जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब
तुम्हारी बात को माने बिना भी रह नहीं सकता
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||
तुम्हे तो सब पता है एक दिन की भी जुदाई में
वो सारा दिन मुझे बासी कोई अखबार लगता था
तुम्हारी दीद के सदके कई दिन ईद होती थी
तुम्हारा साथ जैसे स्वर्ग का दरबार लगता था ||
नज़र किसकी लगी…
Added by Manoj Nautiyal on January 31, 2013 at 7:30pm — 9 Comments
प्रेम की बात करते हो बड़े ही गर्व में रह कर
प्रेम जब हो गया तुमको पहन ली शर्म की चादर ||
जहाँ पर प्यार होता है वहां इनकार होता है
वहीँ इकरार की खातिर तड़पते हैं कई रहबर ||
गुरूर-ए -इश्क में रहना रिवाज -ए -हुस्न की फितरत
अदाओं की पनाहों में मिटे आशिक कई बनकर ||
तुम्हे मालूम है जब भी हमारा दिल धड़कता है
मुझे मालूम होता है तुम्हारी याद है दिलबर…
Added by Manoj Nautiyal on January 30, 2013 at 9:45pm — 1 Comment
कभी नहीं बन सकता हूँ मै हरिश्चंद्र जी का अनुगामी
..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||
कितने ही शब्दों को मैंने सच्चाई से डरते देखा
अपने ही भावों को अक्सर अंतर्मन में मरते देखा
दुःख की सर्द सुबह और रातें पीड़ा की गर्मी भरते हैं
आहों की स्वरलहरी दबकर आत्मपीड मंथन करते हैं
कल्पित दुनिया नहीं मिटा सकती है सच की सूनामी
..कभी नहीं कर सकता हूँ मै प्रेम कृष्ण जैसा आयामी ||
नहीं मिला है मुझे अभी तक दर्पण जैसा परम हितैषी
खोजे केवल मुझको मुझमे…
Added by Manoj Nautiyal on January 30, 2013 at 12:16pm — 7 Comments
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