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आदरणीय सुधीजनो,

दिनांक – 9 सितम्बर’ 13 को सम्पन्न हुए ओबीओ लाइव महा-उत्सव के अंक -35 की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए शीर्षक “निर्माता” था.

निर्माता अर्थात सृजनकर्ता, के अर्थ को ईश्वर, माँ , गुरू, स्त्रीशक्ति व अन्य भावाभिव्यक्ति देते हुए  21 रचनाकारों नें  दोहा, रोला, कुंडलिया, आल्हा, सवैया, त्रिभंगी छंद, गीत, नव गीत छंद मुक्त व अतुकान्त आदि विधाओं में अपनी उत्कृष्ट रचनाओं की प्रस्तुति द्वारा महोत्सव को सफल बनाया.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस पूर्णतः सफल आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश यदि किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
डॉ. प्राची सिंह
संचालक
ओबीओ लाइव महा-उत्सव

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1. श्री अविनाश बागडे जी 
१- माता ही निर्माता है.
ना ही कोई  देव यहाँ पर,ना ही कोई दाता है। 
स्पन्दन करते सकल जगत की माता ही निर्माता है.
आँख खुली तो सबसे पहले,
माँ का दर्शन पाया है। 
उस के ही हाथों का सबने ,
प्रथम स्पर्श अपनाया है। 
मृदुल थपकियों का नींदिया संग जाने कैसा नाता है !
स्पन्दन करते सकल जगत की माता ही निर्माता है.
जीवन के इस भवसागर का 
पहला पाठ पढाया है। 
उंगली पकड़ -पकड़ के माँ की ,
हमने कदम बढाया है। 
सबसे पहला शब्द जुबां पर माता का ही आता है। 
स्पन्दन करते सकल जगत की माता ही निर्माता है.
सुख में दुःख में हर अड़चन में ,
ममता का ही साथ मिले। 
सर पर आशीषों का हरदम ,
माता का ही हाथ मिले। 
यही एक नाता है जो बस हर पल साथ निभाता है। 
स्पन्दन करते सकल जगत की माता ही निर्माता है.
माँ के ही संस्कारित पथ पे ,
चलकर हम सज्ञान बने। 
जीवन की आपा-धापी में ,
अलग अलग इन्सान बने। 
बचपन की बुनियादी बातें कोई भूल न पाता है। 
स्पन्दन करते सकल जगत की माता ही निर्माता है.
प्रथम शिक्षिका माँ इस जग की ,
पहला पाठ पढाती  है। 
साथ पिता के गढ़ती हमको
और जीना सिखलाती है.
हर बारिश में सदा तना  जो  माँ !बस वो ही छाता  है। 
स्पन्दन करते सकल जगत की माता ही निर्माता है.
ना ही कोई  देव यहाँ पर,ना ही कोई दाता है। 
स्पन्दन करते सकल जगत की माता ही निर्माता है.
२- दोहा -रोला -दोहा 
 
देखी   है निर्माण में  , अक्सर ये ही बात !
पेड़ लगा के मनुज कब , कहाँ स्वयं फल खात 
निर्माता की बात ! अटूट विश्वास चाहिए। 
मन में नित नव करें ,भाव का वास चाहिए।। . 
कठिन विषय निर्माण,सरल विध्वंस जगत में!
यही सत्य श्रीमान ,तुम्हारे मेरे मत में।। 
कहता है अविनाश ,समझ में आया इतना !
हर युग में निर्माण ,नहीं है कुदरत जितना।। 

करते जो निर्माण ,अनेकों आती विपदा!

मगर अंत में भाग, देत सन्तोष-सम्पदा।।
 
आम नहीं ये खास है , मूलभूत सिद्धांत !
निर्माता मन में सदा , पाये जाते  शांत।। 
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2.श्री लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी 

१- निर्माता निर्मित करे

सृष्टि में जिसने रचा, यह सुन्दर संसार

प्रथम निर्माता या खुदा, हम कहते करतार ||

 

रब ही सब रचना करे, कुदरत का निर्माण,

जीवन का सच जान ले, हो जाए कल्याण ||

 

हम तो पहरेदार है, निर्माता करतार

पाषाणों को तोड़कर, हम करते व्यापार ||

 

 निर्माता थे ताज के,उनके काटे हाथ,

सबके सब बेघर हुए, बच्चे हुए अनाथ ||

 

