For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आयास चाहती है दोहे की सिद्धि    :: डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

महद्धनं यदि ते भवेत्,  दीनेभ्यस्तद्देहि।

विधेहि कर्म सदा शुभं, शुभं फलं त्वं प्रेहि ॥

(यदि आप बहुत धन वाले हैं तो उसे दीनों को दान करें I सदा शुभ कर्म करें I उसका फल आपके लिए भी शुभ होगा )

     यह संस्कृत का 'दोहड़िका' छंद   है जो पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषा की सरणियों से होकर हिंदी में आकर दोहरा या दोहा हो गया । सच्चाई तो यह है कि अपभ्रंश के अधिकरण पर ही हिंदी    का विकास हुआ I आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने तो स्पष्ट रूप से कहा था कि हिंदी    ग्राम्य अपभ्रंशों का रूप है I अपभ्रंश का हिंदी    में प्रवर्तन रूप निश्चित रूप से अमीर खुसरो ने किया I अपभ्रंश भाषा में दोहे का एक उदाहरण  निम्नवत है -

पिय संगमि कउ निद्दड़ी? पियहो परक्खहो केंव।

मइँ बिन्निवि विन्नासिया, निंद्द न एँव न तेंव II

(प्रिय के संगम में नींद कहाँ और प्रिय के न रहने पर भी नींद कहाँ ? बहन मैं तो दोनों तरह से विनष्ट हुयी नींद, न तब आयी और न अब)  

दोहरा या दोहा का चलन बौद्ध-प्रवर्तकों में भी था, तो नाथपंथियों में भी था. अर्थात पद्य का यह छांदस स्वरूप बहुत ही प्राक्तन, प्रचलित, और प्रसिद्ध है I अपभ्रंश-मुक्त  हिंदी के आदि प्रवर्तक अमीर खुसरो के इस कालजयी दोहे को कौन भूल सकता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह उनका अंतिम दोहा है, जिसे उन्होंने मृत्यु से ठीक पहले रचा था -

गोरी सोवे सेज पर,   मुख पर डारे केस I

चल ख़ुसरो घर आपने सांझ भई चहुं देसII

आगे चलकर प्रेमाख्यानक कवियों में कुतुबन, मंझन और मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने महाकाव्य में चौपाई के साथ दोहों का भरपूर प्रयोग किया i गोस्वामी तुलसीदास का रामचरितमानस भी चौपाई छंद के साथ दोहे को लेने की परिपाटी का पोषक ग्रंथ है I तुलसी ने तो दोहावली और रामाज्ञाप्रश्न आदि भी दोहों में ही रचे I दोहा की शास्त्रीयता आर्ष-ग्रंथो से प्रमाणित है I

कुछ लोगों का मत है दोहा मात्र शास्त्रीय छंद   विधि के अलावा अभिव्यक्त न हो कर उर्दू बहर के अनुसार भी साधा जा सकता है I मगर यह बहुत ही आपत्तिजनक बात है I हिदी संस्कृत के छंदों में फारसी की बह्र की जबरन जद्दोजहद करने की बात ही हिमाकत है और इसके पीछे जो सोच है वह हमारी छांदस प्रणाली को अपवित्र करने की साजिश जान पडती है I इस संबंध में देवमणि पाण्डेय का कहना विचारणीय है –“पाकिस्तान में शायरों ने दोहा लिखने के लिए अलग बह्र इस्तेमाल किया i उसमे तेरह और ग्यारह मात्राओं तक का अनुशासन नहीं है I हिंदुस्तान में भी कई शायरों ने उनका अनुकरण किया I मगर वैसी रचनाओं को ‘दोहा’ घोषित कर देने से उन्हें ‘दोहा’ नहीं माना जा सकता I ---दोहा बहुत खूबसूरत विधा है हमें इसकी शुद्धता बरकरार रखनी चाहिए I’’

मशहूर शायर और सिने गीतकार नक्श-लायलपुरी का कहना है कि –‘दोहा नई बह्र में हो सकता है ---उसमें ग़ज़ल की जबान और ग़ज़ल का कंटेंट नहीं   चलता ---- दोहे को इस दौर में तेरह-ग्यारह की बंदिश में बाँधना शायरी के परवाज को रोकने की कोशिश है I

