चकरी में जोरू संग, दराला आम आदमी,
रोज-रोज चउक प, बिकेला आम आदमी |
खाली बस चुनाव में, आवेला उ धियान में,
जनता जनारदन, कहाला आम आदमी |
करिया कमाई करे, उजर पहिर देख,
सुलुग-सुलुग अब, जरेला आम आदमी |
होला सियासत खाली, धरम के नाम पर,
मसजिद में राम के, देखेला आम आदमी ||
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भाई बागीजी, आपके इस जलहरण घनाक्षरी की जितनी प्रशंसा की जाए कम ही है।। इन 8 पंक्तियों में आपने एक आम आदमी की दशा, दिशा भी और दुर्दशा के साथ इसे पूरी तरह से परिभाषित कर दिया है।। एक आदमी के जीवन में शायद जो-जो घटनाएँ होती हैं...वे सभी इसमें समाहित हैं।। सुंदरतम।। बस इतना ही कहूँगा की लिखते रहें।। सादर।।
रचना के सराहना खातिर बहुत बहुत आभार आदरणीय प्रभाकर भईया, अईसहि परेम बनवले रहीं |
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