अभी कुछ दिनो पहले
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//हारना तो एक फूल और,
heart touching
संगीता जी, हमे कई बार लगता है के जैसे बचपन के बाद एक बच्चा हुमारे अंदर कहीं छुपा रहता है वैसे ही किशोरावस्था भी कहीं ना कहीं तो रह जाती है...और कभी कुछ जाना पहचाना सा दिख जाए तो हल्के से मुस्कुरा देती है और शायद कभी फिर 'गुलनार' भी हो जाती है. आपने वक़्त निकल कर हुमारी कविता पढ़ी, बहुत धन्यवाद.
अल्पना, ये वक़्त हम दोनो के लिए एक साथ आया था सो तुम सबसेअच्छा समझोगी. बहुत अच्छा लगा जान कर कि तुम्हे कविता पसंद आई.
किशोरावस्था का खेल ..जीत पर लाली का छाना ..और उसको सच मान लेना ... आज वक्त के साथ यथार्थ को भोगते हुए यह सब याद आना ... बहुत खूबसूरती से संजो दिया है आपने अपनी रचना में ..सुन्दर भावाभिव्यक्ति
haar jane pe... pure yakin se , phir ....phir se ek phool leker .......he love me... aane tak kosish kerte jana..... ye din aate to bahuton ki zindagi me honge.... per itni khubsurti se express ker pana........ bahut khub Aradhdna.
सतीश जी, आपकी सराहना के हम आभारी हैं, बहुत धन्यवाद
अभिनव अभिव्यक्ति
सौरभ जी, जीवन के बीते हुए पलों से हुमारा आज कभी अलग नही होता, कहीं ना कहीं उनकी छाप हमारे वर्तमान पर अंकित है. और कई बार हमें बहुत कुछ सीखा भी जाती हैं. आपकी सराहना के हम अभारी है.
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