हम जानते हैं कि फ़ारसी की बह्रों में यति नहीं होती I मतले को छोड़ दे तो दो पदों की तुकांतता भी नहीं होती I फिर भी बह्र में दोहा लिखने की जिद नये प्रयोग के नाम पर सिर्फ एक मजाक मात्र है I

दोहा दिखने मे बड़ा सरल है परन्तु इसका शिल्प आसान नहीं है । दोहे का नाम दोहा इसीलिये है कि इसका प्रारम्भ चाहे समकल से हो या विषमकल से हो वह दुहराया अवश्य जाता है । चॅूकि चार चरण के इस छंद   मे दो ही दल अर्थात पक्तियॉं होती है, इसलिये भी इसे दोहा कहा जाता है । यद्यपि सोरठा मे भी यही बात है परन्तु सोरठा दोहे का ही उल्टा रूप है । सामान्यतः दोहा छंद मे चार चरण होते हैं, किन्तु यह दो पंक्तियों में लिखा जाता है और प्रत्येक पंक्ति को एक दल कहते हैं । इसके विषम चरण अर्थात प्रथम और तृतीय चरण में 13 व सम चरण अर्थात द्वितीय व चतुर्थ चरण  मे 11 मात्राये होती है । दोहे के संगठन मे निम्नांकित नियमो का पालन किया जाना अपरिहार्य है ।

 [1] विषम चरण अर्थात प्रथम और तृतीय चरणो का प्रारम्भ जगण (ISI) से करने का निषेध है, यदि दोहे के विषम चरणो मे दो बार जगण का प्रयोग किया जाये तो यह और भी अधिक दोषपूर्ण है । लेकिन यदि देव काव्य हे, मंगलाचरण हे अथवा देव-स्तुति है तो वहाँ एक जगण स्वीकार्य तो हो सकता है परन्तु इसे उचित नहीं कहा जायेगा ।‘‘छंद   प्रभाकर’’ के रचयिता जगन्नाथ प्रसाद ‘‘भानु’’ ने ऐसी कुछ अन्य स्थितियॉं भी बतायी है जिनमे विषम चरण मे प्रयुक्त जगण स्वीकार्य हो सकते है  परन्तु चूँकि इससे दोहे का लय अवश्य प्रभावित हो जाता है अतः उन्होने किसी भी परिस्थिति मे विषम चरण के आदि मे जगण के प्रयोग से बचने की सलाह दी है । ऐसे दोषपूर्ण दोहो को ‘‘दोहा चंडालिनी’’ कहा जाता है । दोहे के विषम चरणांत में सगण (IIS), रगण (SIS) अथवा नगण (III) मे कोई भी हो सकता है ।

 [2] जिस दोहे का प्रारम्भ त्रिकल अर्थात (III), (IS) अथवा (SI) से किया जाता है, उसे विषम-कलात्मक दोहा कहते है । इसमे आदि त्रिकल के बाद त्रिकल फिर द्विकल तत्पश्चात त्रिकल औेर फिर द्विकल अर्थात रचना संगठन (3 3 2 (2+1) 2) होना अभीष्ट है । किन्तु यहॉं एक पेंच है । इस संगठन क्रम मे जो अंतिम त्रिकल है, वह (IS) नहीं  अपितु (SI) होना चाहिये ।

 [3] जिस दोहे का प्रारम्भ सम-कल खासकर चौकल अर्थात (IIII), (IIS),  (SII)  अथवा (SS) से किया जाता है, उसे सम-कलात्मक दोहा कहते है । इसमे आदि चौकल के बाद एक औेर चौकल फिर त्रिकल तथा अंत में द्विकल अर्थात रचना संगठन (4 4 (2+1)   2) होना अभीष्ट है किन्तु यहॉं भी त्रिकल मे (IS ) नहीं होना चाहिये ।

