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बिसरि गेलहुं गामक ओ धरती,
बिसरल कलमी आमक गाछी,
सींग टुटलकी गैया बिसरल
दूध पिबैत ओ करकी बाछी,
बिसरल नाच, विदेशिया नाटक,
आसिन मासक दुर्गा मेला
बिसरल गामक संगी साथी
खेलैत रही जेकरा संग खेला,

बिसरि गेलहुं धानक ओ रोपनी,
आरो बिसरल गंहुमक दौनी,
मकई, जनेरा, राहरि, तीसी,
बिसरल सामा,चीना, कौनी,

बिसरि गेलहुं बाबू केर गुस्सा
बिसरल मम्मी केर दुलार,
बिसरि गेलहुं घूरा तर बैठक,
जखन लगई छल हमरा जाड,

ऋतु बसंत केर शोभा बिसरल
बिसरि गेलहुं गर्मी बरसात,
जहिया सं परदेशी भेलहुँ,
सभटा बिसरल गामक बात,

मनोज कुमार झा "प्रलयंकर

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बिसरि गेलहुं धानक ओ रोपनी,
आरो बिसरल गंहुमक दौनी,
मकई, जनेरा, राहरि, तीसी,
बिसरल सामा,चीना, कौनी,

बहुत ही सुंदर काव्य की प्रस्तुति, इस कविता के माध्यम से आप मुझे एक बार फिर मिथिला घुमा दिये ,बधाई हो मनोज भईया,
भाई मनोजजी प्रलंकर, सप्रम नमस्कार.
अहाँ सँऽ गप्प करू हम ई भाव टा हुलैस क आएब रहल अछि अहाँ कऽ रचना पइढ़ क.
हम कोना बिसैर सकइ छी दोनारक ऊ मजमा, टावर चौकक बजार, बेलाकऽ बाग-बगीचा आ लहेरियासराय सँऽ नाका 5 आ 6 होएत.. सैकिलक घंटी टुनटुनैत.. उमा सिनेमा सँऽ आगू बढ़नाय? कोना बिसैर सकइ छी हम गाम-गाम मे स्थापित मन्दिर? लोकैक अपनापन?

मिथिलाक ओज.. मिथिला कऽ शान..
पइग-पइग पोखर, माछ-मखान
भीजल चुइन आ भीजल कसैली
नीक जकाँ कत्था, भँगिया पान.. .
टटका दधि, कतरनी चूरा
जाड़ सँ कुनमुनैत ओड़ैत घूरा
नीक जकाँ रान्हल तीतल भात
बेसनक बजका तिलकोरइक पात..
कोना ई भूलब, की बिसैर सकैछी?

-- सौरभ
नमस्ते..
अहाँ क गप्प सुइन के जेना पीराएत नस पऽ आँङुर टा धरा गेल.
आज सँ लगभग 25-26 बरस पहिलें हमर दरभंगा में निवास छल... कुल तीन बरस लेल.
परिवारक लोक अहाँ बुझते होएब जे मिथिला भाषाभाषी नै छल, किन्तु हमरा सभक मिथिला भाषा खूब नीक लागै. आय देखू हम मुम्बई, चेन्नै.. हैदराबाद आदि-आदि स्थानसँ घुरि क इलाहाबाद में बसल छी, किन्तु मैथिलीक मिठास कतबो कम जे हुए से नै अछि.
जे लिखनाइ में भाषा दोष हुवै तऽ अहाँ सँऽ अपेक्षा अछि जे अगाह करब.

धन्यवाद.

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