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Somesh kumar's Blog – October 2014 Archive (13)

आदत-मजबूरी (लघुकथा)

आदत-मज़बूरी

जाम में फंसी गाड़ी पर उस लड़के ने कपड़ा रगड़ा और मुहँ-पेट की तरफ़ ईशारा किया तो उसने उसकी तरफ़ ध्यान ना देते हुए अपनी 5 मासी गर्भवती पत्नी से कहा –“सालों की आदत है ,भिखमंगे कहीं के “

एक बुढ़ा अगरबत्ती के पैक्ट लेकर पहुँचा और मुँह-पेट की तरफ ईशारा किया – “30 की दो ले लो - - -“

“ऊँह ,भावनाओं के नाम पर लुट रहा है बुड्ढा - - ” उसने पत्नी को देखकर धीरे से कहा |

गजरे बेचने वाली जब वो मलिन औरत आई तो पत्नी की आँखों में आई चमक को देखकर कहा

“बासी फूल हैं और जाने…

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Added by somesh kumar on October 30, 2014 at 9:30pm — 10 Comments

मानसिकता

     मानसिकता

“ सुना है ,कल छठ की गजटेड छुट्टी है ? ” मिस कामिनी ने चिप्स मुँह में भरते हुए कहा

“जी |”

“ अच्छा है एक और दिन आराम को मिला पर किसी और पर्व पे करनी चाहिए थी इसीलिए तो इन लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है दिल्ली में - - - “उन्होंने गिरे हुए चिप्स को पैरों से रौंदते हुए कहा |

“तो कहाँ जाएँगे ये लोग !क्या ये देश/शहर इनका नही हैं ?”

“वहीं रहें ,सिर्फ उतने आने दिए जाएँ जिससे गंदगी ना हो और हमे लेबर वगैरह आराम से मिलते रहें “उन्होंने खाली पैक्ट वहीं फैंक…

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Added by somesh kumar on October 28, 2014 at 11:24pm — 8 Comments

खुशियों की तारीख

खुशियों की तारीख

अस्पताल के हृदय-वार्ड में वो दम्पति उदास और गमगीन बैठा था |रह-रह कर उनके गलों से आँसू नीचे ढलक रहे थे |दीवाली और तीन साल की इकलौती बेटी के जन्मदिन में शामिल ना हो पाने की कसक ने उनके अंदर चक्रवात ला दिया था |स्त्री के हृदय-आपरेशन के बाद आई विसंगतियों के कारण वे घर से 250 किमी दूर यहाँ बेटी को एक पड़ोसी के यहाँ छोडकर पड़े थे | राम जी को जब सारी स्थिति पता चली तो वो दम्पति के पास पहुँचे और पति के काँधे पर हाथ रखकर समझाया –ये सही रहीं तो जीवन की कितनी ही दिवाली…

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Added by somesh kumar on October 27, 2014 at 11:00pm — 2 Comments

गली में खेलती वो लड़की

गली में खेलती वो लड़की

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गली में खेलती वो लड़की

कई आँखों के केंद्र में है |

कुछ आँखों के लिए वो सरसरी भर है

कुछ दूरबीन लगाए बैठी हैं

देखती रहती हैं 

उसकी हर छोटी-बड़ी चपलता 

कुछ आँखों के लिए वो किरकिरी है

लगातार बदलती हवा का

दुष्परिणाम 

इतनी बड़ी लड़की का गली में खेलना..

मतलब, उसे गलत दिशा में धकेलना है !

अच्छा नहीं होता 

लड़कियों को इतनी छूट का मिलना 

इसीकारण, उसकी माँ उसे देती रहती है नसीहतों के घूँट…

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Added by somesh kumar on October 27, 2014 at 11:30am — 10 Comments

कहानी : मस्जिद का स्पीकर

मस्जिद के स्पीकर से उठने वाले शोर से वो परेशान थे |सुबह सोते वक्त ,दोपहर में रामायण पढ़ते समय या फ़ोन पे गम्भीर हिंदूवादी चर्चा करते हुए उनके कामों में वो स्पीकर से उठने वाली आवज़ उनके कामों को बाधित कर देती |रिटायर्मेंट की पूंजी से यही एक आशियाना लिया था एक महीने पहले पर अब बेटा-बहू और वे स्वयं उलझन में थे कैसे बाहर निकले |कई बार मन हुआ कि अपने मत के संगठनों में शिकायत कर प्रशासनिक दबाब बनाएँ  पर हाल के दिल दहला देने वाले दंगों की यादों ने उनकी हिम्मत छीन ली |इतना पैसा तो था नहीं कि कहीं और…

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Added by somesh kumar on October 24, 2014 at 4:00pm — 10 Comments

बोलती बंदिशे

“तू लड़की होकर भी हमेशा गली में लड़कों के साथ खेलती रहती है, ये बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता |“

पड़ोसी अंकल ने रितिका को समझाते हुए कहा |

“हाँ अंकल जी !  मगर ये तो अच्छा लगता होगा न कि लड़के हमें देखकर छींटाकशी करें,  और हमें चुप रहने और घर में रहने की नसीहत दी जाए ?”

अंकल जी चुपचाप बेटे को लेकर घर में चले गए |

.

