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आव अपना दुअरा लगाव गाँछि नीम क

सुधरि जाई हावा पानी घरवा जमीन क

पितरन के दिनवा भुलाई ना जुगाड़ से

हरियाली  देत उनकर नाम दिन चीन्ह क

 लरिकन क जनम दिन मनाव अस चाव से

उमिर बताव सबका गाँछि गिनी गीन क

 

होवे पीपर, पाकड़, चाहे फूल फलदार 

चले न कुल्हाड़ी कवनो लालची कमीन क

----प्रमोद श्रीवास्तव --

अप्रकाशित व मौलिक 

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Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी  क आशीष टिप्पणी  क आस मे।

ई पस्तुति गजल के विधा में बा त एकर बहर के वजन लिखल जाव.जइसे हिन्दी गजल के सङे ओकर मिसरा के वजन दिहल जाला. 

भाव-पक्ष प कहल जाव त ई रुचगर प्रस्तुति बा. 

आदरणीय पाण्डेय जी, राउर सनेह सीख मीलल।फेरु से पूछत बानी बहर आ बहर बजन का ह कइसे दिआला जाने के बा, सादर।

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