.

.

बात अब उनसे मुहब्बत की न कर,

लोग समझेंगे, नशे में चूर है.…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2013 at 5:00pm — 27 Comments

कटाक्ष -हे ईश्वर ...

हे ईश्वर

.

जूते का फीता बांधकर जैसे ही उठा, सामने किसी अपरचित को खड़ा देख मै चौक गया. लगा की मै सालों से उसे जानता हूँ पर पहचान नहीं पा रहा हूँ. बड़े संकोच से मैंने पूछा-" आप--", मै अपना प्रश्न पूरा करता इस-से पहले ही उन्होंने बड़ी गंभीर आवाज़ में कहा -" मै ईश्वर हूँ".

उन की गंभीर वाणी में कुछ ऐसा जादू था की मुझे तुरंत विश्वास हो गया की मै इस पूरी कायनात के मालिक से रूबरू हूँ. मैंने खुद को संभाला और अपे स्वभाव के अनुरूप उन पर प्रश्नों की झड़ी लगा दी.…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 17, 2013 at 8:30am — 9 Comments

ग़ज़ल-निलेश'नूर'-न समझो लड़ाई वो हारा हुआ है

१२२/१२२/१२२/१२२ 



न समझो लड़ाई वो हारा हुआ है,

उसे हारने का इशारा हुआ है.

***

उसे चाँद तारों की संगत मिली थी,

वो आवारगी में हमारा हुआ है.

***

मरूँगा, बचूंगा, नहीं है पता ये,

मगर वार दिल पे, करारा हुआ है.

***

बचा है वो ऐसे, जिसे डूबना था,      

कि फिर कोई तिनका सहारा हुआ है.  

***

सिकुड़ने लगा है मेरा आसमां अब,

नज़र से नज़र तक, नज़ारा हुआ है. 

***

वो आतिशफिशा था, मगर अब ये…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 12, 2013 at 9:17am — 44 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-ऐब खुद में ....

ऐब खुद के ढूंढकर उनसे किनारा कर लिया,

उस जहाँ के वास्ते थोडा सहारा कर लिया.

...

एक पल पर्दा हटा, आँखें खुली बस एक पल,  

क्या ही था वो एक पल, क्या क्या नज़ारा कर लिया.

...

दर्द हद से बढ़ गया, लेनें लगा फिर जान जब,

दर्द हम जीने लगे उसको ही चारा कर लिया.

...

इक तरफ़ तो मौत थी औ इक तरफ़ बेइज्ज़ती,

और हम करतें भी क्या, मरना गवारा कर लिया.

...

वो हमारे दिल को तोड़ें, था हमें मंज़ूर कब,

हमने ही खुद दिल को अपने पारा पारा कर…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 5, 2013 at 7:00am — 17 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर' -लोग फिर

ग़ज़ल 

लोग फिर बातें बनाने आ गए,

यार मेरे, दिल दुखाने आ गए. 

...

जिंदगी का ज़िक्र उनसे क्या करूँ,

मौत को जो घर दिखाने आ गए.

...

रूठनें का लुत्फ़ आया ही नहीं,

आप पहले ही मनाने आ गए. 

...

दो घडी बैठो, ज़रा बातें करो,

ये भी क्या बस मुँह दिखाने आ गए.

...

जेब अपनी जब कभी भारी हुई,      

लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.

...

राह से गुज़रा पुरानी जब कभी,

याद कुछ चेहरे पुराने आ गये. …

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 2, 2013 at 8:00am — 19 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-बात जो तुम से निभाई न गई

२१२२, ११२२, २२/ ११२   

.

बात जो तुम से निभाई न गई,

बस वही हम से भुलाई न गई.

....

वो नई रोज़ बना ले दुनियाँ,  

हम से किस्मत भी बनाई न गई.

....

थी दरो दिल पे छपी इक तस्वीर,

जल गया जिस्म, मिटाई न गई.

....

बस मेरे हक़ में बयाँ देना था, 

उन से आवाज़ उठाई न गई.

....

ख्व़ाब था दिल से मिला लें हम दिल,

आँख से आँख मिलाई न गई.  

....

हम गले मिलते भला…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 21, 2013 at 7:30am — 20 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'- रहा देर तक भटकता

२२१ २/१२२ /२२१ २/१२२

.

मेरा जह्न बुन रहा है, हर रब्त रब्त जाले,

पढता ग़ज़ल मै कैसे, लगे हर्फ़ मुझ को काले.

