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बेहद सकारात्मक विचारपरक रचना से शुरुआत huee है बधाई इमरान जी एक से बढ़कर एक शेर --
लाल परचम न लहू लाल बहाने के लिये,
आओ भूलों को यही बात बताई जाये.
सन्देश परक रचना के लिए साधुवाद !!
आओ बरसों से जली आग बुझाई जाये,
आओ नफरत की वो दीवार गिराई जाये
khubsurat
/लाल परचम न लहू लाल बहाने के लिये, आओ भूलों को यही बात बताई जाये/
बेहतरीन शेर. गिरह भी बखूबी लगाई गयी है. दाद कबूलें इमरान जी.
हद-ए-ज़वाल की सरहद से हम आगे ही सही,
आओ, के घर लौटके तारीख बनाई जाये.
बेहतरीन.... उम्दा शे ' र----- खुबसूरत आगाज़ के लिए सचमुच इमरान जी, आप बधाई के पात्र हैं.
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