 निर्माता को घूरते, ठूठ खड़े है पेड़,

शहर प्रदूषण से भरे, नित उठ हो मुठभेड़ ||

 

 निर्माता निर्मित करे, जहर रसायन खाद,

पंछी तक भूखे मरे, खाद्य हुआ बेस्वाद ||

२-जन की निर्माता

तूफ़ान को सहन करने का, सामर्थ्य भी रख सकती है

प्रसव रूप में मरकर जीती, दे सकती जो बलिदान है

आँगन महका करता जिससे, माँ ममता का सोपान है

नारी से बढ़कर निर्माता, बस केवल प्रभु का नाम है |

 

अनवरत प्रयास कर लगन से, सदैव जतन जो करती है

तन-मन-धन से अपने उर में,रक्त से सींचा करती है

पालन पोषण करती शिशु का, वह प्रथम गुरु भी बनती है

ईश् ने दे है कोख जिसको, वह मनुज जन्म का धाम है |

 

पशु पक्षी भी अनवरत करते रहे नीड का निर्माण है,

मनुज से कही ये पक्षी भले, जो रखते शिशु का ध्यान है

हर निर्माता करता आया, अपना कुछ नव-निर्माण है

नित नव निर्माण की सोच ही, मनुज प्रगति का आधार है |

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3.आदरणीया कल्पना रामानी जी 

युग निर्माता देश के-दोहे

 

युग निर्माता देश के, कर प्रयत्न दिन रात,

आज़ादी की दे गए, हमें सुखद सौगात।

 

प्राण निछावर कर दिये, हरने जन की पीर,

याद करेंगी पीढ़ियाँ, भर नयनों में नीर।

 

आज सपूतों देश के, नव निर्माता आप,

आलस निद्रा त्यागकर, बदलें क्रिया कलाप।

 

काल बनें जो जीव के, करें न वो निर्माण,

ऐसे कदम उठाइये, मिले जगत को त्राण।

 

इन हाथों निर्माण है, इनसे ही विध्वंस,

या तो मनुज कहाइए, या फिर दनुज नृशंस।  

 

नष्ट करें यदि स्वयं के, अंतर का तम-कूप,

बन जाएगा देश ये, स्वर्ग धाम का रूप।

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4.आदरणीया सरिता भाटिया जी 

१-

निर्माण  किया सृष्टि का , रचकर यह संसार 
ब्रह्मा को करते नमन ,पहले रचनाकार //


निर्माता जो दूसरे , माँ बाप को प्रणाम 
देते सब संस्कार हैं, चलते अंगुल थाम //


निर्माणकर्ता गुरु है, देता सच्चा ज्ञान
उससे है जीवन बना, उससे है पहचान //


जीवन 'गर संवारना,सच्चा गुरु लो खोज 
माली बन जो छात्र का ,उसे सींचता रोज //


कच्चा घड़ा सुधार दे, ठोक थपक कुम्हार 
गुरु संवारे छात्र को, देकर डांट 'र प्यार //


देश निर्माण गुरु करे ,छात्र भविष्य सुधार 
गुरु सा निर्माता नहीं, करलो यह स्वीकार //


निर्माता तुम भी बनो, पेड़ लगाओ यार 
धरती को संवार दो , इसका कर शृंगार //


युग निर्माता हैं सभी, धरती के वो लाल 
आजादी सौगात दी , रखो इसे संभाल //

निर्माताओं को सभी ,करबद्ध है प्रणाम 
जीवन सब संवार लो ,करके अच्छे काम //

२-प्रभु निराकार है महिमा अपरमपार है 

सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है /

धरती बनाई तूने,सब चाँद और सितारे 
नदियाँ बनाई तूने, जंगल,पहाड़ सारे 
सूरज की चमक में, तू ही करतार है 
सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है /

माता पिता तुम्ही हो,बन्धु सखा तुम्ही हो 
दिन रात गर्मी सर्दी बरसात में तुम्ही हो 
जलनिधि में जल के भरे हुए भण्डार हैं 
सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है /

मानव का सुन्दर चोला पाया है तुम्हीं से 
फल फूल प्यारे प्यारे सुगन्ध है तुम्ही से 
तू ही इस जीवन का सर्वोच्च आधार है 
सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है /

प्रभु निराकार है महिमा अपरमपार है 
सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है //

