For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साहित्यिक परिचर्चा ओबीओ लखनऊ-चैप्टर, फरवरी 2021 प्रस्तोता :: डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

(संचार माध्यम से युगपत साहित्यिक गतिविधि)

विषय – कवयित्री सुश्री निर्मला शुक्ल की कविता  ‘फूल बनो‘

दिनांक – 21 फरवरी 2021 ई० (रविवार)   संचालक – सुश्री आभा खरे   

समय – 3 बजे अपराह्न                 अध्यक्ष – श्री अजय प्रकाश श्रीवास्तव ’विकल’

 

                          ‘फूल बनो‘

       बीज बने मत रहो धरा में  उगकर फूल बनो I

      कलिका बनो पराग सुपूरित, किन्तु न शूल बनो।

बीज वही सार्थक है जो मिट्टी में मिल जाता है

पादप बन विकसित होता है सौरभ बिखराता है।

       महकाओ उपवन का कण-कण मधुमय धूल बनो

       बीज बने मत रहो धरा में  उगकर फूल बनो ।

 जिसने प्यासे पथिकों की हो, तनिक न प्यास बुझाई

जलचर नभचर दोनों ने हो, जहाँ न थकन मिटाई

        कभी भूलकर भी मत उस सरिता के कूल बनो I

         बीज बने मत रहो धरा में  उगकर फूल बनो ।

 जिसमें काँटे ही काँटे हैं,  दर्द चुभन का पहरा

तनिक असावधान होते ही घाव बनाएँ गहरा I

        फल फूलों से वंचित तुम न करील बबूल बनो

बीज बने मत रहो धरा में, उगकर फूल बनो ।


     उक्त कविता पर विचार रखने हेतु सर्वप्रथम सुश्री कौशांबरी जी का आह्वान हुआ I उनका कहना था कि ‘फूल बनो’ एक प्रेरणादायी रचना है । इसकी पंक्तियों में स्पष्ट संदेश है कि मनुष्य को अपने निज को विकसित कर अनुंकरित बीज की भाँति नष्ट न हो पूर्णता प्राप्त करना चाहिए I हमें जगत रूपी उपवन में हास्य सुगन्ध का संचार करना है I ऐसा सरिता-तट बनना है जहाँ पशु-पक्षी मानव सब अपनी तृष्णा शांत कर सकें । हमें दूसरों के लिए बबूल करील के काँटेदार वृक्ष नहीं बनना है I इसके विपरीत हमें सभी के लिये फल, फूल, सुगन्ध एवं छायादार सघन वृक्ष बनना है।

      सुश्री नमिता सुन्दर ने कहा कि कविता 'फूल बनो' मन में बहुत सारे मीठे भाव जगा गई I मन को प्रेरित करती, पाठ पढ़ाती कविता हमें बचपन के गलियारों में खींच ले गई जब पाठ्यक्रम की ऐसी कविताएँ हम जोशोखरोश से कंठस्थ करते थे और गाते थे । हमारा मानना है कि आज इस प्रकार की उत्साहवर्धक शिक्षाप्रद कविताओं की अधिक आवश्यकता है । भाव और शिल्प दोनों ही दृष्टि से कविता प्रभावित करती है I

डॉ. अशोक शर्मा के अनुसार निर्मला जी की कविता में सकारात्मकता है I समूचा जीवन दर्शन निहित है l बहुत सुन्दर भावनाओं का चित्रीकरण किया गया हैlश्री आलोक रावत ‘आहत लखनवी’ के अनुसार ‘फूल बनो’ कविता एक सार्थक जीवन प्रेरणा है | विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से कवयित्री ने जीवन की सार्थकता पर प्रकाश डाला है | कविता के प्रथम बंद में बीज का उदाहरण देते हुए उन्होंने पराग-कण की तुलना मधुमय धूल से की है जो चित्ताकर्षक है | दूसरे बंद में सरिता के कूल से थोड़ा भ्रम की स्थिति प्रकट हो रही है I कविता के भाव सुंदर हैं और संदेशपरक भी |

 श्री भूपेन्द्र सिंह ‘होश’ जी का कहना था कि निर्मला जी की विचाराधीन रचना मुझे हर दृष्टि से श्रेष्ठ लगी I गीत की विषय वस्तु संदेशात्मक है तथा सकारात्मक चिंतन से ओत-प्रोत है I इसमें परमार्थ की भावना का पालन करने का निर्देश है I  इस संदर्भ में कवयित्री ने करणीय व अकरणीय को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है I विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से जीवन की उपयोगिता तथा सार्थकता की ओर संकेत हुआ है I गीत के मुखड़े में ही क्रियाशीलता का आग्रह है कि बीज को धरती में निष्क्रिय पड़े नहीं रहना है .. उग कर फूल बनना है .. वातावरण को सुगंधमय बनाना है I गीत के हर अंतरे में मूल विचार को रेखांकित किया गया है कि जो प्यास न बुझा सके ऐसी सरिता के कूल न बनो और बबूल न बनो जिसमें काँटे ही काँटे होते हैं I भाव पक्ष के बाद भाषा व शब्द विन्यास की दृष्टि से भी रचना श्रेष्ठ है I

