For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

---------------------------

           ग़ज़ल

---------------------------

कैसा      भाईचारा     जी

रख दो  माल  हमारा  जी .

 

दिल का क्या कहना मानें

दिल  तो  है  आवारा  जी  .

 

शीशा तोड़ा,  क्या तोड़ा ?

तोड़ो  तम की  कारा  जी .

 

माल  अकेले  गपक गये 

तुम  सारे  का  सारा  जी .

 

जाओ,  कूद पड़ो  रण में

दुश्मन ने  ललकारा  जी .

 

पेट भरेगा किस-किस का

सबका   पालनहारा   जी .

 

कोई     चिनगारी     ढूँढो

गहरा  है  अंधियारा   जी .

 

मैं  होता   तो   कर   देता

कब  का  वारा-न्यारा  जी .

 

किस  पर  जान  लुटायेंगे

कौन है  तुमसे  प्यारा जी .

अब अपना क्या परिचय दूँ

मैं   बे-घर   बनजारा   जी

 

         [[[[[[[]]]]]]]

 

š                   -- 'आकाश'

 

       [मौलिक/अप्रकाशित]

Views: 864

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 10, 2013 at 7:46pm

आदरणीय आकाश भार्इ जी, वाह..! बेहतरीन गजल हुर्इ है।  तहेदिल से बधार्इ स्वीकारें।   सादर,

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 10, 2013 at 7:23pm

मैं अन्तस्तल से आभारी हूँ सभी स्नेहिल मित्रों का, जिन्हें इस रचना में कुछ भी अच्छा लगा. आ० प्राची जी एवं ऐसे ही अन्य सुयोग्य श्रेष्ठ जनों का जितना आभार माना जाए, कम है. आप सभी श्रेष्ठ जनों की हार्दिक कामना रहती  है कि रचनाकार अपनी रचना को अच्छी तरह मांज ले, जिससे कोई बाहरवाला ऐसा-वैसा तथाकथित आलोचक ओबीओ के सदस्यों की रचनाओं पर उंगली न उठा सके...... और भाई वीनस जी, आपका  तो क्या कहना------ कितना समर्पित कर रखा है आपने स्वयम् को साहित्य के प्रति...... वाह !!! पुनः पुनः सभी का हार्दिक आभार !!!...... सीखना है... सीखते रहना है.... यही जीवन है.... अन्यथा दुनिया में कोई सम्पूर्ण है क्या ?

Comment by वेदिका on October 3, 2013 at 3:33am

शीशा तोड़ा,  क्या तोड़ा ?

तोड़ो  तम की  कारा  जी .,,, वाह !!

पूरी गज़ल प्रभावशाली है, दिली शुभकामनायें प्रेषित है!! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 3:09am

आदरणीय अजीत आकाश जी, आपकी इस मंच पर संलग्नता हम सभी को अभिभूत करती है. आपकी इस ग़ज़ल ने मोह लिया ! सही कहूँ, तो इस ग़ज़ल के बरअक्स आपे नये अंदाज़ से परिचय हुआ है. यह हमारे लिए उपलब्धि है.

पेट भरेगा किस-किस का

सबका   पालनहारा   जी .

वाह वाह !

दिल से दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय.

Comment by MAHIMA SHREE on October 1, 2013 at 10:47pm

शीशा तोड़ा,  क्या तोड़ा ?

तोड़ो  तम की  कारा  जी....वाह ..

 

पूरी की पूरी  ग़जल शानदार है आदरणीय .. आनंद आ गया .. बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 9:33pm

आदरणीय वीनस जी 

यदि मैंने 'ईता' गलत कह दिया है तो कृपया क्षमा कीजियेगा 

कृपया यदि मैं गलती कर रही हूँ तो अवश्य ही इता समझने के लिए मार्गदर्शन करें ... सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 1, 2013 at 9:23pm

वाह वाह आदरणीय बेहद खूबसूरत लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने सभी के सभी अशआर दिल को छू गए, दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by वीनस केसरी on October 1, 2013 at 9:18pm

वाह वा भाई जी
आपको मंच पर सक्रिय देख कर दिल को सुकून मिलाता है,

ग़ज़ल पर किन शब्दों में कहा जाए .....
एक से बढ़ कर एक धारदार शेर हुए हैं

मगर इन अशआर में तो व्यंग्य की धार ने दिल के टुकड़े टुकडे कर दिए ....

कैसा      भाईचारा     जी

रख दो  माल  हमारा  जी .
 

माल  अकेले  गपक गये 

तुम  सारे  का  सारा  जी .

 

मैं  होता   तो   कर   देता

कब  का  वारा-न्यारा  जी .

 

किस  पर  जान  लुटायेंगे

कौन है  तुमसे  प्यारा जी .

बेहद शानदार ,,,, एक एक शेर पर ढेरो दाद

आदरणीया डॉ. प्राची जी से निवेदन है कि कृपया आप स्पष्ट कर दें कि इस मतले में ईता दोष कैसे हो रहा है ...

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 1, 2013 at 8:56pm

आदरणीय अजीत भाई , बहुत सरल भाषा मे बहुत अच्छी बात कही है आपने बहुत बधाई !!! आदरणीया प्राची जी की प्रतिक्रिया को ज़रूर ध्यान दें !!!!! सुन्दर गज़ल के लिये आपको बहुत बधाई !!

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 1, 2013 at 7:25pm

साहित्य-प्रेमी बन्धुओ, ग़ज़ल में अगर ज़रा सा भी कुछ अच्छा लगा, तो ये मेरी हौसला अफज़ाई है. आ० प्राची जी, आप तोग़ज़ल को निर्दोष करके ही मानेँगीं. कितना शुक्रिया अदा करूँ..... अब आगे से ग़ज़ल को अच्छी  तरह जाँच -परखकर आगे  बढ़ाऊँगा. शिल्प के प्रति लापरवाही वाक़ई उचित नहीं.  क्षमा चाहता हूँ. फिलहाल [कोई चिनगारी  ढूँढो- संशोधित] कहकर  रदीफ़-ऐब से बचने का प्रयास कर रहा हूँ. शेष फिर ...हार्दिक हार्दिक आभार आदरणीय .....  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service