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5.श्री संदीप कुमार पटेल जी 

बढ़ा कैसा ये अत्याचार है

आम जनों में हाहाकार है

दानव जैसा भ्रष्टाचार है

भारत माँ दिखती लाचार है

आज यहाँ ईमान सभी का दर दर की ठोकर है खाता  

उठो युवा अब तुमको बनना है नव-युग का युग निर्माता

हमें जरुरत आज क्रान्ति की

देश की प्रगति और शांति की

मुरझाये से युवा मुखों पर

खुशियाँ ढेरों और कान्ति की

पहचानो तुम अपना मजहब आदम का आदम से नाता

उठो युवा अब तुमको बनना है नव-युग का युग निर्माता

आदमीयत की शान बनो तुम

संस्कारों की खान बनो तुम

भ्रष्ट राज को अब समाप्त कर

इस युग की पहचान बनो तुम

भूलो मत तुम बात एक ये है धरती हम सबकी माता   

उठो युवा अब तुमको बनना है नव-युग का युग निर्माता

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6.श्री रविकर जी 

१- कुण्डलियाँ छंद

माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम । 
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।


सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से । 
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से ।


देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता । 
प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता ??

२-एक भाव-तीन विधा

कुण्डलियाँ

क्षिति जल पावक नभ हवा, घटिया कच्चा माल ।
निर्माना पारम्परिक, दिया शोध बिन ढाल ।

दिया शोध बिन ढाल, प्रदूषित-जल, छल-"काया" ।
रविकर पावक बाल, दंभ ने गाल बजाया ।

हवा होय अनुरक्ति, गगन पर थूके हर पल ।
निर्माता आलस्य, भस्म बन जाए "क्षिति" जल ॥

सवैया छंद

निरमान करे जल से क्षिति सान समीर अकाश सुखावत है |
पर पुष्ट नहीं हुइ पावत जू तब पावक पिंड पकावत है |
जब काम बढे प्रभु नाम बढे, तब ठेकप काम करावत है |
परदूषित पंचक तत्व मिले, बन मानव दानव आवत है ||

चौपाई

क्षिति जल पावक गगन समीरा 
घटिया दूषित जमा जखीरा । 
छली बली है खनन माफिया । 
आम हुई है रपट खूफिया ॥

निर्माता अब देता ठेके । 
बना बना के जस तस फेंके ॥ 
आलोचना सदैव अखरती । 
निंदा आग बबूला करती ॥

क्षिति को शिला जीत उकसाए । 
कामातुर अँधा हो जाए । 
आसमान पर थूका करता । 
मानव बरबस पानी भरता ।|

नीति-नियम का उल्लंघन कर । 
करता जलसे मानव अक्सर 

हवा हवाई किले बनाता । 

किन्तु नहीं चिंतित निर्माता ॥ 
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7.श्री गिरिराज भंडारी जी 

१- पाँच दोहे 

 

निर्माता गर तोड़ता, छिपा जोड़ का रूप

सूरज तपता है मगर, ज्यों जीवन दे धूप

 

खुद का अनुभव खुरच के, करता नव निर्माण

ताकि जनता समझ उसे, कर पाये कल्याण

 

खुद का दर्द दबा लिया, और हँसा दिन रात  

निर्माता बनना नहीं , हँसी खेल की बात

 

ईश बनाये जगत को, इससे बड़ा न कोय

मात-पिता गुरु इस जनम, का निर्माता होय

 

निर्मित संग विरोध जब, निर्माता का होय

खुद के दातों बीच ज्यों, अपनी जिव्हा होय

२- अतुकांत 
उसी निर्माता के अंश


अंशा अंशी के सिद्धांत से
सच है हम सब ,
उसी निर्माता,
उसी परमात्मा के
अंश हैं
सब मे उसके गुण मौज़ूद हैं
थोड़ा थोड़ा
थोड़ी मात्रा में
सब के अन्दर थोड़ा
निर्माता भी जीता है
सब निर्माण के योग्य भी हैं
और खुशी की बात है
करना भी चाहते हैं
निर्माण,
सुधार , बदलाव
पर दुख की बात है
हर निर्माण , हर बदलाव
हर सुधार
वो करना चाहते हैं
दूसरों में
खुद मे नहीं

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8.डॉ० प्राची सिंह जी 

निर्माता 

 

जिंदगी रहस्मय

प्रथम संस्पर्श प्रेममय 

बाल्य अठखेलियाँ 

अनगिन अबूझ पहेलियाँ 

रिश्ते नाते मैत्रिक अनुबंध 

बिखरते सँवरते पैत्रिक सम्बन्ध 

प्रेमोत्कर्ष, स्वप्न सहर्ष, पुष्पित राह 

धूसर विध्वंस, उफ़! विरह दंश, चीखें कराह

कहीं घुटते स्वप्न, तो कहीं अपरिमित विस्तार 

कहीं सिसकते हृदयों में जीवन निःसार...

