अमावास की रात अब बहुत सुकून देती है
वो भी भादों की अमावास हो तो क्या कहने
उसके अलावा हर रात को
किसी न किसी पहर चाँद आ ही जाता है
वो चेहरा
जिस पर मै नाज़ करता था
जिसे मै बस अपना समझता था
दिख जाता है इस निशापति में
इसकी चांदनी
इसकी झलक
ठेल देती है मुझे अतीत में
जब मै अपने चाँद को
हाथों में लेकर
देखा करता था
अद्भुत सौंदर्यपूर्ण, दागरहित
लगता, इसी से सृष्टि दृष्टिगोचर है
एक पूरनमासी,
जो अँधेरा भर गयी मेरे जीवन में
चाँद मेरे सामने था, और भी चमकदार
किन्तु मेरी निशा काली, और भी काली
वो मेरी हथेलियों से छलक कर,
अन्य अंक का हो गया था
इस गुरुत्व प्रभाव से दृग समंदर में
ज्वारीय तूफ़ान उमड़ पड़ा था
चक्षुपट जब तक रोकें
झरना अपनी सरहदें छोड़ चुका था
मेरे लिए बची थी
उजली रात की काली रजनी
भादों की अमावास
Comment
बहुत खूब. बधाई.
चक्षुपट जब तक रोकें
झरना अपनी सरहदें छोड़ चुका था...
शानदार प्रस्तुति ,
thank you aadarniya mohinichordia ji.
बहुत मार्मिक रचना है आपकी
आदरणीय श्री Arun Kumar Pandey 'Abhinav' जी, एवं Veerendra Jain जी,
आहा ! आशीष जी यह नयी रचना आपकी रचनाधर्मिता की ऊँची उड़ान की परिचायक है और वो भी बहुत सशक्त !! हार्दिक बधाई इस शानदार प्रस्तुति के लिए !!
bahut hi badhiya rachna..ashish ji..bahut bahut badhai ..
आपका आभार आशीषजी. आपने जो बहुत मान दिया है.
धन्यवाद.
आदरणीय sanjiv verma 'salil' जी, आदरणीय Brij bhushan choubey जी, एवं आदरणीय Saurabh Pandey जी, आप लोगो को मेरी यह रचना अच्छी लगी यह जान कर मै बहुत खुश हूँ| एवं धन्यवाद देता हूँ|
आदरणीय Saurabh Pandey जी, आप का सुझाव अच्छा है, इस से थोडा सा अर्थ बदल रहा है जो की अच्छा ही है| मेरे लिखे का अर्थ पूरी दुनिया के लिए और आप के सुझाव का अर्थ मेरे लिए है| अच्छे सुझाव के लिए मै धन्यवाद देता हूँ|
//चक्षुपट जब तक रोकें
झरना अपनी सरहदें छोड़ चुका था
मेरे लिए बची थी
उजली रात की काली रजनी
भादों की अमावास//
इन पंक्तियों पर मेरी बधाइयाँ लें.
//लगता, इसी से सृष्टि दृष्टिगोचर है //
’इसी से’ की जगह ’इसी में’ क्या सर्वोचित न होगा ? देखियेगा.
इस परिमार्जन को सतत बनाये रखें. शुभेच्छा .. .
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