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लो हँसी दूब 

बादल जो छलके 

बहुत खूब 

*
नेह की बूँद 

मन पांखुरी पर 

गिरी अब,लो 
*
मन विभोर 

कर गए बदरा 
जी सराबोर 
*
मुंह चिढाया 

मुस्कुराया भी वो 

फिर बरसा 
*

लिखी हमने 

नेह की एक पाती

हवा ले उड़ी 

*

जल ही जल 

बरस गए मेह

वाह,सस्नेह

*

आई बौछार 

बजे मन के तार 

प्यार ही प्यार 

*

बिन बरसे 

ये बादल रहे ना 

माना कहना 

*
जल अमृत 

विहँसे,उड़े खग 

हर्षित जग 
*

मन प्रसन्न 
बही आखिरकार

रस की धार 
____________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ 

(मौलिक और अप्रकाशित )

 

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Comment by बृजेश नीरज on June 19, 2013 at 10:54pm

बहुत ही सुन्दर हाइकू हैं। वाह! मजा आ गया! मेरी बधाई स्वीकारें!

Comment by वीनस केसरी on June 19, 2013 at 10:07am

वाह वा 

हाइकु विधा जब प्रकृति को बाँधती है तो जैसे चमत्कार ही हो जाता है ..
शानदार अभिव्यक्ति 

Comment by Sumit Naithani on June 18, 2013 at 4:12pm

mazedaar hayku

Comment by Shyam Narain Verma on June 18, 2013 at 2:30pm

अतिसुन्दर और मनभावन प्रस्तुति।   हार्दिक बधाई स्वीकारें।  

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 18, 2013 at 7:45am

आ0 विश्वम्भर सर जी, हाईकू की छोटी-छोटी जल बिन्दु वर्षा की रिमझिम बनकर मन को सराबोर कर गई।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 17, 2013 at 10:48pm

हार्दिक धन्यवाद विजय मिश्र जी ,आपके स्नेह की वर्षा भी तो कुछ कम नहीं ,यह बरसात स्नेह से भीगी फुहारें यूँ ही भिगोती रहें मित्र !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 17, 2013 at 10:46pm

बहुत आभार आपका cootee mukerji जी ,पानी तो खूब बरस रहा है ,क्या लखनऊ क्या दिल्ली और क्या उत्तराखंड ,बस लिख दिए हाइकू ,बहुत दिन से प्यासी थी धरती ,आपका स्नेह ,अपार यूँ ही मिलता रहे हर बार !

Comment by coontee mukerji on June 17, 2013 at 8:36pm

आपकी कवीता और लखनऊ की वर्षा ......दोनों की खूब जम रही है .विश्वम्भर जी.सादर / कुंती .

Comment by विजय मिश्र on June 17, 2013 at 4:16pm
इसकी झमाझम भी किसी सावनी फुहार से कम नहीं , बधाई श्रीमानजी .

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