नदिया पर्वत पंछी पिंजर 

राक्षसी जबड़े, कहीं वाक् खंजर 

आह! आपाधापी रेलमपेल 

मन-वाणी-कर्म एकदम बेमेल 

आप्त-वचन चिंतन दर्शन 

नित नव्य रहस्योद्घाटन...

अनुभव प्रवण, जीवन क्षण क्षण 

मेरा ही अंतर्मन गढ़ता विधान

चुनता स्वरुप करता निर्माण

मनुज स्वयं स्व-भाग्य विधाता

आत्मस्वरुप केवल निर्माता..

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9.श्री अलबेला खत्री जी 
कुण्डलिया छन्द 

मैं निर्माता काव्य का, कवि  मेरी पहचान 
शब्द शब्द में अर्थ का, करता अनुसन्धान 

करता अनुसन्धान, रात भर जागा जागा
रस का करता पान, ध्यान रचना में लागा 

लागा ऐसा चाव, सृजन में ही सुख पाता 
शब्द शिल्प रस भाव, छन्द का मैं निर्माता  
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10.श्री राज कुमार जिंदल जी 

प्रभु आशीष से माता पिता होते हैं हमारे जन्म दाता . ,
शिक्षक देते ज्ञान, स्वयम हम हैं जीवन के निर्माता .

पुरुषार्थ से ही होता मानव का प्रतिष्टित परिचय ,
धर्म ,काम ,अर्थ ,मोक्ष ,महान सपने ,स्पष्ट लक्ष्य .
विश्वाश पराक्रमी ,उत्साह ,जोश ,शिक्षा ,वीरता ,
हाथ का काम हस्त रेखाओं में परिवर्तन लाता .

मानव सुनता है भूल जाता है, देखता है जो याद रखता ,
करता है जो उसे समझ जाता है काम ही उसकी सफलता .

मानव का न होना कोइ उद्देश्य है सबसे.बड़ी त्रासदी ,
भाग्य को कोस कर पूरी जिन्दगी व्यर्थ गवा दी .
मनुष्य है स्वयं अपने भाग्य का निर्माता ,
पराक्रमी ,साहसी से भाग्य देव भी घबराता ..

प्रत्येक कठिनाई जिसके भय से आप ने मुंह मोडा , 
एक भूत बन कर आपकी नीद में डालेगी बाधा .

ऊँची ही होनी चाहिए हमारी महत्वाकांक्षा ,
प्रयत्न हों बड़े और गहरी हो हमारी प्रतिबद्धता।
शेर से सीखी जा सकती है एक उत्कृष्ट बात
करो कार्य पूरे दिल और ज़ोरदार प्रयास के साथ

अच्छे निर्माता अधिक निर्माता बनाने की करें चेष्टा .
बुरे निर्माता अधिक अनुगामी बनाने में समझे श्रेष्टता .

प्रसन्नता ,उपलब्धि , कोई चीज नहीं पहले से निर्मित
चरित्र सहज और शांत में नहीं हो सकता विकसित.

कल दूध को जाग नहीं लगाया क्या दहीं बनेगा आज ?,
बिन परिश्रम से बोलने पर कैसे कोई पहनाएगा ताज ?


-जो पेड़ विकसित हों धीमी गति से ,
-उचित प्रक्रति अनुकूलन से श्रेष्ट फल दे ,
-कुल मिलाकर पांच सौ ग्राम शेहद एकत्रित करने हेतु ,
-चालीस लाख फूलों का रस चूसता मधु मखी का समूह .
-दो लाख किलो मीटर की दूरी का करता अटूट भ्रमण ,
-धैर्य ,लग्न ,ध्रिडता ,निरंतर प्रयत्न की अनोखी उद्धारण। 
मनुष्य हो रुचि लो सँवारो अधिक अपना वर्तमान जीवन ,
कर्म-कौशल,से करो समस्याओं का समाधान लाओ,परिवर्तन .
दिव्यताओं को अपनी ही धरती पर उतार लाने का करो प्रयास,
पृथ्वी को ही स्वर्ग बना देने का 'निर्माता मानव ' में है साहस .

