For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“सीता सोचती थीं ” लेखक डा अशोक शर्मा एक पाठकीय समीक्षा / शुभ्रांशु पाण्डेय

“सीता सोचती थीं ” लेखक डा अशोक शर्मा एक पाठकीय समीक्षा
राम-कथा भारतीयों के जीवन का हिस्सा है और अधिकांश लोग इस कथा को तुलसीदास और वाल्मीकि के लिखे के अनुसार ही जानते हैं। राम-कथा के साथ-साथ इसकी उपकथाओं को भी आम जनमानस अपने दैनिक जीवन में आवश्यकतानुसार चर्चा में रखता है। वैसे तो रामकथा में ढेर सारे चरित्र हैं। किन्तु उन चरित्रों का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में राम से है। जहाँ-जहाँ राम हैं, कथा वहीं बनी रहती है।
रेड ग्रैब प्रकाशन की पुस्तक “सीता सोचती थीं” के लेखक डॉ० अशोक शर्मा ने राम-कथा को सीता की नजरों से देखने और दिखाने की कोशिश की है। राम के साहचर्य में किसी घटना पर सीता क्या सोचती होंगीं उन भावों का प्रस्तुतीकरण बड़े रोचक ढंग से किया गया है। वैसे तो पद्द्य रुप में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला को लेकर कवि मैथिली शरण गुप्त ने साकेत की रचना की थी| किन्तु सीता के मनोभावों को इस तरह से प्रस्तुत करने का प्रयास कम ही हुआ है। इसी तरह “सखी वे मुझसे कह कर जाते” मैथिली शरण गुप्त जी की एक ऐतिहासिक रचना है| रचना में कवि ने सिद्धार्थ के गृहत्याग पर पत्नी यशोधरा की मानसिक हालात को व्यक्त किया है| प्रस्तुत उपन्यास के लेखक ने “सीता सोचती थी” उपन्यास के माध्यम से सीता की दृष्टि से राम से जुड़े घटनाक्रमों को शब्द देने का प्रयास किया है।
इस उपन्यास की कथा वहाँ से प्रारम्भ होती है, जहाँ अश्वमेध यज्ञ के लिये अयोध्या में वाल्मीकि लव और कुश के साथ आते हैं और सीता भी उनके साथ होती हैं| यहाँ इन सभी के साथ राजभवन के लोग कैसे मिलते हैं तथा सीता का उनके प्रति व्यवहार कैसा रहता है। कैकेयी और सीता के वार्तालाप को जानने की उत्कण्ठा को लेखक ने सुन्दर तरीके से संतुष्ट किया है| सीता राजभवन के अपने शयन कक्ष में उस समय को याद करती हैं जब राम स्वयंवर के समय जनकपुर गये थे और उनकी भेंट पुष्पवाटिका में उनसे हुई थी| इस मुलाकात को रामचरितमानस में भी बहुत सुन्दर ढंग से बताया गया है| लेखक ने उसी घटना को आधार बनाते हुये सीता, उनकी बहन और सखियों के बीच राम को ले कर हो रही चर्चा का उल्लेख किया है|
रामायण और रामचरितमानस में सीता को धर्मपरायण, मृदुभाषी, धीर-गम्भीर स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है| लेखक ने अपनी पुस्तक में सीता को उपर्युक्त गुणों के साथ-साथ उनमें एक आम स्त्रियोचित गुण को भी दिखाने का प्रयास किया है। सीता अपनी बहन और अपनी सखियों की चुहल और ठिठोलियों पर उन्हें हास-परिहास में व्यवहार करती हैं, या, प्रेम से थपकी भी मारती हैं| सीता का ऐसा नटखट, ठिठोली भरा रूप पाठकों के लिये नया है। ऐसे आचरण को सीता में दिखा कर लेखक संभवतः यह दिखाना चाहते हों कि राम से विवाह के उपरांत सीता में धैर्य और गाम्भीर्य का भाव बढ़ गया था। सीता आवश्यक सोच-विचार के बाद ही अपनी बात रखने लगी थीं। उल्लेखय् है, कि सीता ने एक बार अपनी अधीरता का परिचय दिया था, जब उन्होंने स्वर्णमृग लाने के लिए राम को वन में भेज दिया था और फिर लक्ष्मण द्वारा राम के पीछे न भेजे जाने के काफी अनुनय-विनय के बावजूद लक्ष्मण को राम के पीछे जाने का उन्होंने आदेश दिया था। अन्यथा, सीता का व्यवहार और आचरण आजीवन संयत ही बना रहा है।
