For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १७

परम आत्मीय स्वजन,

"OBO लाइव महाउत्सव" तथा "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता में आप सभी ने जम कर लुत्फ़ उठाया है उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १७  और इस बार का तरही मिसरा प्रसिद्ध शायर जनाब कुँवर बेचैन साहब की गज़ल से हम सबकी कलम आज़माइश के लिए चुना गया है | इस बहर पर हम पहले भी मुशायरे का आयोजन कर चूके है जिसे यहाँ क्लिक कर देखा जा सकता है | तो आइये अपनी ख़ूबसूरत ग़ज़लों से मुशायरे को बुलंदियों तक पहुंचा दें |

"ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते"

(ये मिहनत गाँ/व में करते/ तो अपना घर/ बना लेते)

1222               / 1222         /  1222            / 1222

मफाईलुन            मफाईलुन       मफाईलुन        मफाईलुन

बहर :- बहरे हजज मुसम्मन सालिम

कफिया: अर ( सर, घर, पत्थर, दर, पर, बेहतर,... आदि )
रदीफ   : बना लेते 

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें| 

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २७ नवम्बर दिन रविवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक २९ नवम्बर दिन मंगलवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १७ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती   है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २७ नवम्बर दिन रविवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |


                                                                                                           

        मंच संचालक
     योगराज प्रभाकर

    (प्रधान सम्पादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन

Views: 13901

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

अश्विनीजी,  आप इस मंच पर नये नहीं रह गये हैं अब.  आपने बहुत कुछ देख-सुन लिया है, बहुत कुछ जान लिया है.  कोरी वाह-वाही और हृदय से निकले उद्गारों का अन्तर आपको स्वयं ही मालूम है. यहाँ, मंच के कई आयोजनों से यह और भी स्पष्ट हो चुका होगा. सार्वजनिक जगहों पर हमें भी संयत रहने की उतनी ही आवश्यकता होती है, जितना कि एक पाठक को.

राणा जी की सलाहों के निहितार्थ समझियेगा ऐसा मेरा सादर सुझाव है.  और मेरे सुझावों को न मानना आपकी अपनी सहुलियत पर है.

 

अहम् को छोड़ आयें हम तभी इज्जत दें औरों को,

अगर यह है नहीं बस में तो क्यों फायर बना लेते| 

अश्विनी रमेश जी, 
आपके श्रेष्ठ ग़ज़ल-प्रयास के लिए साधुवाद ! 

अगर कुछ तो फसल बोते कमायी कर चला लेते

कई सालों सही सामां कई यूँ घर बना लेते

अश्विनी जी ,इन पंक्तियों ने मन को छू लिया,वाह !!!!

जिंदाबाद जिंदाबाद
कमाल हो गया
आपने तो मेरी सोच ही बदल दी
आपके प्रति कई लोगों ने अपने तईं धारणा बना रखी होगी मगर आपकी इस एक रचना ने उसको ध्वस्त कर दिया होगा और मजबूर किया होगा एक नई धारणा बनाने को जो निश्चित तौर पर सकारात्मक ऊर्जा से भरी होगी
और इन मायनों में यह एक कामयाब रचना है

मज़ा आ गया

इस  मुशायरे में मेरी जितनी मेरी हैसियत है उस हैसियत पर रहते हुए मैं इस ग़ज़ल को तरही मुशायरे की सबसे अच्छी गज़ल घोषित करता हूँ
(यदि किसी को आपत्ति है तो निवेदन है कि वो पहले पिछले तीन मुशायरे में अश्विनी जी की रचना पढ़ ले फिर आपत्ति दर्ज करवाए )

जिंदाबाद जिंदाबाद

सायास उत्साह में अतिरेक अपरिहार्य सा  ही  हुआ करता है.

किन्तु,  ठोस धैर्य की कोई अभिभावकीय ओट मृतिका-दीवटे के क्रोड़ में आशान्वित दृष्टि लिये सप्रयास नरम-नरम उठान भरती एक लौ के विस्तृत जीवन का सुगढ़ कारण बन जाती तो क्या अधिक उचित न होता,  देव ?? 

 

यहाँ धारणाएँ नहीं, विश्वास का निर्माण हो रहा है. यही सोच हमारा बल है. 

