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भारत ही नहीं विश्व पूजित है नाग-देवता - डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव

       

 

        भारतवर्ष में नाग-पंचमी एक महत्वपूर्ण लोक-पर्व है I पौराणिक मान्यता के अनुसार हमारी पृथ्वी सहस्रफणी शेषनाग अर्थात सर्पराज वासुकि के फन पर अवस्थित है I वासुकि को हम भगवान विष्णु की शैय्या के रूप मे भी जानते है I यह जब धरती सँभालने के लिए फन बदलते है तब धरती काँप उठती है, इसी को भूकंप कहते है I लोक विश्वास के अनुसार श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन सर्प किसी व्यक्ति को नहीं काटते I ब्रह्माजी ने इसी दिन मानव जाति को वरदान दिया था कि जो इस लोक में नाग पूजा करेगा या उनकी रक्षा करेगा उसको कालभय,  अकालमृत्यु,  विषजन्य,  सर्पदोष या कालसर्प दोष और सर्पदंश का भय नहीं रहेगा ।  आस्तिक मुनि ने भी पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी,  तभी नागपंचमी की यह तिथि नागों को अत्यंत प्रिय है ।  इसलिए इस दिन लोग निर्भय होकर किसी निभृत स्थान पर जहां सर्प के निवास की सम्भावना होती है,  जैसे  बाम्बी  या बांसो की जड़े, चंपा अथवा चन्दन आदि सुगन्धित पौधो व पेड़ो के पास दूध ,खीर अथवा लावा आदि सपात्र रखकर नाग देवता का स्मरण करते है और प्रार्थना करते है कि वे मनुष्य की पूजा एवं अर्चना को स्वीकार करे I ऐसा कर लोग उस स्थान से चले जाते है ताकि एकांत पाकर नाग देवता आये और पूजा स्वीकार करे I  कालांतर में जब व्यक्ति पात्र वापस लेने जाते है तो उन्हें पात्र प्रायशः खाली मिलते है तब उनमे यह विश्वास दृढ होता है की उनकी पूजा स्वीकार कर ली गयी है I जिनके पात्र खाली नहीं होते वह यह मानते है कि नागदेवता उनसे संतुष्ट नहीं है I उत्तर  भारत में नाग पंचमी के दिन मनसा देवी की पूजा करने का विधान भी है I देवी मनसा को नागों की देवी माना गया है, इसलिये बंगाल, उडीसा और अन्य क्षेत्रों में मनसा देवी के दर्शन व उपासना का कार्य किया जाता है I दक्षिण में इस दिन शुद्ध तेल से स्नान किया जाता है तथा वहां अविवाहित कन्याएं उपवास रख, मनोवांछित जीवन साथी की प्राप्ति की कामना करती है I किसी-किसी के तो कुल देवता ही नाग होते है I हिन्दू कायस्थों मे अठ्ठैसा खानदान के कुल देवता नाग ही है I पर अब नागर सभ्यता के विकास के साथ ही साथ लोग इन पुरानी मान्यताओं को भूलते जा रहे है I नाग-पंचमी के दिन नाग का दर्शन परम शुभ माना जाता है I इसीलिये लोक-भावनाओ का लाभ उठाने के लिए अनेक संपेरे नाग- पंचमी के दिन बीन बजाते हुए यत्र-तत्र विचरण किया करते है I इस दिन इनकी अच्छी कमाई हो जाती है I

 

        भारत में अनेक ऐसे स्थल भी है जहाँ नाग-पंचमी के दिन हजारो सर्प स्वतः प्रकट होकर मनुष्यों और उनके बच्चो के साथ खेलते रहते है I इन दो विरोधी जीवो का पारस्परिक सद्भाव और आमोद –प्रमोद देखकर  सहसा विश्वास करना कठिन हो जाता है कि ये आपस में सहज शत्रु है I  रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने कुरुक्षेत्र मे लिखा है –

         ‘जा भाग, मनुज के सहज शत्रु मित्रता न मेरी पा सकता I

         मै किसी हेतु भी यह कलंक अपने पर नहीं लगा सकता II’

