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Vijay nikore's Blog – March 2014 Archive (2)

स्व के पार ... (विजय निकोर)

स्व के पार ...

 

हाथ से हाथ छूटने की

तारीख़ तो सपनों को पता है

हाथ फिर कभी मिलेंगे ...

तारीख़ का पता नहीं

 

तुम्हारे चले जाने के बाद

मेरे दिन और रात

उदास, चुपचाप, कतरा-कतरा

बहते रहे हैं

 

मेरे वक्त के परिंदे की पथराई पलकें

इन उनींदी आँखों की सिलवटों-सी भारी

उम्र के सिमटते हुए दायरों के बीच

थके हुए इशारों से मुझसे

हर रोज़ कुछ कह जाती हैं

और मैं रोज़ कोई नया बहाना…

Continue

Added by vijay nikore on March 28, 2014 at 4:34am — 20 Comments

मैदानी हवाएँ .... (विजय निकोर)

मैदानी हवाएँ

 

 

समेट नहीं पाती हूँ चाह कर भी  कभी

अनमनी यादों की चँचल-सी धारा-गति

लौट-लौट आते हैं दर्द भरे धुँधले

अधबने अधजले सपने

छिपाए न छिपें अर्थहीन समर्थों से अश्रु मेरे

क्यूँ आते हो जगा जाते हो तुम आन्दोलन,

इस अथाह सागर में प्रिय रोज़ सवेरे-सवेरे ?

 

हो दिन का उजाला

भस्मीला कुहरा

या हो अनाम अरूप अन्धकार

तुम्हारी यादों का फैलाव पल-पल

स्वतन्त्र मैदानी अनदिखी…

Continue

Added by vijay nikore on March 2, 2014 at 1:00pm — 17 Comments

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