For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पिछले आलेख में हमने प्रयास किया काफि़या को और स्‍पष्‍टता से समझने का और इसी प्रयास में कुछ दोष भी चर्चा में लिये। अगर अब तक की बात समझ आ गयी हो तो एक दोष और है जो चर्चा के लिये रह गया है लेकिन देवनागरी में अमहत्‍वपूर्ण है। यह दोष है इक्‍फ़ा का। कुछ ग़ज़लों में यह भी देखने को मिलता है। इक्‍फ़ा दोष तब उत्‍पन्‍न होता है जब व्‍यंजन में उच्‍चारण साम्‍यता के कारण मत्‍ले में दो अलग-अलग व्‍यंजन त्रुटिवश ले लिेये जाते हैं। वस्‍तुत: यह दोष त्रुटिवश ही होता है। इसके उदाहरण हैं त्रुटिवश 'सात' और 'आठ' को मत्‍ले के शेर में काफि़या के रूप में ले लेना या एक पंक्ति में नुक्‍ता-रहित और दूसरी पंक्ति में नुक्‍ता-सहित व्‍यंजन काफि़या रूप में ले लेना। सामान्‍यतय: यह दोष मातृभाषा के मूल शब्‍दों में होने की संभावना नहीं रहती है लेकिन अन्‍य भाषा के शब्‍दों के साथ यह संभावना इसलिये बढ़ जाती है कि हमें उस भाषा की लिपि में प्रयुक्‍त व्‍यंजन का ज्ञान नहीं होता। इसका सहज निराकरण इसी में है कि अन्‍य भाषा के शब्‍द प्रयोग करते समय संबंधित लिपि में भी दोनों शब्‍दों को देख लें; लिपि ज्ञात न होने पर भी चित्र मानकर तो पहचाना ही जा सकता है।

आदरणीय राम प्रसाद शर्मा 'महर्षि' जो पिंगलाचार्य की उपाधि से विभूषित हैं उनकी पुस्‍तक में काफि़या के चार सूत्र दिये गये हैं जिन्‍हें स्‍पष्‍ट रूप से समझ लेना जरूरी है। सूत्रों को जैसा मैनें समझा उस रूप में प्रस्‍तुत कर रहा हूँ:

मत्‍ले के शेर की दोनों पंक्तियों में स्‍वर अथवा व्‍यंजन अथवा स्‍वर एवं व्‍यंजन के संयुक्‍त रूप पर समतुकान्‍त स्थिति बनती हो तथा-

1. मत्‍ले के शेर की दोनों पंक्तियों में प्रयुक्‍त काफि़या मूल शब्‍द हों और हों; या

2. मत्‍ले के शेर की एक पंक्ति में प्रयुक्‍त काफि़या मूल शब्‍द हो तथा दूसरी पंक्ति में बढ़ा ह़ुआ शब्‍द हो; या

3. दोनों ही पंक्तियों में मूल शब्‍दों के बढ़े हुए रूप हों और बढ़ा हुआ अंश हटा देने से सूत्र-1 की स्थिति बने अथवा दोनों ही बढ़े हुए अंशों में व्‍याकरण भेद हो या

4. दोनों पंक्तियों में काफि़या के शब्‍द में बढ़ाये हुए अंश समान अर्थ न दें

अब तक जो चर्चा हुई उससे पहले दो सूत्र तो समझ आ ही गये होंगे। सूत्र-3 और सूत्र-4 को समझने के लिये हमें वापिस लौटना होगा बढ़े हुए अंश की परिभाषा पर।

आलेख-3 देखें:

'एक बात तो यह समझना जरूरी है कि मूल शब्‍द बढ़ता कैसे है।

कोई भी मूल शब्‍द या तो व्‍याकरण रूप परिवर्तन के कारण बढ़ेगा या शब्‍द को विशिष्‍ट अर्थ देने वाले किसी अन्‍य शब्‍द के जुड़ने से। एक और स्थिति हो सकती है जो स्‍वर-सन्धि की है (जैसे अति आवश्‍यक से अत्‍यावश्‍यक)।'