मानव का जीवन यदि नहीं है साहस ,
तो है यह दुर्लभ जीवन का परिहास .

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11.श्रीमति राजेश कुमारी जी 
१-
जीवन निर्माता ,भाग्य विधाता ,सब दुख हरता , ईश्वर है
त्रण-त्रण परिभाषित,राह प्रदर्शित,पग- पग करता , गुरुवर है
चुनकर पग कांटे, सुख- दुख बांटे, खुशियाँ भरता , प्रियवर है 
सर्वस्व समर्पक,गेह प्रवर्तक , मन का धरता, दिलवर है
२-  (अतुकांत )

.

कर्ण पट  चीरता हुआ  संगीत

रक्तचाप बढाता  हुआ शोर

आँखों की पुतलियों पर

 कहर ढाती रौशनी

नथुनों पर हावी होती मय की गंध

संस्कारों पर आघात करते

लडखडाते क़दमों से

कालीन पर थिरकते

रंगे पुते चेहरे ओढ़े 

अध् नंगे जिस्म

छनछनाते हुए कट गिलास

कहकहा लगाकर

कुछ कागजों पर

हस्ताक्षर करते  

एक दूजे से हाथ मिलाते

कुटिल मुस्कान के साथ

कुछ उपहारों का आदान प्रदान करते लोग

फिर अचानक एक

दूर कौने में एक कप सूप

और एक रोटी के लिए इन्तजार करते

हुए मूर्ती वत बैठे मेरी और

आकर मुझे बधाई देते

और याद दिलाते कि

मैं अस्सी बरस का हो गया हूँ

और मैं अपने भविष्य

की जुल्मत में  बेकल

आगे  बचे सफ़र की

लकीर को हथेली से

अपने  नाखून से

खुरचने लगता

और रंगमच के

असफल चरित्र निर्माता

सा  नेपथ्य में

अपनी गल्तियों को टटोलता  

हुआ  अनमना

सा कहता थैंक्स !!!

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12.श्री केवल प्रसाद जी 

आज बृह्मुहूर्त में ख्वाब से उठकर जागा,
उसी के ख्याल में स्वयं को हकीकत जाना।
न पाया किसी को अपने कमरे में,
उसे खोजता बाहर दरवाजे तक आया।

खोल कर दरवाजा ज्यों सिर को उठाया,
आकाश में उसका चेहरा खिला नजर आया।
भूल कर खुद को उसे तलाश लिया मैंने,
उसकी मरमरी स्पर्शो में स्वयं को आलिंगन पाया।

उसी की चाहत में स्वयं को बदला पाया
स्वप्न साकार करने को पुरजोर अजमाया
भुलाकर दुनिया को उसे ही पुकारा मैंने
झूठे संबंधों से स्वयं को बंधन मुक्त पाया।

उसी की सासों में स्वयं को जीता पाया
उसके मुस्कराने से मुझे मुस्कराना आया,
उसी की जीत को स्वयं की जीत समझा मैंने
तहरीरे खुदाई* को झूठ और उसको सच पाया।

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13.श्री अरुण शर्मा 'अनंत' जी 

आल्हा छंद.

स्वयं विधाता अपने कर से, करके धरती का श्रृंगार,

दिया मनुज को एक सलोना, सुन्दर प्यारा सा संसार,

मानवता का पाठ पढ़ाया, सिया राम ने ले अवतार,

लौटे फिर से मोहन बनके, और सिखाया करना प्यार,

स्वतः स्वतः पर मानव बदला, बदली काया और विचार,

भूल गया सच की परिभाषा, भूल गया गीता का सार,

गुंडागर्दी लूट डकैती, धोखा सरकारी व्यापार,

अपने घर की चिंता सबको, भले मिटे दूजा परिवार,

खुद का दाना पानी मुश्किल, करते लोगों का कल्याण,

राम नाम जप करें कमाई, जनता का हर लेते प्राण,

भोग विलास अधर्म बेशर्मी, महँगाई के बरसे बाण,

संसद में नेता जी कहते, जारी है भारत निर्माण....

