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दुनिया से जाने वाले जानें चले जाते हैं कहाँ


संगीत -जगत के मकबूल हस्ताक्षर डॉक्टर भूपेन हजारिका का अपराह्न 4  बजकर 37 मिनट पर मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में निधन हो गया.दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित तथा पद्मविभूषण से विभूषित  भूपेन दा को फिल्म शकुन्तला, प्रतिध्वनि एवं लोटी - घोटी के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. रुदाली, आरोप, पपीहा, साज़, एक पल जैसी फिल्मों के संगीत के लिए भूपेन दा को ज़माना हमेशा याद रखेगा. अभी संगीत - जगत  जगजीत सिंह के ग़म से उबर भी नहीं पाया था कि मौत ने एक और संगीत - शिरोमणि को हमसे छीन लिया. मैं भूपेन दा की मधुर एवं पुण्य
स्मृति को नमन करते हुए अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूँ.

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एक बूँद...  मेरी अँखियों से बरसाये....    

विनम्र श्रद्धांजलि ..  ..

हाँ, मैंने उनके बारे में थोड़ा सा पढ़ा है, वे महान व्यक्तित्व के धनी थे. श्रीलाल शुक्ल को मैं राग दरबारी जैसे उपन्यासों के माध्यम से जाना जिनकी पहली पंक्ति ही मन को उद्वेलित कर गयी थी. परन्तु मैं चाहकर भी उन महान हस्तियों से मिल न सका और न कभी अब इसका मौंका ही मिलने वाला है. जिसकी कसक शायद हमेशा रहे.

किनकी बात कर रहे हैं? श्री लाल शुक्ल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि वो होती यदि सटीक स्थान पर कहीगयी होती.

आप तो लिखते हैं न ! फिर तो आपका कायदे से कुछ पढना बहुत आवश्यक है.

 

"दिल हूम-हूम करे.. घबराए..$$"- फिल्म 'रुदाली' यह गाना मेरे दिल के काफी करीब है. यह सच है कि 'लता जी' और 'गुलज़ार साहब' ने इसे ऊँचे आयाम दिए हैं. पर 'भूपेन दा' की आवाज में इसको सुनते हुए, एक अलग ही दुनिया में चले जाने का सा अहसास होता है. निश्चित रूप से उनके निधन से संगीत जगत को अभूतपूर्व क्षति हुई है. श्रद्धा के दो फूल मेरी ओर से भी.. :(

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