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गावं के मेले मेले में तमाशा आया है
दूध की कटोरी में बताशा आया है।


तेरी नानी और मेरी नानी एक है
हम दोनों की कहानी एक है
चमकती धुप में कुहासा आया है।
गावं के मेले मेले में तमाशा आया है

आजकल बंदरो की फौज आई है
इनकी टोली में बड़ी मौज आई है
इनके घर नया एक नवा आया है
गावं के मेले मेले में तमाशा आया है

गिल्ली -डंडा खेलने को दादी हैं निकली
उनके सर बैठी पीले पंख की तितली
उनपे लौट के बचपन ज़रा सा आया है।
गावं के मेले मेले में तमाशा आया है

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
ग्राम और पोस्ट - गंज जलालाबाद
जनपद - उन्नाव ( उत्तर प्रदेश )
पिन – 209869

Views: 694

Replies to This Discussion

आदरणीय सुधीर जी 

सादर 

सुन्दर प्रयास 

बधाई. 

ji sir dhanywad..

आ० सुधीर जी 

बाल साहित्य समूह में रचना लेखन के लिए हार्दिक बधाई.

इस बाल रचना में प्रवाह तो है..पर कथ्य का संतुलन और विन्यास बहुत बिखरा हुआ है, साथ ही तुकांत भी सम्यक नहीं हैं.. इस कविता के गठन पर कुछ और वक्त देने की आवश्यकता है.

सादर. शुभेच्छाएँ

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