      डॉ. अर्चना प्रकाश का कथन है कि ‘फूल बनो" कविता में बीज व फूल के माध्यम से मानव जीवन की सार्थकता को रेखांकित किया गया है । मनुष्य जीवन दुर्लभ है इसलिए इसे सत्कार्यो में ही प्रवृत्त करना श्रेयस्कर है । यदि स्थितियाँ धूल मिट्टी जैसी नगण्य हों तो भी उसे उपयोगी बनाने का प्रयास करना चाहिए । कविता के वाक्य - न शूल बनो, न कूल बनो, न करील बबूल बनो आदि व्यक्ति की हीनता को दर्शाते हैं I आदमी को अधिकाधिक बेहतर बनने का प्रयास करना चाहिए । कविता की शैली उपदेशात्मक और भाषा सरल तथा  प्रवाहपूर्ण है ।

 डॉ .शरदिंदु मुकर्जी ने कहा- निर्मला जी की रचना मुझे अच्छी लगी । काव्यगत गुणों से समृद्ध होने के साथ ही  (जिसके बारे में विशेषज्ञ ही बता सकते हैं) आलोच्य रचना में गंभीर संदेश निहित है । मानव जीवन केवल समय बिताने के लिए नहीं, स्वयं को प्रस्फुटित करने के लिए है Iश्री मृगांक श्रीवास्तव का कथन था कि बीज के माध्यम से मानव-जाति के लिए कुछ करने व अच्छा होने की बहुत प्रेरक रचना है । बीज में अपार संभावनाएं भरी पड़ी होती हैं पर यदि वह निष्क्रिय पड़ा रहेगा तो पुष्पित पल्लवित कैसे होगा । अपेक्षा की गई है कि वह उगे भी और पेड़-पौधों के सभी अच्छे-अच्छे गुण हों तथा पशु-पक्षी और मानव सबके लिए सुखमय एवं लाभकारी हों । पीड़ादायक अवगुण बिल्कुल न हों अर्थात फूल बनो हिंदी वाला, अंग्रेजी वाला नहीं । वास्तव में यह बहुत अच्छी कल्पनाप्रसूत और प्रेरणादायक रचना है।

सुश्री कुंती मुकर्जी ने कहा कि निर्मला जी की रचना जीवन के सकारात्मक पहलू को दर्शाती है । हालाँकि बीज से फूल बनने की बहुत सारी प्रक्रियाएं प्रकृति को निभानी पड़ती हैं । सरल-सुंदर और ग्राह्य, निर्मला जी की यह कविता राष्ट्र कवि श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की एक अनुपम रचना की याद दिलाती  है- 'यह धरती कितना देती है।'

सुश्री संध्या सिंह ने कहा कि आलोच्य कविता आंतरिक लय बरकरार रखते हुए एक निर्बाध शब्द-प्रवाह के साथ अपनी बात रखती है l कुल मिला कर एक ज़रूरी रचना गुंथे हुए शिल्प में निबद्ध है I

डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने कहा कि विचाराधीन कविता अभिधा और लक्षणा में है और इसमें प्रसाद गुण भी है I इसमें लक्षणा शब्द-शक्ति का बेहतरीन उपयोग हुआ है I जब कवयित्री कहती है कि - बीज बने मत रहो धरा में उगकर फूल बनो – तो सामान्यतः लोग उंगली उठा सकते हैं कि बीज से पौधा या वृक्ष बनेगा और आवश्यक नहीं कि उसमें फूल भी हों I ऐसा ही एक प्रश्न ‘सरिता के कूल बनो’ में उठता है कि कूल से प्यास कैसे बुझ सकती है ? परन्तु ये दोनों ही प्रयोग सही है I शब्द-शक्तियों के ब्याज से हम जानते हैं कि कवि अपनी बात तीन तरह से कह सकता है I एक- अभिधा, दूसरा लक्षणा तीसरा व्यंजना I

 लक्षणा, शब्द की वह शक्ति है जिससे कथन का अभिप्राय सूचित होता है । साधारण शब्दार्थ से भिन्न जहाँ दूसरा वास्तविक अर्थ प्रकट होता है, उसे लक्षणा कहते हैं । यहाँ निर्मला जी जब ‘उग कर फूल बनो ’ कहती हैं, तो यहाँ पर लक्षणा है I यह पढ़ते ही मन में भाव जगता है कि बीज अंकुरित होगा, फिर कल्ले फूटेंगे तब वह पौधा या वृक्ष बनने की प्रक्रिया में आयेगा और समय पाकर फिर पल्लवित और पुष्पित भी होगा I लक्षणा शब्द की नहीं अपितु कविता की भी शक्ति है I आवश्यकता के अनुसार कवि अभिधा में सीधी सपाट योजना भी करते हैं किन्तु लक्षणा और व्यंजना का प्रयोग न हो तो कविताई कैसी ? ‘साकेत’ में दद्दा मैथिलीशरण गुप्त जी कहते हैं-– सूर्य का यद्यपि नहीं आना हुआ, किन्तु समझो रात का जाना हुआ I यहाँ व्यंजना है I प्रसंगानुसार इसका अर्थ यह है यद्यपि भारत से अभी पराधीनता पूरी तरह गयी नहीं है पर स्वतंत्रता समझो आने ही वाली है I कहने का तात्पर्य यह है कि निर्मला जी ने इस कविता में बेहतरीन लाक्षणिक प्रयोग किये हैं I  