...

मेरी धडकनों का मक़सद मेरी जिंदगी नहीं है,

के ये जिंदगी भी कर दी किसी और के हवाले. 

...

मेरी नाव डूबती है, तेरे साहिलों पे अक्सर,

मुझे काश इस भँवर से तेरी आँधियाँ निकाले.  

...

अगर आ सके, अभी आ, तुझे वास्ता ख़ुदा का,

मेरा दम निकल रहा है, मुझे गोद में समा ले.

...

रहा देर तक भटकता किसी छाँव के लिए वो,…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 19, 2013 at 3:25pm — 24 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-किसी के दिल से

1212 1122 1212 22  

...

किसी के दिल से, निगाहों से जो उतर जाए,

भला वो शख्स अगर जाए तो किधर जाए.

...

बहुत उड़ान ये भरता है आसमानों की,  

कोई तो चाँद के दो चार पर क़तर जाए.

...

सुलग रहे है जुदाई की आग में हम तुम,

इस आरज़ू में जले है, ज़रा निखर जाए.

...

पता नहीं हैं हुई क्या हमारी मंज़िल अब,

निकल पड़े हैं जिधर लेके रहगुज़र जाए. 

...

सँभालियेगा इसे आप अब नज़ाक़त से,

कहीं न दिल ये मेरा टूट कर बिखर…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 18, 2013 at 8:38am — 17 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर' ---ख़ुशबू

२ १ २  २   १ १ २ २  १ १ २ २, २ २ /११२



दिल के ज़ख्मों से उठी जब से गुलाबी ख़ुशबू,

शह्र में फ़ैल गई मेरी वफ़ा की ख़ुशबू.

...

ये महक, बात नहीं सिर्फ हिना के बस की,  

गोरी के हाथों महकती है पिया की ख़ुशबू.

...

फूल को ख़ुद में समेटे हुए थी कोई क़िताब,

फूल से आने लगी आज क़िताबी ख़ुशबू. 

...

वो कडी धूप में निकले तो हुआ यूँ महसूस,

जैसे निकली हो पसीने में नहाती ख़ुशबू.  

....

चंद लम्हात गुज़ारे थे तुम्हारे नज़दीक़,  …

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 15, 2013 at 7:41am — 17 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'--उठेगी जब तेरी अर्थी

उठेगी जब तेरी अर्थी, ये नज्ज़ारा नहीं होगा,

चिता को आग देगा, क्या, तेरा प्यारा नहीं होगा?

.

हमारे आंसुओं को तुम जगह लब पर ज़रा दे दो.

यकीं जानों कि इनका ज़ायका खारा नहीं होगा.

.

नज़र मुझ से मिलाकर अब ज़रा वो बेवफ़ा देखे,

फिर उसके पास मरने के सिवा चारा नहीं होगा.

.

बहुत से लोग दुनियाँ में भटकते है मुहब्बत में,

जहां भर में कोई सूरज सा आवारा नहीं होगा.

.

ठहरता ही नहीं है ये कहीं भी एक भी पल को,

समय सा कोई भी फक्कड़ या…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 12, 2013 at 10:48pm — 17 Comments

ग़ज़ल-निलेश 'नूर'- चाँद सूरज और सितारे आ गए

२१२२, २१२२, २१२  
चाँद सूरज और सितारे आ गए,
ख्व़ाब में क्या क्या नज़ारे आ गए.    
.

ख़ूब मौका डूबने का था मिला,
और हम फिर भी किनारे आ गए. 
.

जब नज़र की बात नज़रों नें सुनी,  
दरमियाँ क्या कुछ इशारे आ गए.
.

है समाई धडकनों में धडकनें,  
पास वो इतने हमारे आ गए.
.

जब मिला ग़म या ख़ुशी कोई मिली,
आँखों में दो अश्क़ खारे आ गए.   
.
मौलिक व अप्रकाशित 
निलेश 'नूर'

Added by Nilesh Shevgaonkar on November 10, 2013 at 9:30pm — 22 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'- नहीं चलता है वो मुझ को

1222/ 1222/ 1222/ 1222

.

नहीं चलता है वो मुझ को जो कहता है कि चलता है,

यही अंदाज़ दुनियाँ का हमेशा मुझ को खलता है.

***

सलामी उस को मिलती है, चढ़ा जिसका सितारा हो,

मगर चढ़ता हुआ सूरज भी हर इक शाम ढलता है.

