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‘चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -१४' (Now closed with 694 Replies)

चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -१४ '

नमस्कार दोस्तों !

इस बार की चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक-१४ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है | सदियों से मनोरंजन के एक साधन के रूप में प्रयोग किये जाने के साथ-साथ कठपुतलियों के माध्यम से समाजोपयोगी व सार्थक सन्देश भी जन-जन तक पहुँचाये जाते रहे हैं |

साथियों ! इस बार जो चित्र प्रतियोगिता के लिए चयनित किया गया है उसमें  इन कठपुलियों से खेलते हुए इस बच्चे की उत्सुकता बहुत कुछ कह रही है, वैसे तो यह एक सामान्य चित्र ही प्रतीत हो रहा है परन्तु यदि इसे कुछ अलग नज़रिए से देखा जाय तो यहाँ पर कठपुतलियाँ मात्र कठपुतलियाँ ही नहीं बल्कि भगवान के हाथ में इंसान की डोर का प्रतीक भी हैं और बच्चे तो भगवान का ही एक रूप हैं |

आँखों में सपने लिए, बाल रूप में भोर.

ईश्वर के आधीन जग, उसके हाथों डोर..

आइये तो उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. पुनः आपको स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह प्रतियोगिता सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगी, कृपया इस प्रतियोगिता में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |

साथ-साथ इस प्रतियोगिता के तीनों विजेताओं हेतु नकद पुरस्कार व प्रमाण पत्र  की भी व्यवस्था की गयी है ....जिसका विवरण निम्नलिखित है :-

"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता हेतु कुल तीन पुरस्कार 
प्रथम पुरस्कार रूपये १००१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company 

 

द्वितीय पुरस्कार रुपये ५०१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali

A leading software development Company

 

तृतीय पुरस्कार रुपये २५१
प्रायोजक :-Rahul Computers, Patiala

A leading publishing House

नोट :-

(1) १७ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे | 

सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें | 

विशेष :-यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|  

अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१४, दिनांक १८  मई से २० मई की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य   अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि  नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |

मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव

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Replies to This Discussion

छोटों का होता बस दमन नये. जग की ऐसी रीत है
अपने रहे ना आज अपने, ना मिले मनमीत है
सब हार के मन कह रहे हैं , ये ही सच्ची जीत है
आतंक पलता है दिलों में,  आदमी भयभीत है

बहुत सुन्दर कहा है सर जी

मजा आ गया पढ़ के साधुवाद आपको

हार्दिक आभार भाई संदीप जी...

ओबीओ पर मित्र बनकर, सीखते सब प्यार से.

जो हैं सभी छोटे दुलारे, मानते तकरार से.

क्यों है नहीं आतंक कोई, ना कोई भयभीत है.

सब दे रहे अवसर सभी को, ओबीओ पर प्रीत है..

 

आपका सादर आभार....

गोकुल घिरा है, बन गरीबी, कंस की सेना खड़ी।

व्याकुल निवासी है उदासी, हर घड़ी विपदा बड़ी॥

खुद कृष्ण ‘राधा-कृष्ण’ मूरत, बेचता भी दिख पड़े।

नन्हा सिपाही छोड़ स्कुल, घर बचे, हर विध लड़े।

   

क्यूँ शर्म ऐसे दृश्य पर यह, मुल्क ना महसूसता।

क्यूँ बालश्रम कानून अक्सर, लक्ष्य से भी चूकता॥

क्यूँ तप रहे मासूम नन्हें, नौनिहाल अङ्गार में।  

क्यूँ पढ़ रहे सब, पाठशाला, छोड़ कर बाजार में॥आदरणीय हबीब सर , बहुत ही बढ़िया ... गरीबी और बाल क्ष्रम पर बहुत ही सुंदर औ  सटीक छंद रचे ..बधाई स्वीकार करे

सादर आभार आदरणीया महिमा श्री जी...

क्यूँ शर्म ऐसे दृश्य पर यह, मुल्क ना महसूसता।

क्यूँ बालश्रम कानून अक्सर, लक्ष्य से भी चूकता॥

क्यूँ तप रहे मासूम नन्हें, नौनिहाल अङ्गार में।

क्यूँ पढ़ रहे सब, पाठशाला, छोड़ कर बाजार में॥


संजय जी , बहुत ही प्रभावशाली हरिगीतिका की रचना की है, हर युग में ऐसी दृष्टि केवल संजय को ही प्राप्त हुई है. बधाई स्वीकार करें.

आदरणीय अरुण भईया आपका स्नेह है जो रचना में शिल्पगत कमियों को नजरअंदाज कर आप अनुज का उत्साहवर्धन कर रहे हैं... सादर आभार स्वीकारें...

ओ मित्र मेरे हैं रची क्या, मस्त सब हरिगीतिका.

गोकुल, गरीबी, पाठशाला, बालश्रम की वीथिका.

हो चित्र परिभाषित तभी, जब हृदय से इसमें रमें.

ज्यों  नाचतीं कठपुतलियाँ, त्यों वो नाचता है हमें..

बहुत-बहुत बधाई मित्र संजय जी !


दोहे...
आँखों की ये पुतलियाँ,थम जाती है आज.
कठपुतली क़े खेल का ,देख सुखद अंदाज़.
--
हाँथ लिए कठ-पुतलियाँ,सोच रहा ये बाल.
हम भी ऐसे ही जिसे,नचा रहा है काल!!
--
जीवन की आपा -धापी,सांसों का संग्राम!
जन्म और मृत्यु महज़ ,कहलाते पैगाम.
--
रंगमंच पर पुतलियाँ,हाँथ किसी क़े डोर.
कला मुखर हो बोलती, दर्शक भाव-विभोर.
--
परंपरा  क़े गीत है, अनुभव  क़े  हैं  बोल.
कड़वे मीठे कच्चे पर ,सबके सब अनमोल.
--
लय में सब कुछ है बंधा,नियम-बद्ध संसार.
आनेवाला जायेगा,जीवन का यह सार.
--
अविनाश बागडे ....नागपुर.

आदरणीय अविनाश सर, बहुत अच्छे दोहों की रचना की आपने। भावपक्ष एवँ कथ्य दोनो ही बहुत शनदार है।
बधाई स्वीकार करें।

shukriya Aashish bhai.

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