कवयित्री जब कहती है- ‘मधुमय धूल बनो’ तो यह उच्च कोटि की व्यंजना है I धूल अनुपयोगी और कष्टप्रद होती है पर उसे जब रंग कर सुगन्धित अबीर बना दिया जाता है तो वही धूल माथे और कपोलों पर सजती है I निर्मला जी की कविता हालाँकि पारंपरिक है और विषय भी पुराना है पर उनकी प्रस्तुति सराहनीय है I इसमें पांडित्य  प्रदर्शन नहीं है पर इसमें कवित्व झलकता है I  

डॉ. अंजना मुखोपाध्याय का कहना था कि विचाराधीन कविता में सामान्य शब्दों में कवयित्री का आह्वान प्रकृति के सृजन के माध्यम से व्यक्त होता है I बीज की सार्थकता धरती में विलीन होने और पौध के विकास के साथ होती है । उगने की इस प्रक्रिया में जो फूल और फल उस बीज से प्राप्त होता है वह खुशबू देता है और छाया प्रदान कर सार्थक होता है। 'बीज' यहाँ सम्भाव्यता का प्रतीक है । जबकि फूल उसका विकसित अस्तित्व है I 'उगकर फूल बनो’ –उस पौध की वृद्धि, पूर्णता प्राप्ति और विकास की गतिशीलता को इंगित करता है I कवयित्री संभवतः हर सम्भाव्यता का 'आत्म साक्षात्कार' करवाने के लिए उद्बुद्ध कर रही है, क्योंकि अस्तित्व की सार्थकता तभी चरमोत्कर्ष पर पहुँचती है।

संचालिका सुश्री आभा खरे ने कहा कि सुश्री निर्मला जी की कविता फूल बनों में ...फूल के माध्यम से संदेश प्रेषित करने का प्रयास हुआ है । निरर्थक कूप मंडूक जैसे जीवन यापन करने से क्या लाभ I जीवन है तो कुछ सार्थक होने की दिशा में प्रयासरत रहना चाहिए । संसार को ही उन्होंने अपनी कविता में विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से संप्रेषित किया। यह एक अच्छी और सकारात्मकता से भरी कविता है I  

अंत में अध्यक्ष श्री अजय कुमार श्रीवास्तव  ‘विकल’ ने अपने विचार व्यक्त किये तदनुसार निर्मला जी की 'फूल बनो' कविता प्रेरणादायक है I इसमें कवयित्री मनुष्य को एक सार्थक एवं अर्थ पूर्ण जीवन जीने का संदेश देती है l जीवन ऐसा होना चाहिए जिसमें मानव कल्याण की भावना हो, हृदय पराये दुःख से द्रवित हो, मानव-संवेदना कूट-कूट कर भरी हो l निराशा और दुःख से भरे जीवन में आशा और विश्वास के अमृत का संचार करे l जीवन के कोमल पक्ष को उदघाटित करती यह कविता अत्यंत सार्थक और सारगर्भित है l

                                                           लेखकीय मन्तव्य

आप सभी की इतनी सुंदर व सारगर्भित प्रतिक्रियायें पाकर अभिभूत हूँ।आद. कौशांबरी जी,  नमिता जी, अशोक शर्मा जी, आलोक रावत जी, भूपेंद्र सिंह जी, आद. डॉ अर्चना प्रकाश जी, आद. शरदिंदु मुखर्जी जी, आद. मृगांक श्रीवास्तव जी, आद. कुंती मुकर्जी जी, आद. संध्या दी, आद. अंजना जी, आद. आभा खरे जी, आद. अजय श्रीवास्तव जी आप सभी ने अपनी सार्थक व उत्कृष्ट टिप्पणियों से कविता के भाव को और भी स्पष्ट कर दिया है। विशेषकर आद. गोपाल नारायन जी ने जितनी सूक्ष्मता से कविता के भाव को आत्मसात कर के उसकी विवेचना की है, वह बेजोड़ है । उनकी विवेचना ने कविता के सार को एकदम स्पष्ट कर दिया है । इतनी सुंदर बहुविधि व्याख्या के लिए आप सभी को सादर धन्यवाद एवं नमन I

 

( मौलिक / अप्रकाशित )

 

 

Views: 253

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
27 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
35 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Nov 18
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Nov 18

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service