दूब का चरित्र
दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
सुख दुःख से विरक्त, संत मन जैसा है.
झुलसे न ग्रीष्म में भी, ओस को सम्हाल रही
ढांक ले मही को मुदित, पहली बौछार में ही
दूब अग्र तुंड को, चढ़ावे विप्र पूजा में,
जैसे हो नर बलि, स्वांग यह कैसा है ! दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
गाय चढ़े, चरे इसे, बकरियों भी खाती है,
खरगोश के बच्चे को, मृदुल दूब भाती है.
क्रीडा क्षेत्र में भी, बड़े श्रम से पाली जाती है
देशी या…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 11, 2014 at 10:30am — 13 Comments
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