     

        आश्चर्य की बात यह भी है कि वही सर्प अगले दिन खोजने पर भी नहीं मिलते I

       नागजाति का वैदिक युग में बहुत लंबा इतिहास रहा है I अनंत,  बासुकि,  शंख,  पद्म,  कंबल,  कर्कोटक,  अश्वतर,  घृतराष्ट,  शंखपाल,  कालिया,  तक्षक और पिंगल  भारत के प्राचीन प्रख्यात सर्पो के नाम है I सर्पो का विश्रुत इतिहास भारत से लेकर चीन तक फैला है । चीन में आज भी ड्रैगन यानी महानाग की पूजा होती है और उनका राष्ट्रीय चिन्ह भी यही ड्रैगन है । नाग पूजा केवल चीन या भारत में होत्ती हो ऐसी बात नहीं है  I विश्व के अनेक देशो में विधान-वैविध्य से इनकी पूजा होती है I दक्षिण अमेरिका के रेड इंडियन वर्ष में एक दिन सर्पो  की पूजा करते है I वे सर्पो के संभावित निवास स्थान के समीप जाकर चावल के दाने गिराते है I यह एक प्रकार का संकेत या निमंत्रण है, जिसके द्वारा सर्पो को पूजा-स्थल पर आने की सूचना दी जाती है I पर्व के दिन हजारो सर्प इस पत्थर के पास आकर एकत्र होते है I रेड इंडियन्स इनको निर्भय होकर पकड़ते है और उन्हें मक्के के दाने की बनी हुयी खीर खिलाते है I यह द्रश्य बड़ा ही रोमांचक एवं लुभावना होता है I हजारो नागो के बीच मनुष्य को हँसते-खेलते देखकर आश्चर्य होता है I सर्प भी नाना प्रकार के खेल दिखाते है, नृत्य करते है और फन लहराकर प्रेम प्रकट करते है I अमेरिका निवासी गोरी प्रजाति के लोग इस उत्सव में भाग नहीं लेते I किन्तु वे इस अद्भुत द्रश्य को देखने के लिए अपनी कारो या सवारी के अन्य साधनों से पूजा स्थल पर पहुँचते है और दिनमान इस द्रश्य का आनंद उठाते है I सूर्यास्त के बाद सभी सर्प अपने स्थान को चले जाते है I यह क्रम हजारो साल से यथावत  चला आ रहा है , किन्तु सर्पो से रेड इंडियंस को आज तक कोई छति नहीं हुयी है I

        नेपाल में नाग को वर्षा और समृद्धि का देवता माना जाता है । जापान में भी सर्प को वर्षा का देवता मानते हैं । अफ्रीका में तो नागपूजा की परंपरा आज भी विद्यमान है । पुराने जमाने में वहाँ नाग को प्रसन्न करने के लिए भेड़-बकरियों की बलि भी दी जाती थी। स्कॉटलैंड के अनेक प्राचीन स्मारकों में हमें सर्प की आकृतियां बनी हुई मिलती हैं । आयरलैंड में 17 मार्च को प्रति वर्ष संत-सर्प-दिवस मनाया जाता है । रोम में आज भी वर्ष में एक बार नाग पूजा का महोत्सव मनाया जाता है , जिसमें कुमारी कन्याएं सर्पों को जौ के आटे से बना केक खिलाती हैं । यदि सांप उस केक को खा ले तो इसे बड़े सौभाग्य का संकेत माना जाता है । मिस्र  में सर्पों की देवताओं के समान पूजा की जाती थी । वहाँ के मंदिरों की दीवारों पर नागों की आकृतियां अंकित की जाती थीं तथा कुछ विशेष प्रकार के सर्पों को उनकी मृत्यु के बाद उनकी ममी बना कर दफनाया भी जाता था। ' ईजो ' नामक नाग को तो वहां बुद्धि का देवता माना जाता था। नील नदी के रक्षक भी सर्प ही समझे जाते थे । इटली तथा सिसली में भी कुछ स्थानों पर नागपूजन किया जाता है । स्वीडन में  16 वीं शताब्दी तक नागों का गृह देवता के रूप में पूजन किया जाता था । अमेरिका में कोलंबस के समय नागपूजा प्रचलित थी । एक मान्यता के अनुसार अमेरिका के ओहियो नामक राज्य में नाग-संप्रदाय के लोग निवास करते थे । पोलैंड में भी प्राचीन काल में नागपूजा का त्यौहार राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता था। ऑस्ट्रेलिया में मान्यता है कि एक बड़े नाग ने जब अपनी पूंछ को झटका दिया , तभी इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई। भारत के समान ऑस्ट्रेलिया के धार्मिक ग्रंथों में ऐसा वर्णन है कि उसी बड़े नाग के हिलने-डुलने से भूकंप आते हैं। पुराने जमाने में वहां नाग की प्रतिमा पर हाथ रख कर शपथ लेने का भी रिवाज था। । श्रीलंका , कंबोडिया , जावा तथा फिजी आदि देशों में भी नागपूजा की काफी लंबी परंपरा रही है , जो संभवत: बौद्ध धर्म के साथ फैली।