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14.श्री गणेश जी 'बागी'
ग़ज़ल
वजन : १२२ १२२ १२२ १२२

तुम्ही हो विनाशी, तुम्ही हो विधाता,
निरे हम हैं मूरख, तुम्ही एक ज्ञाता |

समंदर है गहरा, ये धरती बड़ी है,

इशारों पे अपने तू सबको नचाता |

हवाओं में तू है, फिजाओं में तू है,
ये जीवन की नैया, तू ही तो चलाता |

ये मानव तो मूरत, नियंता तू ही है,
गिराता, उठाता, रुलाता, हँसाता |

तेरे से है "बागी" मेरी रिश्तेदारी,
पिता, भाई, बहना तू ही मेरी माता |
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15.श्री अरुण कुमार निगम जी 

निर्माता  कोई  कहलाता , कोई  करता  है  निर्माण |
शूरवीर  कहलाता  कोई  और  लुटाता  कोई  प्राण ||

धन-बल जिसके पास जगत में, होता है उसका ही नाम |

रचना कितनी भी सुन्दर हो,श्रम को केवल मिलता दाम ||

 

बाँध सड़क या महल-दुमहले, राजभवन हो या हो ताज |

शिलालेख पर नाम खुदा है, उसका जिसने भोगा  राज ||  

 

कौन याद रखता श्रम-बूँदें, याद किसे श्रमिकों की पीर |

घाम झुलसती चमड़ी किसकी,जर्जर किसका हुआ शरीर ||

 

सच्चा निर्माता वह होता , सृजन करें जिसके दो हाथ |

जनहित जिसका मूल-लक्ष्य हो,ईश्वर उसको देता साथ ||

 

जीवन का  ढाँचा  रचता है , कोई  गढ़ता है संस्कार |

कोई  रचता  कला-साधना , कोई  दे  अन का भंडार  ||

 

है  कोई  कुम्हार सरीखा , कोई  तोड़  रहा  पाषाण |

रंग भरे कोई  जीवन में ,  सब उद्दत करने निर्माण  ||

 

बिना स्वार्थ के सृजन करे जो,रखता हो जन-हित का ध्यान

कर्म करे  फल-इच्छा त्यागे , निर्माता है वही महान ||

 _________________________________________________

16.आदरणीया विजयश्री जी 

छोटी सी बच्ची

ज़िद कर मचली

माँ ने समझाया

प्यार से बहलाया

भैया को जाने दो

पापा के साथ  

पास के बाज़ार

मिला उसे इंकार मनोनुसार

थी वो निर्माता जगोनुसार  

 

बच्ची हुई बढ़ी

स्कूल में थी पढ़ती

वहां से संदेशा आया

पिकनिक पर था जाना

माँ ने पास में बिठाया

पापा का मन बताया

ऊँच-नीच समझाया

मिला उसे इंकार मनोनुसार

थी वो निर्माता जगोनुसार

 

स्कूल पूरा हुआ

आई किशोरावस्था

कॉलेज था जाना

आगे था पढना

उत्साह से बताया

बनाना चाहती है भविष्य सुनहरा

कर न पाई वो ये सपना पूरा  

मिला उसे इंकार मनोनुसार   

थी वो निर्माता जगोनुसार

 

सखी सहेलियां तो कॉलेज गई

निहायत अकेली गुमसुम वो हुई  

बात उसकी किसी ने न सुनी

पापा ने फिर किया विचार

उचित वर की की तलाश

कर दिए उसके पीले हाथ

झुका कर सर वो हो गई विदा  

मिला उसे इंकार मनोनुसार

थी वो निर्माता जगोनुसार

 

सज संवर दुल्हन वो बन

तमाम इंकार ले करके संग

जा पहुंची अपने पी के द्वार

मुहँ दिखाई में

पी ने माँगा था उससे एक वचन

पूरा करना होगा तुम्हें मेरी अम्मा का कथन

यहाँ भी न हुई पूरी उसके मन की चाह

मिला उसे इंकार मनोनुसार  

थी वो निर्माता जगोनुसार

 

सम्पूर्ण समर्पण के संग

परिवार में वो गई थी रम

पीहर भूल ससुराल की वो हुई

जी जान से करती थी

घर भर की वो सेवा 

एक दिन माँ की आई उसको याद 

पीहर भेजने की की उसने फ़रियाद

मिला उसे इंकार मनोनुसार  

थी वो निर्माता जगोनुसार

 

कुछ सालों के बाद

दो बच्चों की माँ थी वो आज

बच्चों का खर्चा महंगाई की मार

सास की बिमारी ससुर की दवा

पति का हाथ बटाने की

की उसके दिल ने चाह

सबने उसकी बात न मानी

किसी ने उसकी इच्छा न जानी

थी वो निर्माता जगोनुसार

 

