मानसून की देर से, खेतहि फटे दरार,
ताके किसना मेघ को, आपस में हो रार.
मानसून की अधिकता, बारिश हो घनघोर
उजड़ा घर अरु खेत अब, देखत सब चहु ओर
तीव्र पानी प्रवाह से, वन गिरि भी थर्राय
नर पशु पानी में बहे, किसको कौन बचाय .
उथल पुथल भइ जिंदगी, कहते जिसे विकास.
जलवायु दूषित हुई, आम हो गया ख़ास
राग द्वेष का जोर है, प्रीती नहीं सुहाय,
भाई से भाई लड़े, संचित धन भी जाय..
फैशन की अब होड़ है, फैशन…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 9:30am — 19 Comments
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