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बताशा लगती हो तुम
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हिंदी के समान प्यारी, कोमल, सुरीली, मृदु,
घोले जो मिठास ऐसी भाषा लगती हो तुम,
जीवन में नीरसता, जैसे चहुँ ओर फैले,
तिमिर निराशाओं में आशा लगती हो तुम,…
ContinuePosted on November 9, 2013 at 9:30am — 34 Comments
गीत (रिश्ते नाते हारे)
गया सवेरा, ख़त्म दोपहर, ढली सुनहरी शाम,
आँखें ताक रहीं शून्य, और मुँह में लगा विराम,
गीत, गज़ल ख़ामोश खड़े औ कविता हुई उदास,
जब सबने छोड़ा साथ,…
ContinuePosted on October 27, 2013 at 7:48am — 16 Comments
“इन्सपैक्टर साहब, मैं तो कहती हूँ कि हो न हो मेरे गहने मेरी सास ने ही चुराए हैं..... बहुत तिरछी नज़र से देखती थी उनको...... अब सैर के बहाने चंपत हो गई होगी उन्हें लेकर।“ – बड़े गुस्से में रौशनी ने कहा
वहीं रौशनी का पति दीपक चुपचाप खड़ा था।
इससे पहले की इन्सपैक्टर साहब कुछ कहते रौशनी की सास घर वापस लौटती दिखी। अपने घर पर भीड़ देखकर वे कुछ परेशान हुईं और कारण जानकर वे फिर से साधारण हो गईं जैसे कि वे चोर के बारे में जानती हों। अंदर अपने कमरे में जाकर वो दो कड़े और एक चेन लेकर वापस…
ContinuePosted on October 26, 2013 at 6:30am — 26 Comments
जैसे को तैसा
आज करवाचौथ के दिन मैं अपनी बीवी से बोला – “प्रिये...
तुम मेरी किडनी के समान हो,
किंतु शादी के बाद के इन 5 वर्षों में
तुम्हारी हालत बिल्कुल
हमारी सरकार जैसी हो गई है,…
ContinuePosted on October 22, 2013 at 7:35am — 22 Comments
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
प्रधान संपादकयोगराज प्रभाकर said…