For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अमि तेष's Blog – March 2011 Archive (5)

मेरे उस्ताद

मेरे उस्ताद कागज़ पर चन्द लकीरें बनाते है,

कभी अल्फ़ाज़ जोडते हैं कभी काफ़िये बनाते है.



पेशानी पर हैरत यूं गश खाती है,

जब अपने रंग मे आकर कोई गज़ल सुनाते है.



मुझे भी फ़ख्र होता है यें देख कर लोंगों,

जब बोलते हैं मेरी रगों में इन्क़िलाब लातें है.



मुझ जैसे शागिर्द पर रख के अपना हाथ,

लफ़्ज़ों की जादूगरी का हुनर सिखाते है.



ऐसी शख्सियत का ज़िक्रे ब्यां क्या हो,

जिन्हे अहले इल्म फ़ख्रे हिन्दुस्तां बताते है.



अपने फ़न की… Continue

Added by अमि तेष on March 29, 2011 at 1:00pm — 4 Comments

यूं मेरे हाथ मुझ को छुड़ानें न दो,

यूं मेरे हाथ मुझ को छुड़ानें न दो,

बहुत याद आयेंगें हम, हमें जानें न दो.



गर हमें प्यार है, तो फ़िर डर कैसा,

अब कोइ राज़-ए-महोब्बत छुपानें न दो.



तेरी सांसों की महक की है ज़रूरत मुझको,

अब मेरे दिल में किसी और को आनें न दो.



इस तरह रोतें रहोंगे तो भला क्या होगा,

अश्क आंखों में मेरी जान कभी आनें न दो.



कर लो अब तो तुम मेरी महोब्बत का यक़ीन.

तुम मुझे अब और क़समें खानें न दो.



'अमी' तेरे प्यार के रंग में सराबोर है… Continue

Added by अमि तेष on March 26, 2011 at 12:51am — 2 Comments

संगदिल शहर

Added by अमि तेष on March 16, 2011 at 12:30pm — 4 Comments

मैं जब भी ठोकरें खाता हूँ नया मुकाम मिलता है....................

मैं जब भी ठोकरें खाता  हूँ नया मुकाम मिलता है
तजुर्बे का चहेरा बनाकर भगवान मिलता है





तसल्ली देती हैं पुरानी…
Continue

Added by अमि तेष on March 13, 2011 at 7:30pm — 3 Comments

अपने औदें पर इतना अक़ड़ता क्यूं हैं...........

अपने औदें पर इतना अक़ड़ता क्यूं हैं

तू बात बात पर यूं बिगड़ता क्यूं हैं



क्या संसद का पानी पी आया हैं

तू बार बार यूं रंग बदलता क्यूं हैं



लिबास तो बड़ा ही सफ़्फ़ाख है…

Continue

Added by अमि तेष on March 4, 2011 at 3:30pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service