***

न तुम कोई खिलौना हो, न मेरा दिल कोई बच्चा,

मगर दिल देख कर तुमको न जाने क्यूँ मचलता है.

***

किनारे है…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 27, 2013 at 8:30am — 12 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'- वक़्त ज़ाया करो, न राहों में....

२१२२ १२१२ २२   

.

वक़्त ज़ाया करो, न राहों में,

मंजिलों को रखो निगाहों में.

.

फूल ही फूल दिल में खिलते है,

आप होते हो जब भी बाहों में.

.

है नुमाया पता नहीं क्या कुछ,

और क्या कुछ छुपा है चाहों में.

.

तख़्त ताज़ों को ये उलट देंगी,

वो असर है मलंग की आहों में.

.

है डराती मुझे मेरी वहशत,

तू मुझे ले ही ले पनाहों में.

.  

आज है वक़्त तू संभल नादां,

क्यूँ फंसा है बता गुनाहों में.

.

साथ देने लगे हो…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2013 at 11:47am — 14 Comments

ग़ज़ल-निलेश 'नूर'- कोई दर्द आँखों में दिखता नहीं है...

122, 122, 122, 122



कोई दर्द आँखों में दिखता नहीं है,

है इंसान कैसा, जो रोया नहीं है??

***

मेरी बात मानों, न यूँ ज़िद करो अब,

दुखाना किसी दिल को अच्छा नहीं है.

***

सभी है किसी और की खाल ओढ़े,

तेरे शह्र में, कोई सच्चा नहीं है.

***

मुझे देख रंगत बदलता है अपनी,

वगरना वो बीमार लगता नहीं है.

***

लगाया करो आँख में…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 6:27pm — 13 Comments

ग़ज़ल - निलेश 'नूर'- धडक मत ऐ दिले नादाँ, किसी की याद आई है

१२२२,१२२२,१२२२,१२२२

.

वो लेतें है शिकायत में, कि लेतें है मुहब्बत में,

हमारा नाम लेतें है वो अपनी हर ज़रूरत में,

***

मै राजा और तुम रानी, ये दुनियाँ सल्तनत अपनी,

हक़ीक़त में नहीं होता, ये होता है हिक़ायत में.

***

ये रुतबा, ओहदा, शुहरत, सभी हमनें भी देखें है,

छुपा है कुछ, नुमाया कुछ, शरीफ़ों की शराफ़त में. 

*** 

मेरे ही क़त्ल का इल्ज़ाम क़ातिल ने मढ़ा मुझ पर,

गवाही भी वही देगा, वो ही मुंसिफ़…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 9:40am — 24 Comments

मिला नज़र से नज़र, सब्र आज़माते रहे,

1212 1122 1212 22  .... अंतिम रुक्न ११२ भी पढ़ा गया है ..

.

नज़र, नज़र से मिला, सब्र आज़माते रहे,

मेरे रक़ीब मुझे देख, तिलमिलाते रहे.  

घटाएँ, रात, हवा, आँधियाँ करें साज़िश,

मगर चिराग़ ये बेखौफ़ जगमगाते रहे.

.

गुनाह, जुर्म, सज़ा, माफ़ आपकी कर दी,

ये कह दिया तो बड़ी देर सकपकाते रहे.

.

खफ़ा खफ़ा से रहे बज़्म में सभी मुझसे,

वो पीठ पीछे मेरे शेर गुनगुनाते रहे.  

.

मिला हमें न सुकूँ दफ्न कब्र में होकर,

किसी…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 20, 2013 at 10:30pm — 26 Comments

ग़ज़ल; निलेश 'नूर' -झटक के ज़ुल्फ़

1212 1122 1212 22 

 

झटक के ज़ुल्फ़ किसी ने जो ली है अंगडाई,

ये कायनात लगे है हमें कुछ अलसाई.

**

किसी से प्यार न पाया सभी ने ठुकराया,

मिली यहाँ है मुहब्बत में सिर्फ रुसवाई.

**

किये थे रब्त सभी आपने कत’आ मुझसे,

जो कामयाब हुआ तब बढ़ी शनासाई. 

**

बता रहे थे मुझे, एक दिन, सभी पागल,

हुए सभी वो यहाँ लोग, आज सौदाई.

**

मुहब्बतों के सफ़र से ही लौट कर हमनें,

न करिए इश्क़ कभी, बात सबको समझाई.…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 3:30pm — 11 Comments

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