[4] दोहे के सम चरणो का गठन भी दो प्रकार से होता है । यदि समकल से प्रारम्भ है तो संगठन (4 4 3) होगा और यदि विषम-कल से प्रारम्भ हो तो संगठन (3 3  2 3) होगा । इस प्रकार सम-चरणांत मे जगण (ISI) या तगण (SSI) हो सकता है । यहॉं भी अंतिम त्रिकल (IS) नहीं होगा । विशेष परिस्थिति मे सम चरणांत भी नगण हो सकता है जैसा कि दोहे के भेद ‘उदर’ और ‘सर्प’ में होता है ।

अब मान लीजिये कोई दोहा इस प्रकार है -

बिना पंख के मिल गयी , आखिरकार उड़ान l

जब मैना के उड़ गए,  पिंजरे में ही प्रान ll

 इसमें प्रथम चरण 33232 की पद्धति पर है i मगर इसमें तीसरा त्रिकल 21 के स्थान पर 111 (मिलग) है I अगर इसे ऐसा कर दें कि ‘बिना पंख के ही मिली ’ तो तीसरा त्रिकल (21) हो जाएगा और यह सही स्थिति होगी I

इसके तीसरे चरण में 4432 की बंदिश है I यहाँ भी तीसरा त्रिकल 21 के स्थान पर 111 (उड़ग) है I अगर इसे ऐसा कर दें कि ‘जब मैना के हा ! उड़े’ तो तीसरा त्रिकल (21) हो जाएगा और यह सही स्थिति होगी I

 दोहे के अन्य मात्रिक संयोजन भी ‘‘भूषण चन्द्रिका’’ आदि ग्रथो मे मिलते हैं पर  उनके प्रयोग से लय तो बाधित होता ही है, साथ ही वे प्राचीन आचार्यो की प़द्धति से समर्थित भी नहीं है । उन्हें ऊहात्मक समझना कर छोड़ देना ही ही समीचीन है ।

 

 (मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 913

Replies to This Discussion

आदरणीय प्रणाम, बहुत ही सुंदर तरीके से अच्छी जानकारी प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद l सादर

वाह वाह श्रीवास्तव जी | 
आपने बहुत सुन्दर व्याख्या की है खास तौर से तीसरे त्रिकल को बहुत सरलता से समझाया है | प्रायः दोहाकारों से यहाँ ही गलती होती है | 
आपको बधाई और धन्यवाद भी | 

- शून्य आकांक्षी 

आदरणीय लेखनी को नमन , आपने बहुत सुंदर तरीके से अर्धसम मात्रिक छंद दोहे के इतिहास , उसकी रचना शैली को बता दिया उसे पढ़कर  आसानी से दोहा लिखना सीखा जा सकता है । आदरणीय एक प्रश्न मानस पटल पर उभरता है कि  मात्रिक गण जिन्हें मात्रिक छंद विधान के लिए ही बनाया गया था कहाँ विलुप्त हो गए ? इस संबंध मे  समझ में नहीं आता। केवल उर्दू  वाले ही उनकी चर्चा मात्र  करते हैं हिन्दी में तो कोई उनका नाम तक नहीँ लेता ।  वे प्रचलित होते तो आपकी बात को और भी आसानी से समझा जा सकता। विषम चरणों की बनावट 33232 और समचरणो की बनवाट 4432 को ढ ढ ण ढ ण  और ड ड ढ ण के सुगमता से स्मरण  रखा  जा सकता है । असल में पाँच मात्रिक गण  क्रमश: द्विकल , त्रिकल , चौकल , पंचकल के  ही परिचायक तो हैं । यदि  मात्रिक गण के प्रस्तार रूपों को आप नाम सहित समझाएँ तो हम पाठकों का बहुत भला होगा । सादर । 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"कहाँ कुछ मंज़िलों से याद आया सफ़र बस रास्तों से याद आया. . समुन्दर ने नदी को ख़त लिखा है मुझे इन…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. जयहिन्द रायपुरी जी,पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ.तहज़ीब हाफ़ी की इस ग़ज़ल को बाँधने में दो मुख्य…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"सादर अभिवादन तुम्हारी ख़्वाहिशों से याद आया हमें कुछ तितलियों से याद आया मैं वो सब भूल जाना चाहता…"
5 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service