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कविता लिखत बानी कविता के जरुरत बा ,
न सार के जरुरत बा न बिचार के जरुरत बा ,
कविता लिखत बानी कविता के जरुरत बा ,

सोच होखे समझ होखे एपर केहू ध्यान ना दी ,
चटक मटक लिखी समाज के कुछ ज्ञान ना दी ,
पाहिले लोग खोजत बा कुछ खुला कुछ कसाव ,
समाज और संसकृति से ना होखे कवनो लगाव ,
बस मन बहलावे वाला सब्दन के जरुरत बा ,
कविता लिखत बानी कविता के जरुरत बा ,

अब रामायण के बात सुनावे खातिर करीले ,
हर कोई से बिनती की चल आइहा साम के ,
बिना बोलावल आवत बा लोग सुने खातिर ,
हर साम के बार में मन लागल बा जाम में ,
इ लगत बा लोग के बेवहार के जरुरत बा ,
कविता लिखत बानी कविता के जरुरत बा ,

गाव में अब चौपाल तक खाली रहत बा ,
देखि दारू के भट्टी पर जमघट लागल बा ,
इहा एहसास मर गइल बा साथ बनल बा ,
अपना पर ना लोग पर बिस्वास बनल बा ,
लोग कहत बा इनके समझ के जरुरत बा ,
कविता लिखत बानी कविता के जरुरत बा ,

जे आज देश चलावत बा उ नोट बानावत बा ,
माई भारती के ना, अपने बारे में सोचत बा ,
जहा पावत बा ओहिजा लुटात बा खसोटत बा ,
जेतना पैसा हो जाव आउर बढ़ावे में जुटल बा ,
अइसन खातिर आज कालापानी के जरुरत बा ,
कविता लिखत बानी कविता के जरुरत बा ,

मास्टर जी पढावे खातिर स्कुल में आइलन ,
हाजिरी बना के खेत में काम करे गइलन ,
अइसन काहे होत बा इ सोचे के जरुरत बा ,
घर के लगे बारन तबे नु बनत महूरत बा ,
अइसन लोग के जिला ख़ारिज के जरुरत बा ,
कविता लिखत बानी कविता के जरुरत बा ,

इहो बिगरले इनका के लोग भगवन काहे ला ,
अब पैसा के बिना इनकर ईमान ना चलेला ,
केहू मरे चाहे जिए इनके पाईसा पाहिले दिहा ,
नाही उठ्ठे बेग इनकर नाही आला चलेला ,
चाहे केहू मरे इनके पाईसा के जरुरत बा ,
कविता लिखत बानी कविता के जरुरत बा ,

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Replies to This Discussion

गाव में अब चौपाल तक खाली रहत बा ,
देखि दारू के भट्टी पर जमघट लागल बा ,
इहा एहसास मर गइल बा साथ बनल बा ,
अपना पर ना लोग पर बिस्वास बनल बा ,
लोग कहत बा इनके समझ के जरुरत बा ,
कविता लिखत बानी कविता के जरुरत बा ,

गुरु जी "भोजपुरी साहित्य" ग्रुप मे के पहिला कविता के बहुत बहुत स्वागत बा, आ हम बहुत गर्व से कह सकत बानी की धुवाधार आ गर्दा मचावे वाला कविता से रौवा सुरुवात कर दिहले बानी, वईसे राउर कवनो कविता कम न होला पर ई कविता के कवनो सानी नइखे , ई कविता के सब पैरा एक से बढ़कर एक बा, बहुत ही खुबसूरत कविता बनल बा, आ कविता के हर पैरा कुछ ना कुछ सन्देश छोड़ जात बा , बहुत बहुत धन्यबाद,

अंत मे दुगो लाइन कहल चाहत बानी..............

धन ना दौलत नीमन विचार के जरूरत बा,
कविता खातिर रवि कुमार गिरी जैसन यार के जरूरत बा ,
dhanyabad

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