सारे के सारे इंकार

कर लिए उसने स्वीकार

जिसने बनाया उसे

मन ही मन बीमार

ध्यान सब उसका रखने लगे

खुश उसको रखने में जुटने लगे

पर समझ न पाया कोई

उसके मन का रोग

थी वो निर्माता जगोनुसार

 

सब अपनों ने रक्खा

उसका बहुत ही ख्याल

बचपन का ख्याल

किशोरावस्था का ख्याल

पत्नि और बहु होने का ख्याल

माँ होने का ख्याल

पर किसी ने जाना नहीं

उसके दिल का हाल

थी वो निर्माता जगोनुसार  

 

कुछ कहना चाहती थी वो

एक इंकार करना चाहती थी वो

अस्पताल नहीं जाना चाहती थी वो

घर में सिमट प्राण देना चाहती थी वो

अब बन गई थी वो सबकी ज़रूरत

चाहते थे सब उसको सही सलामत

यहाँ भी कोई न समझा उसके ज़ज्बात

किसी ने न सुनी उसकी बात

थी वो निर्माता जगोनुसार  

 

काश की उसने

अपना हक़ जताया होता

सबके जीवन में रोशनी बिखेर

खुद को न यूँ जलाया होता

शीश अपना भी कभी उठाया होता

चुपचाप यूँ सहन किया न होता

न कोई कर पाता तब उसे इंकार

बिताती वो जीवन अपने मनोनुसार  

निर्माता बन रहती अपने अनुसार

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17.श्री सत्यनारायण सिंह जी 
कुण्डलिया छंद

सबकी शाश्वत मान्यता, निर्माता जगदीश।
देख कलाकृति ईश की, सभी नवाते शीश।।
सभी नवाते शीश, मानता जग यह सारा।
निराकार वह ब्रम्ह, करे जग का विस्तारा।।
कहे सत्य कविराय, कलाकृति नश्वर जिसकी।
किन्तु अनश्वर ईश, मान्यता शाश्वत सबकी।।
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18.श्री अखिलेश् कृष्ण श्रीवास्तव जी 

विधाता ही निर्माता है                                                                                                   

                                                

निर्माता बस एक है, कहते हैं जिसे विधाता।

एक नहीं, सब जन्मों का, वही एक निर्माता॥                           

वही सखा है, वही गुरू है, और वही है भ्राता।

उसी से सारे रिश्ते-नाते, वही पिता और माता॥

अंदर बैठा राह दिखाता, आत्मा की आवाज सुनाता।                                                            

दुतकारो चाहे गाली दो, वो अपना काम कर जाता॥                           

सगे संबंधी सह यात्री हैं, थोड़ी दूर का नाता।

मंजिल आई, उतर जाएंगे, पिता हो चाहे माता॥                                      

बचपन यौवन आए बुढ़ापा, साथ हमेशा निभाता।

मानो चाहे, न मानो, हर हृदय में है पर्मात्मा॥

_______________________________________________

19.श्री अजीत शर्मा 'आकाश' जी 

भाग्य-निर्माता

                   

कृषक परिश्रम करके धरती से सोना उपजाता है

सीमा पर चौकस रह प्रहरी अपना फ़र्ज़ निभाता है

माली मेहनत करके बगिया में हरियाली लाता है

         सच्चाई तो ये है मानव स्वयं भाग्य-निर्माता है.

        

भाग्य कर्म से बँधा हुआ है, यह दोनों का नाता है

कर्मों का परिणाम हमारे सम्मुख हरदम आता है

कोई नहीं दया का सागर, और न कोई विधाता है

         सच्चाई तो ये है मानव स्वयं भाग्य-निर्माता है.

कर्मों का प्रतिफल ही सबकी क़िस्मत को चमकाता है

जैसी करनी  वैसी  भरनी,   हर मज़हब सिखलाता है

अंगारों  को    छूनेवाला     अपने   हाथ   जलाता   है  

          सच्चाई तो ये है मानव स्वयं भाग्य-निर्माता है.