सीता पर आमीष ने भी एक किताब लिखी है| जिसमें सीता को एक योद्धा के रुप में प्रस्तुत किया गया है। उस पुस्तक में वो उम्र में राम से बडी भी बतायी गयी हैं| इतना ही नहीं, कुछ लोगों द्वारा उन्हें रावण के विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार किया जा रहा है| सीता का यह एक नया ही रूप है। लेकिन इस पुस्तक पर फ़िर कभी बात होगी। आमीष की पुस्तक की बात मैने इसलिये की, कि इस उपन्यास का केन्द्रीय पात्र भी सीता हैं। जहाँ आमीष ने लेखकीय स्वतंत्रता का भरपूर उपयोग किया है तथा सीता का चरित्र उन्होंने अपने हिसाब से गढ़ा है, वहीं इस उपन्यास के लेखक ने स्वयं को मर्यादा में बांध कर रखा है। लेखकीय स्वतंत्रता को ले कर वे निरंकुश नहीं हुए हैं| सीता मर्यादापुरोषोत्तम राम की सहधर्मिणी अर्धांगिनी ही हैं| इस नारी के पास अपने विचार हैं, अपने प्रश्न हैं। लेखक ने सीता के ही माध्यम से उन प्रश्नों का समुचित समाधान भी किया है| जैसे, सीता की अग्निपरिक्षा के समय पाठक सीता के माध्यम से राम से प्रश्न पूछना चाहता है| सीता के मन में भी शंका है। वो राम के किये पर सहज नहीं हैं| उनके प्रश्न पर राम का उत्तर सीता को संतुष्ट कर पाता है या नहीं, यह इस उपन्यास के पाठक पर भी लागू होता है| इसी तरह, वनगमन वाले प्रसंग में भी राम एक परिपक्व और अपने चरित्र के अनुरूप उर्मिला की शंकाओं का समाधान करते हैं| उपन्यास में एक मार्मिक क्षण तब आता है, जब सीता को लक्ष्मण जंगल में ले जाते हैं| यहाँ सीता का एक और विशेष रुप देखने के मिलता है, जो लेखक द्वारा प्रचलित कथा को एक भिन्न कोण से प्रस्तुत करने का प्रयास लगता है| अगर गहराई से समझा जाय, तो लेखक के विचार वास्तविकता के अधिक करीब हैं|
इस पुस्तक में सीता की नजर से राम के चरित्र का भी विश्लेषण हुआ है| आज भी कतिपय लोगों द्वारा राम पर ये आरोप लगाया जाता है कि उन्होने सीता के साथ धर्म की ओट में निरंकुश व्यवहार किया है। लेखक ने उन आरोपों के सापेक्ष कई बातें स्पष्ट की हैं। लेखक ने सर्वोपरि राम को मर्यादापुरुषोत्तम ही रहने दिया है और सीता के द्वारा उन्होंने उन विन्दुओं को संतुष्ट किया है| कहा जाय तो लेखक ने सीता के माध्यम से राम को आरोपमुक्त करने की कोशिश की है जो कि कथित ’वाद’ का झण्डा उठाने वालों को शायद उतनी पसंद न आये| कहानी के अनुसार सीता का दो बार वनगमन होता है| दोनो बार सीता को ही इस निर्णय पर आते हुये बताया जाना लेखक की राम के चरित्र को अक्षुण्ण रखने की कोशिश है। लेखक ने ऐसी परिस्थितियाँ बनायी हैं, उसमें सीता द्वारा ऐसा कोई निर्णय लिया जाना तार्किक भी लगता है| वो अपने तर्कों से राम के साथ-साथ पाठक को भी संतुष्ट करने में सफल होती हैं। यह लेखक का कथ्य-कौशल है।
एक बात जो इस पुस्तक में विशेष रूप से सामने आयी है, वह है राम के विरुद्ध चली जाने वाली चालें दानवों का किया-कराया है। ये दानव समाज के नकारात्मक प्रवृत के लोग हैं। ऐसे लोग राम को बर्बाद करने के लिए आमजन में अपनी पकड और पैठ बनाने में सफ़ल हो गये हैं| देखा जाये तो ये विन्दु आज भी उतना ही प्रासंगिक है| आज भी आतंकवादी और देशद्रोही ताकतें उसी तरह समाज के कुछ लोगों को गुमराह कर विद्वेश और भय का वातावरण बनाने की पूरा प्रयास कर रही हैं।
लेखक ने सीता के मनोभावों को उद्धृत करने में खूब सफ़लता पायी है| लेकिन कई जगह पर वो अपनी बातें कहने की जल्दी में लगते हैं। इस फेर में लेखक का सीधा रामचारित का बखान खलता है। इस कारण सीता के मनोभाव कई बार उतने मुखर हो कर सामने नहीं आ पाते। राम के साथ वनगमन के समय के पारस्परिक मनोभावों का कुछ और विस्तार दिया जा सकता था| तेरह वर्षों का साथ, जिस दौरान सीता राम के साथ वन में विचरण कर रही थीं, पारस्परिक मनोभावों के दृष्टिकोण से बड़ा ही समृद्ध है। चित्रकूट में राम का काफी समय व्यतीत हुआ है| यहीं सीता को अनुसुइया माता मिली थीं, जिन्होंने सीता को स्त्रीधर्म और गृहस्थ जीवन