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मनुष्य जब भी कुछ बोलता है तो उस समय की परिस्थिति और वक्तव्य दोनों को साथ रख के विवेचना करनी चाहिए. असामान्य मनःस्थिति में दिए गए वक्तब्यों को अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए. अस्समान्य परिस्थिति और असामान्य मनःस्थिति में अंतर को भी ध्यान में रखना होगा. सीमा पर युद्ध के समय परिस्थिति असामान्य होती है पर मनःस्थिति एक दम सामान्य रखना होता है. असामान्य परिस्थितियों में यदि हम अपनी मनःस्थिति को सहज रख सकें तो सच में हम महान कहलाये जाने के हक़दार हैं.

पिछले कुछ दिनों में जो भी बोला या लिखा गया उसमे परिस्थिति का प्रभाव अधिक रहा. अति उत्साह में कुछ अधिक ही बोल और लिख दिया गया. धर्म मिटा दें, जाति मिटा दें और अंत में अपना नाम और खुद को. सब कुछ मिटा के अगर होश में आयेंगे तो आके भी क्या कर लेंगे.. व्यक्ति की पहचान सबसे महत्वपूर्ण होती है और वो भी व्यक्तिगत. हम हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई हैं इससे हमारी भारतीयता पर प्रश्न चिन्ह कहाँ लग रहा है? इसी तरह हम ब्रह्मण, क्षत्रिय,वैश्य या अन्य उपजातियों के हैं तो इससे हमारे हिन्दू होने पर प्रश्न चिन्ह तो नहीं लग सकता. शिया हैं या सुन्नी, मुसलमान होने पर कोई संदेह कहाँ होता है.

हमारी अपनी सोच की संकीर्णता हमें बड़े बड़े और लोकलुभावन वक्तव्य देने को उकसाती है, अन्यथा क्या जरूरत है ये बताते रहने की कि हम एक हैं. देश में कही अशांति नहीं है फिर भी "शांति बनाये रखें" का जुमला जारी है. कब तक छुपायेंगे हम अपनी ही दाढ़ी का तिनका?

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Sahi kaha hai aapne.
bahut badhia kha aapne ne
वन्दे मातरम बंधू,
आदरणीय शेष धर तिवारी जी, माफ़ी चाहता हूँ पर ये तो बताइए आपसे किसने कह दिया देश मैं कहीं अशांति नही है? बंधू ये उन लोगों के ही कारण आपको नजर आ रहा है जो देश मैं "शांति बनाये रखें" का जुमला ले कर चल रहे हैं ......... अन्यथा तो सैकड़ों दुश्मन शांति की कोशिशों को खत्म करने के लिए तैयार बैठे हैं.......
Aadarniy sheshdhar ji maafi chahta hu, Mujhe to samajh me nhi aaya ki aap kya kahna chahte hai. Aur ye pahchan wali bat kya jati ya dharm se hi aadmi ki pahchan hai. Ye tulsi wali baat samajh se pare hai. Shanti bnaye rakhne ka anurodh bhi to jayaj hai.

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