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

Added by somesh kumar on October 20, 2014 at 10:30pm — 1 Comment

ढीली लगाम

"अगर पी.पी.एफ कि डिटेल्स मिल जाती तो मैं अपनी सम्पति का ब्यौरा दे देती ताकि वीज़ा मिलने में आसानी रहे |” श्रीमती धनकड़ ने कहा

“आप तो वी.आर.एस.लेकर वहीं सेटल होने वाली हैं ना ?” एक साथी ने पूछ लिया

“दिमाग थोड़े खराब है ! इतनी अच्छी सरकारी नौकरी,मूंगफली फोड़नी नहीं, घुमने-फिरने जाते रहेंगे | वैसे भी वहाँ के क़ानून बहुत सख्त हैं ,अपनी तो यहीं बल्ले-बल्ले है जी |”

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

Added by somesh kumar on October 19, 2014 at 9:30am — 3 Comments

शर्म (लघुकथा)

कुत्तों की भोऊ-भोऊ,कोऊ-कोऊ, केए–केए से आवेशित हो कर अनुज बाहर आता है | पीछे छुपाए हुए डंडे को लेकर आगे बढ़ता है बाकी कुत्ते भाग खड़े होते हैं, पर आलिंगनबद्ध जोड़े के ऊपर तीन-चार डंडे भाज देता है | कराहता-चीखता-प्रतिरोध करता युग्ल कुछ दूर चला जाता है | खीझा हुआ अनुज अपनी पत्नी कि कोमल पुकार पर घर के भीतर हो लेता है | मोहल्ले के अन्य शर्मसार लोग भी अपने घरों के दरवाजें, खिड़कियाँ, बतियाँ बंद करने लगते हैं | बाहर स्ट्रीट-लाइट में युग्ल प्रतिद्वन्दियों के बीच, बेझिझक अपने प्रेम-अनुमोदन और सृजनीकरण…

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Added by somesh kumar on October 18, 2014 at 11:00pm — 4 Comments

समरूपता

“मोनू बेटा आज मालकिन ने 500 रुपया ईनाम दिए हैं ,चलो तुम्हें दिवाली के नए कपड़े दिलवा दें “माँ ने कहा

“माई ,हमे स्कूल कि ड्रेस दिवाए दो,प्रार्थना में गुरूजी अलग खड़ा कर देत हैं |”बच्चे के चेहरे पर संतोषभरी मायूसी थी |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

Added by somesh kumar on October 17, 2014 at 7:30pm — 5 Comments

घर-घर रोशनी-एक मिशन

घर-घर रोशनी

एक नागरिक के रूप में हम सब सरकार से अधिकाधिक सुविधा चाहते हैं परंतु जब कर्तव्य-पालन की बात आती है हममें से अधिक्तर दुसरे की तरफ देखते हैं | जव फला व्यक्ति की ड्यूटी है अगर वो नहीं करता तो हम क्यों सिर-दर्द लें ?भले ही हम ना माने पर यही रवैया हमारे जीवन को प्रभावित करता है |हममे से जो भी लोग टैक्स देते हैं वे सभी सरकार और अन्य एजेंसीयों से आशा रखते हैं की हमे बेहतरीन सुविधा सरकार उपलब्ध कराए |हम सभी चाहते हैं की हमारी गलियाँ-सड़के-मेन-रोड रात्रि को प्रकाशमय रहें |और सरकार इस…

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Added by somesh kumar on October 16, 2014 at 11:30am — 3 Comments

कर्मठ (लघुकथा)

कर्मठ

जैसे ही पता चलता है कि नेताजी स्कूल प्रांगण में आ चुके हैं |कर्मवीर जी सक्रिय हो जाते हैं और दिनेश से माईक लेकर स्वागत कि घोषणा करते हैं |फिर कार्यक्रम के समापन तक सभी जगह सभी के साथ कर्मठ कर्मवीर जी कैमरे में कैद हो जाते हैं |मंच से कुछ दूर कुर्सी पर बैठा दिनेश अपनी निष्क्रियता पर गहरी सांस लेता है और कर्मठ कैमरे और कर्मठ कर्मवीर जी के चेहरे पर बार-बार आ रहे फ़्लैश को देखता रहता है |

 C-@-सोमेश कुमार

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Added by somesh kumar on October 11, 2014 at 7:00pm — 7 Comments

थका-हारा-मेहनतकश आदमी

थका-हारा-मेहनतकश आदमी

थका-हारा-मेहनतकश आदमी कहीं भी सो सकता है

24 घंटे चिल्लाती पौं-पौं पी-पी पू-पू करती

धूल फांकती धुआं चाटती सड़को के फूटपाथों पे भी |

उसके फेफड़े बहुत मज़बूत होते हैं…

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Added by somesh kumar on October 8, 2014 at 12:00am — 7 Comments

प्रेम-कर्तव्य और सदाबहार

प्रेम-कर्तव्य और सदाबहार

संकर-जाती के दो सदाबहार

एक कर्तव्य-बोध दूसरा प्रतीक-प्यार

रोप थे इस बार/देशी के मुरझाने के बाद

उम्मीद थी दोनों बढ़ेंगे-खिलेंगे

मेरे जीवन में नव-रंग भरेंगे

लाएँगे फिर मधुमास

पूरा था विश्वास/मन में था उल्लास |

मगर प्रेम-प्रतीक कुम्हला गया है

उसके अस्तित्व पे संकट आ गया है

बरसात के पानी ने उसकी जड़े गला दी

उसके होने कि प्रासंगिकता घटा दी हैं |

यूँ तो वो शुरु से कमज़ोर था

और यदा-कदा…

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Added by somesh kumar on October 6, 2014 at 9:30am — No Comments

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