        नागो के सम्बन्ध में सबसे रोचक घटना ग्रीक द्वीप सीफालोनिया के मार्कोपोलो एवं अर्जीनिया नामक गाँव के पास की है i यहाँ हाली स्नैक (Holy snake) नामक एक गिरिजाघर है I इसमें वर्जिन मेरी के दिन अर्थात 6 अगस्त को हजारो अनाहूत सर्प एकत्र होते है और गिरिजाघर में स्थित मूर्ति का दर्शन करते है I यह सभी सर्प मूर्ति के चरणों में दस दिन तक लोटते रहते है I पंद्रह अगस्त के दिन इनका अभियान पूरा होता है I इसके बाद वे यथा स्थान वापस चले जाते हैं I यह विलक्षण घटना भी प्रतिवर्ष नियमित रूप से घटित होती है I इस अवधि मे कोई  भी व्यक्ति गिरिजाघर में जाकर यह द्रश्य देख सकता है क्योंकि  वे सर्प आगंतुको की ओर जरा भी ध्यान न देकर अपने कार्य में संलग्न रहते है I वहां के लोगो ने इस घटना की फिल्मे भी तैयार की है ताकि जिज्ञासु लोग उन्हें देखकर सच्चाई स्वीकार कर सके I

        इसमें संदेह नहीं कि सर्पो का संसार विचित्र है और ये बड़े ही धर्म-प्रिय और ज्ञानी जीव है I दक्षिण भारत में सडको के किनारे लठ्ठवत पूँछ के बल खड़े होकर सूर्य की आराधना करते हुए इन्हें मैंने स्वयं देखा है और यह आराधना वे सूर्यमुखी फूल की तरह दिनमान सूर्य की ओर मुख रखते हुए करते है I इनके सम्बन्ध में अनेक कहानिया प्रसिद्ध है i सर्प कन्याओ तक की कल्पना है I ये बहुजीवी होते है और प्राचीन हो जाने पर उड़ते है , आदि अनेक किस्से है I किन्तु यह भी मनुष्य से डरते है और कभी आक्रमण की पहल नहीं करते I कभी -कभी अनजाने में यदि उनके शरीर का कोई हिस्सा मनुष्य के पैर आदि से दबता है तब वे प्रतिक्रिया स्वरुप दंशन करते है I यह मनुष्य ही है जो सर्प के नाम से भय खाता है i इसीलिये हम इन्हें काल-रज्जु भी कहते हैं I वैज्ञानिक कहते है कि दूध सर्प के लिए जहर है फिर वैदिक काल से इन्हें दूध और खीर खिलाने की परम्परा क्यों है यह प्रश्न ऊहात्मक है और इस पर व्यापक शोध व विचार की आवश्यकता है I

 

  

 

                                                                                                            ई एस -1/436, सीतापुर रोड योजना

                                                                                                              सेक्टर-ए, अलीगंज, लखनऊ I

                                                                                                              मो0   9795518586

 (मौलिक व अप्रकाशित )

 

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