सूत्र-3 की व्‍याकरण भेद की बात और सूत्र-4 शब्‍द को विशिष्‍ट अर्थ देने वाले किसी अन्‍य शब्‍द के जुड़ने से उत्‍पन्‍न स्थिति की बात है। हिन्‍दी भाषा में ऐसी स्थिति के कुछ शब्‍द देने की मेहनत कोई कर सके तो इस पर चर्चा कर लेते हैं। यह ध्‍यान रखना होगा शब्‍द हिन्‍दी के ही हों।  अगर आपने ज़मींदार, नंबरदार, थानेदार, गुनहगार जैसे शब्‍द दिये तो बात नहीं बनेगी क्‍योंकि ये शब्‍द हिन्‍दी शब्‍द संयोजन के परिणाम नहीं हैं। तब तक उचित होगा कि काफि़या के ढाई सूत्र ही ध्‍यान मे रखे जायें। सूत्र-1, सूत्र-2 और सूत्र-3 का प्रारंभिक अंश। इससे हटकर कुछ किया तो ईता-दोष की संभावना बन जायेगी। जो भाषा हमें लिपि और व्‍याकरण स्‍तर पर ज्ञात नहीं है उसके शब्‍द समझने में समस्‍या रहेगी।

 

यह तो बात हुई काफि़या पर अपनी बात रखने की। बात रखी जाती है सुनी जाने के लिये इसलिये मेरे समक्ष प्रश्‍न यह है कि जो कुछ मैनें कहा वह किसी काम का भी है या नहीं।

मेरा विशेष अनुरोध है कि अब तक काफि़या पर जो कुछ कहा गया उसे जिसने जैसा समझा उस रूप में संक्षिप्‍त रूप में आप सभी प्रस्‍तुत करें जिससे स्‍पष्‍ट हो कि कहीं कहने-सुनने में कोई अंतर तो नहीं है।

एक और अनुरोध है कि अब तक जो समझा गया है उसके आधार पर आपके द्वारा अब तक पढ़ी गयी ग़ज़ल की पुस्‍तक अथवा पुस्‍तकों में दी गयी ग़ज़लों से ऐसी ग़ज़लों के काफि़या प्रस्‍तुत करें जिनमें आपके मत से कोई दोष हो। इस प्रकार चर्चा से हम और स्‍पष्‍टता प्राप्‍त कर सकेंगे। कृपया कि सी शायर के नाम का उल्‍लेख न करें अन्‍यथा विवाद की स्थिति की संभावना के अतिरिक्‍त विवेचना में भी संकोच की स्थिति बनती है। आशय बिना किसी का नाम बीच में लाये स्‍वस्‍थ चर्चा का है।  

Views: 4395

Replies to This Discussion

तिलक सर, मैने पूरा पाठ ध्यान से पढ़ा, छोटी इत्ता के बारे में भी कुछ अल्प ज्ञान हुआ, छोटी ईत्ता है तो बड़ी इत्ता भी जरूर होगा, किन्तु वह clear नहीं हो पा रहा है | मुझे लगता है की एक पाठ काफिया के विभिन्न दोष उदाहरण सहित पर करना श्रेश्कर होगा |

पाठ से हम सभी लाभान्वित हो रहे है और बहुत लोग भविष्य में भी लाभान्वित होंगे, इन सभी पाठों का संग्रह एक दिन अमूल्य धरोहर बनेगा ऐसा मेरा विश्वास है |

 

झूमकर बादल उठे थे, बूँद इक बरसी नहीं
सोचता था बात मेरी आप तक पहुँची नहीं।

इसी आलेख पर एक टिप्‍पणी के रूप में उक्‍त शेर पर एक प्रश्‍न रखा था मैनें।

इसमें 'बरसी' और 'पहुँची' को काफि़या के रूप में लिया है जो मूल शब्‍द 'बरस' और 'पहुँच' के बढ़े हुए रूप हैं। छोटी ईता का दोष तब उत्‍पन्‍न होता है जब काफि़या बढ़े हुए रूप में सही दिखे लेकिन मूल शब्‍द पर मेल न खा रहा हो जैसा इस मामले में है। इस मत्‍ले के साथ कोई ग़ज़ल कहेगा तो 'ई' स्‍वर में समाप्‍त होने वाले शब्‍द जैसे 'बंसी' प्रयोग कर ग़ज़ल कह लेगा और उन अश'आर में काफि़या दोष नहीं होगा जबकि मत्‍ले में मूल शब्‍द पर काफि़या न मिलने से काफि़या दोष है। यह छोटा दोष है और सामान्‍य है, ग़ज़ल को समतुकान्‍त काव्‍य मानने वाले इसे महत्‍व नहीं देते हैं।