को लेकर ज्ञान दिया था| इस प्रकरण को सीता की दृष्टि से विस्तार दिया जाना पाठक के लिए उपलब्धि होती। वहाँ के कई प्रसंग हैं। सीता और राम स्फटिक शिला पर बैठे थे। उन भावमय पलों को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता था। ये लेखन की दृष्टि से बड़े धनी पल हैं, जैसे, राम का सीता के बालों को सँवार कर वेणी बनाना, जयंत का काग बन कर सीता के पैर में चोंच मारना, राम का कुश से उस पर प्रहार करना, जिससे जयंत की एक आँख ही खराब हो जाती है, जिसे लेकर किंवदंती बनी है कि कौवों की आँख इसी प्रकरण के बाद से खराब हो गयी। वस्तुतः, सीता और राम के जीवन में प्रेम और सुकून के ये अनोखे पल रहे हैं। वह समय राम और सीता के जीवन में सौहार्द्र, प्रेम और समर्पण को ले कर बड़ा ही आत्मीय भाव ले कर आया था| इन मनोहारी क्षणों को लेखक सीता के मनोभावों के माध्यम से बेहतर प्रस्तुत कर सकते थे। उनके बीच व्यतीत ये सुनहरे क्षण समुचित विस्तार पाने चाहिए थे।
इतना ही नहीं, जब भरत राम से मिल कर उनके खड़ाऊँ अपने सिर पर ले गये थे उस समय सीता का भाव क्या रहा होगा, इस विन्दु पर भी कथ्य अपेक्षित था। क्योंकि वहीं सीता की भेंट पिता जनक से भी हुई थी| सीता ने अपने मन को कैसे समझाया होगा। और, पिता तथा पुत्री के मध्य हुई बातचीत को अभिव्यक्त किया जाता तो कथा की मार्मिकता और बढ़ जाती|
उपकथा के रूप में गया जी की कथा का भी उल्लेख किया जाता है, जब दशरथ श्राद्धकर्म के समाप्त होते ही पिण्ड लेने के लिये आ गये थे और पास कुछ न रहने पर सीता ने रेत का पिण्ड बना कर अर्पित कर दिया था। दशरथ इस बालुका-पिण्ड से तृप्त हो गये बताये जाते है| इस प्रसंग पर सीता और दशरथ का वार्तालाप भी है| उस समय राम और लक्ष्मण आस-पास नहीं हैं| ये एक ऐसा पल है जब सीता दशरथ से अपनी सारी भावनाएँ व्यक्त कर सकती थीं|
अशोक वाटिका में भी सीता की व्यग्रता को दिखाया गया है| किन्तु एक शिव मन्दिर में उनका व्यवहार थोड़ा अप्रासंगिक और नाटकीय लगता है| उनके व्यस्त रहने और उनके असंतुलित विचार को और प्रखर बनाने से सीता की व्यग्रता और उनकी उत्कण्ठा को शब्द मिलते| इसी तरह, लव-कुश जब अयोध्या जाते हैं तो राम उनको नहीं पहचानते। किन्तु इसी पुस्तक में यह चर्चा है, कि शत्रुघ्न एक-दो बार उनसे मिलने वाल्मीकि के आश्रम गये थे। किन्तु अयोध्या में लव-कुश केआगमन पर उनका शांत रहना खटकता है|
लेखक ने इस पुस्तक को वास्तविक बनाने के लिये ज्योतिष और कम्प्युटर साफ़्टवेयर से राम के जन्म से लेकर अन्य तिथियों को पुनर्स्थापित तथा प्रमाणिक करने का प्रयास किया है| ऐसा कर लेखक पुस्तक को माइथोलोजिकल पुस्तकों की श्रेणी से अलग करना चाहते हैं। अर्थात, लेखक के अनुसार घटनाएँ ऐतिहासिक हैं। किन्तु मेरे हिसाब से रामायण या महाभारत को अब किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है| अब तो ये कहना उचित होगा कि अन्यथा प्रमाण की अपेक्षा करने वाले भारतीय संस्कृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं|
देखा जाये तो लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से सीता के मनोभावों को शाब्दिक करने में अवश्य सफलता पायी है। पाठक इसे न तो किसी धार्मिक पुस्तक की तरह लें, न ही इसकी ऐतिहसिकता की बहस में उलझते हुये इसके मृदु भावों से अपने को दूर रखें| लेखक ने रामायण की सारी घटनाओं का उल्लेख शायद इस कारण से भी न किया हो, कि इससे इस पुस्तक का आकार वृहद हो जाता।

“सीता सोचती थीं ” लेखक डा अशोक शर्मा प्रकाशक रेडग्रैब बुक्स मुल्य RS. 175.00

Views: 640

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
17 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service