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Saurabh Pandey's Blog – October 2011 Archive (5)

दीप जले -- (छंद : मत्तगयंद सवैया और घनाक्षरी)

 

पाँति सजी मनभावन, पावन दीप जले,…

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Added by Saurabh Pandey on October 31, 2011 at 1:30pm — 2 Comments

जो बीते... तो बीत गये --- सौरभ

 

कंधे पर मेरे एक अज़ीब सा लिजलिजा चेहरा उग आया है.. .

गोया सलवटों पड़ी चादर पड़ी हो, जहाँ --

करवटें बदलती लाचारी टूट-टूट कर रोती रहती है चुपचाप.



निठल्ले आईने पर

सिर्फ़ धूल की परत ही नहीं होती.. भुतहा आवाज़ों की आड़ी-तिरछी लहरदार रेखाएँ भी होती हैं

जिन्हें स्मृतियों की चीटियों ने अपनी बे-थकी आवारग़ी में बना रखी होती हैं

उन चीटियों को इन आईनों पर चलने से कोई कभी रोक पाया है क्या आजतक?..

 …

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Added by Saurabh Pandey on October 15, 2011 at 9:30am — 20 Comments

जीवन-सार --- (छंद - घनाक्षरी) --- सौरभ

 

नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे  अभूतपूर्व

साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥

साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता

जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥

बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान,  पत्नि-पूत

धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥

राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग

मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये  ॥4॥

***************

हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि

विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा  ||1||

हो खरा…

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Added by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 11:00pm — 18 Comments

ग़ज़ल - (तरही मुशायरा -15 में सम्मिलित)

 

ज़िन्दग़ी का रंग हर स्वीकार होना चाहिये

जोश हो, पर होश का आधार होना चाहिये ||1||



एक नादाँ आदतन खुशफहमियों में उड़ रहा

कह उसे, उड़ने में भी आचार होना…

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Added by Saurabh Pandey on October 10, 2011 at 9:46am — 11 Comments

कसौटी जिन्दगी की .. (छंद - हरिगीतिका)

यह सत्य निज अन्तःकरण का सत्त्व भासित ज्ञान है

मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है

जो कुछ मिला है आज तक क्या है सुलभ बस होड़ से?

इस जिन्दगी की राह अद्भुत, प्रश्न हैं हर मोड़ से    ||1||…



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Added by Saurabh Pandey on October 4, 2011 at 1:30pm — 33 Comments

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गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
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