भाव-भूमि के इस उदार परिसर में कोई शिष्ट रचनाकार  अस्पृश्य समझा गया है क्या??  अबतक ??? .. मैं नहीं जानता.   यह अवश्य है कि,  ओबीओ-समुदाय की अभी शैशवास्था है  और अभी कोई चाहे जो कहे. 

(मैं घण्टों  वर्तमान या आसन्न संदेहों की निवृति को यथायोग्य समर्पित हूँ.  किन्तु,  किसी संदेह  का बलात् नहीं, अनायास अंकुरण हो.)

 

अवश्य ही अश्विनीजी की यह अबतक की अच्छी रचना है,  सभी ने एकस्वर से अपनी-अपनी प्रतिक्रियाओं में ऐसा ही कुछ जताया भी है. 

इस मंच के माध्यम से अश्विनी जी किस अभिनव संजीवनी-रस से लाभान्वित हो रहे हैं वह स्वयं भी समझ रहे होंगे. 

उनकी किसी प्रविष्टि को  ’मुशायरे की सर्वश्रेष्ठ ग़ज़ल’   कह कर क्या हम उत्साहजनित एक ’हास्य’ प्रतिरोपित नहीं कर रहे हैं ??  वर्तमान  तरही-मुशायरा के समापन में अभी भी घण्टोंऽऽऽ हैं.  इस तरह से निर्णायक हो जाना उचित है क्या ??  

 

भाई,  ये मेरे प्रश्न मात्र हैं संदेह नहीं.   हम  किसी एक के नहीं सभी रचनाकारों के शुभ-चिंतक हैं.  मैं रचना-कर्म में अश्विनीजी से कहाँ बेहतर हूँ ???  मेरी कोई ग़ज़ल अभी तक इस तरह की किसी उद्घोषणा के लायक नहीं बन पायी है. !! :-))

 

पुनः ...

इस  मुशायरे में मेरी जितनी मेरी हैसियत है उस हैसियत पर रहते हुए (सामान्य सदस्य)
मैं इस ग़ज़ल को तरही मुशायरे की सबसे अच्छी गज़ल घोषित करता हूँ

(यदि किसी को आपत्ति है तो निवेदन है कि वो पहले पिछले तीन मुशायरे में अश्विनी जी की रचना पढ़ ले फिर आपत्ति दर्ज करवाए )

भाई वीनस केसरी जी, मेरा अनुरोध है कि ऐसी कोई भी स्टेटमेंट देने से गुरेज़ किया जाए, जिससे किसी प्रकार का विवाद पैदा होने का इम्कान हो ! 

प्रिय वीनस केशरी जी,

ओ बी ओ के एक सामान्य सदस्य की हैसियत बहुत है, किन्तु उस हैसियत का प्रयोग कर किसी रचना को वह भी मुशायरे के मध्य में तमाम ग़ज़ल की तकनिकी खामियों के मौजूदगी में हठात व् बलात सर्वश्रेष्ठ घोषित करना वह भी आपके जैसे ग़ज़ल के जानकार द्वारा कतई स्वीकार्य नहीं है | इसका सन्देश अन्य सदस्यों व् आम पाठकों में गलत जा सकता है | मंच संचालक सह प्रधान संपादक जी की टिप्पणी से मैं पूरी तरह सहमत हूँ, इस प्रकार के वक्तव्य से बचना अति आवश्यक है |
आपका 
एडमिन 
ओपन बुक्स ऑनलाइन 

 

सादर

एडमिन साहब यह मेरी व्यग्तिगत सोच है और यह बात मैंने खुले तौर पर स्वीकार भी किया है
हर रचनाकार एक एक सीढ़ी चढता है और अपनी रचनाधर्मिता में सुधार करता है मगर अश्विनी जी के पिछले दिनों की रचना धर्मिता और इस रचना में मुझे ८ /१० सीढ़ियों का अंतर एक साथ दिखा इसलिए मैंने यह बात कही है कि यदि इस मंच से कोई इतनी तेजी से सीख रहा है तो इस मंच को सलाम

और यदि मेरी कही किसी बात का गलत अर्थ निकल सकता है और किसी का मन आहात होता है तो ....
क्षमा क्षमा क्षमा

That's like a good boy!!

भाई आप की हिन्‍दी परम आदरणीय वृन्‍दावनलाल वर्मा जी की हिन्‍दी के युग मे ले जाती है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service