अब अगर यही शेर यूँ होता कि:

झूमकर बादल उठे थे, बूँद इक बरसी नहीं
कृष्‍ण राधा संग आये, साथ में बंसी नहीं।

तो हम काफि़या के रूप में ऐसे शब्‍द प्रयोग कर सकते जो 'सी' में समाप्‍त हों। लेकिन किसी शेर में 'सी' के स्‍थान पर केवल 'ई' के स्‍वर का ही ध्‍यान रखा जैसे 'पँहुची' का उपयोग कर लिया तो बड़ी ईता का दोष हो जायेगा क्‍योंकि शायर ने काफि़या तो निर्धारित किया 'सी' और पालन कियया सिर्फ़ 'ई' के स्‍वर का। यह दोष गंभीर है और यह तो कभी नहीं होना चाहिये वरना शेर ग़ज़ल से खारिज हो जायेगा।

पूरी तरह अब बात मेरी समझदानी में आ गई , बहुत बहुत धन्यवाद तिलक सर | मुझे विश्वास है की बहुत कुछ मिलने वाला है आपके मालखाने से :-)

तिलक जी,

इस मतले में काफिया और रदीफ क्या हुआ?

 

हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू,

कहाँ गया है मेरे शह्र के मुसाफिर तू,

 

गज़ल के बाकी शेरों में जो काफिये प्रयोग हुए हैं वो हैं:  खातिर, बज़ाहिर, आखिर, शायर, जैसे "खातिर तू", "बज़ाहिर तू" आदि.

 

मेरी समझ के अनुसार, "फिर तू" रदीफ हुआ और "आ" कि मात्रा काफिया.. मुसाफिर में 'फिर' लहलीली रदीफ हो जाता है. अगर ऐसा है तो इस गज़ल में ईता दोष हुआ. लेकिन चूंकि गज़ल बहुत बड़े शायर की है तो गज़ल में दोष की गुंजाईश नहीं है. जरूर मेरी समझ में कमी है.

कृप्या बताएं.

इसमें मुझे तो एक नया उदाहरण दिख रहा है।

फिर के फ में नुक्‍ता नहीं होता जबकि मुसाफि़र के फ़ में नुक्‍ता है। तो काफि़या हुआ 'इर' और उसीका पालन पूरी ग़ज़ल में है। दोनों मूल शब्‍द हैं अत: फ और फ़ का साम्‍य जरूरी नहीं है।

मेरी उर्दू बहुत कमज़ोर है इसलिये ये नुक्‍ता शब्‍दकोष में देखना होगा।

मैनें शब्‍दकोष से इसकी पुष्टि की, उर्दू में 'फ़' केवल नुक्‍ते के साथ ही आता है और हिन्‍दी में मूलत: नुक्‍तारहित।

फिर हिन्‍दी शब्‍द है और मुसाफि़र उर्दू का। नुक्‍ते का अंतर रहने के कारण यहॉं फिर को तहलीली रदीफ़ नहीं माना जा सकता है। काफि़या निर्धारित हुआ 'इर' और ग़ज़ल में बिल्‍कुल सही निभाया गया है।

तिलक जी, धन्यवाद.

मैंने ध्यान ही नहीं दिया की 'फिर' और 'मुसाफिर' उर्दू में अगर लिखें तो मुसाफिर के अंत में 'फे', और 'रे' आएगा(مسافر) और फिर में 'पे', 'हे', और 'रे' (پھر).... अतः दोष नहीं हुआ और काफिया 'इर' पर निर्धारित हुआ.

 

 

हम हिन्‍दी वालों से ऐसी ग़ल्‍ती हो ही जाती है।

इंग्लिश में भी इन्‍हें Musafir और Phir लिखा जाता है।

nai post ?

 

इस पोस्‍ट में, चल रही तरही को लेकर कुछ कहना है। इसलिये रोक रखी है जिससे तरही प्रभावित न हो।

वो तो ये बात है, मैंने पूरा रविवार बिता दिया इन्तजार में

गजल की कक्षा के गुरूजी एवं सभी सदस्यों को इस अनाड़ी सदस्य का सादर नमस्कार

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service