_______________________________________________

20.श्री राम शिरोमणि पाठक जी 

मदिरा सवैया: गुरु (निर्माता)

अंजन ज्ञान अँजाइ रहे सुचि,मार्ग हमॆं दिखलाइ रहे !!
दूर भगाइ रहे हिय संशय, ज्ञान - सुधा बरसाइ रहे !! 
ध्यान लगाइ पढ़ो दिन-रातहिं,बात सुनीति बताइ रहे !! 
स्नेह लिए अपने हिय में ,सम भाव सबै समझाइ रहे !!

________________________________________________

21.श्रीमति अन्नपूर्णा बाजपेई जी 

अतुकान्त :धरती है निर्माता 

 

सींच कर अपने रक्त से

गढ़ती है नित नए कलेवर

असंख्य रत्नों का भंडार,

है सोने सा तन इसका ,

हरा भरा आंचल ,

सुंदर सलिल सरितायेँ ,

मोहक रूप मनोहर

ये धरती है निर्माता ।

गोदी मे खेले इसकी

बालक हो या बालिका

न करती कभी कोई भेद ,

ये धरती है निर्माता ।

कितनों ने ही नोचा इसको

सुंदरता को छीना है

बच्चों को भी मारा है

उफ ! भी न किया कभी

बस सबको ही पाला है

ये धरती है निर्माता ।

जो रूठ गई 

तो क्या करोगे 

न देख सकोगे 

विध्वंस इसका 

न झेल सकोगे 

दण्ड इसका 

इसको सहेजना होगा 

ये ही हमारी माता है 

मत भूलो !! ये धरती है निर्माता । 

_______________________________________________

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वाह  डॉ प्राची जी बहुत शीघ्र और सफलतापूर्वक  संकलित की आपने  सभी रचनाएं 

इस सफल आयोजन व संकलन के लिए बधाई स्वीकारें 

आदरणीया विजयाश्री 

आयोजन में आपकी ऊर्जस्वी सहभागिता, संलग्न पाठक धर्मिता के साथ साथ संकलन का रसास्वादन कर बधाई संप्रेषित करने के लिये हार्दिक धन्यवाद 

Sir, I have also posted a poem but same has not been entertained The poem was " srishti nirmaata ne rula diya".Please tell whether there is any mistake from my side or any other reason. Being a new member this was my first poem. I dont know to whom I have to address,mode of posting etc.

thanks

sushil sarna

सुशील जी कहीं आपने रचना रात  के 12 बजे के बाद तो पोस्ट नहीं की थी ? क्योंकि महोत्सव का १ २ बजे समापन हो जाता है |

naheen Mam, rachna maine din main hee post kee thee, thanks

sushil sarna

sarnasushil@yahoo.com

09269296121

आपने रचना को पोस्ट कहाँ किया है आदरणीय ? आयोजन के पन्नों में तो आपकी रचना नहीं है... 

आदरणीय सुशील शर्मा जी 

आपका मंच पर स्वागत है !

आयोजन के पन्नों में तो आपकी रचना मेरे देखने में नहीं आ सकी, यदि आप अपनी रचना का लिंक दें तो मैं भी उसे देख कर संकलित कर सकूँगी.

सादर.

Resp.Mam, maine wall pr jo send message box hai usmen rachna daalee thee. aap khain to main isee men aapko puhah preshit kr doon.

thanks

sushil sarna

sarnasushil@yahoo.com

नहीं आदरणीय सुशील जी

..वो रचना तो किसी के मेसेज बॉक्स में चली गयी होगी फिर... आयोजन में तो सम्मिलित ही नहीं हो सकी , अतः उसे संकलन में लिया जाना संभव नहीं होगा 

कोई बात नहीं आप अपनी रचना को ब्लॉग में शेयर कीजिये वहाँ उसे सभी पाठक जन पढ़ सकेंगे.

ब्लॉग में रचना पोस्ट करने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें 

http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/new

या हर पृष्ठ पर सबसे ऊपर दिए हाइपरलिंक्स में से ब्लोग्स प्रेस करें, फिर ऐड प्रेस करें और अपनी रचना वहाँ पोस्ट करें 

सादर.

लाइव महोत्सव ३५ के सफलता पूर्वक संपन्न होने पर प्रिय प्राची जी और आदरणीय बागी जी ,आदरणीय योगराज जी के साथ ओ बी ओ के सभी सदस्यों को बधाई
तथा सभी प्रविष्टियों को एक सूत्र में पिरोने हेतु प्राची जी आपको विशेष बधाई एवं शुभकामनायें |

आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय 

इस सफल आयोजन व संकलन के लिए बधाई डॉ प्राची जी

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