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प्रो. विश्वम्भर शुक्ल's Blog – July 2013 Archive (6)

कुछ दोहे भोर के ~~

मन सिहरा ,ठहरा तनिक ,देखा अप्रतिम रूप ,

भोर सुहानी ,सहचरी ,पसर गई लो, धूप !

रश्मि-रश्मि मे ऊर्जा और सुनहरा घाम,

बिखर गया है स्वर्ण-सुख लो समेट बिन दाम !

सुन किलकारी भोर की विहंसी निशि की कोख ,

तिमिर गया ,मुखरित हुआ जीवन में आलोक !

उगा भाल पर बिंदु सा लो सूरज अरुणाभ ,

अब निंदिया की गोद में रहा कौन सा लाभ !

_______________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ 

(मौलिक और अप्रकाशित )

Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 12, 2013 at 11:00pm — 11 Comments

गीतिका ~

चेहरे पर चेहरे जड़े हैं,

अक्स लोगों से बड़े हैं !

खो गई पहचान जब से 
जहाँ थे अब तक खड़े हैं !

अभी फूलों मे महक है 

इम्तहां आगे कड़े हैं !

ठोकरों से दोस्ती है ?
राह मे पत्थर पड़े हैं !

इन्हें कुछ कहना नहीं 
दर्द हैं ,चिकने घड़े हैं !
_______________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल 

(मौलिक और अप्रकाशित )

Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 9, 2013 at 9:30pm — 13 Comments

मुक्तक ~

१~

बदलता अब कौन अपना आचरण है,

मधुर-स्मिति दर्द का ही आवरण है,

अनकहे शब्दों ने ढूँढी राह है ये 

बादलों के बीच मे कोई किरण है !



२~

कोई छोटे हैं तो कोई बड़े हैं न,

हम सभी मुखौटे लिए खड़े हैं न,

असली चेहरा न तलाशिये हुज़ूर 

एक चेहरे पर कई चेहरे जड़े हैं न !

३~

एक अनबुझी प्यास लिए हम गहरे कुएं हुए,

कभी लगी जो आग मित्र,हम उठते धुंएं हुए,

सजे हुए हैं हम…

Continue

Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 5, 2013 at 12:25am — 4 Comments

मुक्तक ~

व्यस्तता ,ज़िंदगी ,खेद है ,

आपका तो वचन ,वेद है,

हैं मधुर आप,हम खुरदुरे 

मित्र ,हम में यही भेद है !

*

दर्द के पुष्प आओ तजें,

हर्ष के पुष्प ही अब सजें,

एक स्मिति अधर पर धरें 

नेह की बांसुरी से बजें !

*

उनको दिखना है अब ,नहीं न ,

छुपते रुस्तम दिखे,कहीं न ,

मुक्त आकाश में…

Continue

Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 3, 2013 at 10:47pm — 6 Comments

कुछ दोहे राहत के नाम ~~

उड़न -खटोले पर चढ़े, आये 'प्रभु' निर्दोष,

अपनी निष्क्रिय फ़ौज में जगा गए कुछ जोश !



राहत की चाहत जिन्हें उन्हें न पूछे कोय ,

इधर-उधर घूमे फिरे और गए फिर सोय !



भटक रहे विपदा पड़े, ढूंढ रहे हैं ठांव ,

ये अपने सरकार जी कब बांटेंगे छाँव ?



विपदा खूब भुना रहे सत्ता का सुख भोग,

भूखे,नंगे ,काँपते इन्हें न दिखते लोग !



श्रेय कौन ले जाएगा मची हुई है होड़,

जोड़-तोड़ के खेल…

Continue

Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 11:15pm — 18 Comments

मुक्तक ~~

एक~

*

नफ़रत जितनी उतना प्यार,

इन पर अपना क्या अधिकार,

एक बिंदु पर पड़ा ठहरना 

सरहद को करना मत पार !



दो~

*

ये कैसी इसकी रफ़्तार ,

बहुत प्यार धीमा है यार ,

सीमाएं कुछ उनकी हैं तो 

अपनी भी सीमा है यार !



तीन~

*

नफरत छोडो ,प्यार लुटाओ 

खुशियाँ और सनेह…

Continue

Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 1, 2013 at 11:13pm — 9 Comments

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