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थारे बिण म्हारो जियो रे  भटके 

सुण क्यूं न  लेवे   तू म्हारी पुकार 

म्हाने रात्यां में नींद कोणी  आवे रे 

थारी ओल्युं ढोला म्हाने जगावे  रे 

बन मां व्याकुल घुमे रे हिरणी

कस्तूरी री महक  लागे मनभावन 

आ सुगंध  मन  मां प्रीत जगावे रे 

म्हाने  रातां  मां नींद कोनी आवे रे 

थारी ओल्युं ढोला म्हाने तरसावे रे 

रिमझिम बरसे मेह  यो निगोड़ो

बूंदा चमकती  चम चम- चम-चम

मन मां टीस प्रेम री उपजावे रे 

म्हाने रात्यां मां नींद कोणी आवे रे

डिम्पल गौर ' अनन्या ' 1-2-2015

 (मौलिक और अप्रकाशित )

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