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Sushil Sarna's Blog – November 2021 Archive (2)

तेरे मेरे दोहे ......

तेरे मेरे दोहे :......

बनकर यकीन आ गए, वो ख़्वाबों के ख़्वाब ।

मिली दीद से दीद तो, फीकी लगी शराब ।।

जीवन आदि अनंत का, अद्भुत है संसार ।

एक पृष्ठ पर जीत है, एक पृष्ठ पर हार ।।

बढ़ती जाती कामना ,ज्यों-ज्यों घटता  श्वास ।

अवगुंठन में श्वास के, जीवित रहती प्यास ।।

कल में कल की कामना ,छल करती हर बार ।

कल के चक्कर में फँसा , ये सारा संसार ।।

बेचैनी में बुझ गए , जलते हुए चराग़ ।

उम्र भर का दे गए, इस…

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Added by Sushil Sarna on November 28, 2021 at 1:30pm — 16 Comments

बन्धनहीन जीवन :. . . .

बन्धनहीन जीवन :......

क्यों हम 

अपने दु :ख को

विभक्त नहीं कर सकते ?

क्यों हम

कामनाओं की झील में

स्वयं को लीन कर

जीवित रहना चाहते हैं ?

क्यों

यथार्थ के शूल

हमारे पाँव को नहीं सुहाते ?

शायद

हम स्वप्न लोक के यथार्थ से

अनभिज्ञ रहना चाहते हैं ।

एक आदत सी हो गई है

मुदित नयन में

जीने की ।

अन्धकार की चकाचौंध को

अपनी सोच की हाला में

मिला कर पीने की…

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Added by Sushil Sarna on November 10, 2021 at 1:54pm — 4 Comments

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