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हल्द्वानी में आयोजित ओ बी ओ ’विचार गोष्ठी’ में प्रदत्त शीर्षक पर सदस्यों के विचार : अंक 7

अंक 6 पढने हेतु यहाँ क्लिक करें…….

आदरणीय साहित्यप्रेमी सुधीजनों,
सादर वंदे !

ओपन बुक्स ऑनलाइन यानि ओबीओ के साहित्य-सेवा जीवन के सफलतापूर्वक तीन वर्ष पूर्ण कर लेने के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड के हल्द्वानी स्थित एमआइईटी-कुमाऊँ के परिसर में दिनांक 15 जून 2013 को ओबीओ प्रबन्धन समिति द्वारा "ओ बी ओ विचार-गोष्ठी एवं कवि-सम्मेलन सह मुशायरा" का सफल आयोजन आदरणीय प्रधान संपादक श्री योगराज प्रभाकर जी की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ |

"ओ बी ओ विचार गोष्ठी" में सुश्री महिमाश्री जी, श्री अरुण निगम जी, श्रीमति गीतिका वेदिका जी,डॉ० नूतन डिमरी गैरोला जी, श्रीमति राजेश कुमारी जी, डॉ० प्राची सिंह जी, श्री रूप चन्द्र शास्त्री जी, श्री गणेश जी बागी जी , श्री योगराज प्रभाकर जी, श्री सुभाष वर्मा जी, आदि 10 वक्ताओं ने प्रदत्त शीर्षक’साहित्य में अंतर्जाल का योगदान’ पर अपने विचार व विषय के अनुरूप अपने अनुभव सभा में प्रस्तुत किये थे. तो आइये प्रत्येक सप्ताह जानते हैं एक-एक कर उन सभी सदस्यों के संक्षिप्त परिचय के साथ उनके विचार उन्हीं के शब्दों में...


इसी क्रम में आज प्रस्तुत हैं ओ बी ओ सदस्य डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....

परिचय :

नाम-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
पिता का नाम- श्री घासीराम आर्य
जन्म- 4 फरवरी, 1951 (नजीबाबाद, उत्तरप्रदेश)
पता - टनकपुर-रोड, ग्राम-अमाऊँ, डाकघर-खटीमा (ऊदमसिंहनगर) उत्तराखण्ड-262308 
ई-मेल- roopchandrashastri@gmail.com
फोन/फैक्स- (05943) 250129
दूर चलभाष- 9368499921,  9997996437
शिक्षा- एम.ए. (हिन्दी-संस्कृत), आयुर्वेद स्नातक 
व्यवसाय- आयुर्वेदिक चिकित्सा (वात व्याधियों में दक्षता), सदस्य-अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग, उत्तराखण्ड सरकार (सन्-2005 से 2008 तक), 1965 से अनवरत लेखन, बाल साहित्य में स्थापित नाम
प्रकाशित कृतियाँ - सुख का सूरज, धरा के रंग, नन्हें सुमन, हँसता गाता बचपन, अन्तर्जाल पर विभिन्न ब्लॉगों में 3000 से अधिक रचनाएँ; वेब पर सक्रियता- दो दर्जन से अधिक ब्लॉगों में लिखने का क्रम आज भी जारी
सम्मान- हिन्दी साहित्य परिकल्पना द्वारा वर्ष-2010 के उत्सवी गीतकार का सम्मान; तस्लीम परिकल्पना द्वारा वर्ष 2011 के सर्वश्रेष्ठ गीतकार का सम्मान; दर्जनों साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित 
पत्रकारिता- उत्तर उजाला, हिमालय टाइम्स तथा निजी पत्रिका “उच्चारण” का सम्पादन और प्रकाशन सन् 1996 से 2004 तक, 

श्री रूप चन्द्र शास्त्री मयंक जी का उद्बोधन :
================================
आज हल्द्वानी, उत्तराखंड में एक समागम अंतरजाल से जुड़े लोगों का सम्पन्न हो रहा है. आज की विचार गोष्ठी का विषय है “साहित्य में अंतरजाल का महत्व या योगदान’. इसके बारे में मैं ये कहना चाहता हूँ, कि अंतरजाल का योगदान क्या है. ये सबसे तेज है, त्वरित है और व्यापक मात्रा में है. और, दूसरा योगदान है, हम लोग जितने यहाँ बैठे हैं सब रचनाधर्मी हैं और मैं ये समझता हूँ कि हर व्यक्ति के मन में एक कवि छिपा है. वो अपनी रचना का कर्ता है. अपनी डायरी में बंद करके रख लेता है, लेकिन जो लोग अंतरजाल से जुड़े हैं, वो उस रचना को अंतरजाल के माध्यम से अपने ब्लॉग पर डाल देते हैं, और उसकी व्यापकता बढ़ जाती है, बहुत लोग उसको पढते हैं, दुनिया के लोग उसको पढते हैं. न केवल हिन्दी भाषी अपितु विदेशी लोग उसका अनुवाद कर उसके लिखे को पढते हैं. ये अंतरजाल का महत्व है साहित्य में.

मैं लगभग पैसठ वर्ष का हूँ. अंतरजाल से जुड़ा हूँ. बेटों नें सिखा दी थी ये विधा. लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं, जो अंतरजाल से जुड़े हुए नहीं है मेरी आयु में. आज कल की पीढ़ी में पच्यान्वे प्रतिशत लोग अंतरजाल से जुड़े हुए हैं, किसी न किसी रूप से जुड़े हुए हैं. अंतरजाल के बारे में एक दोहा अभी लिखा गया है - 
“सजा हुआ है पटल पर, सभी तरह का माल
ऋषि मुनियों से कम नहीं मित्रों अंतरजाल"

एक और बात मैं ये कहना चाहता हूँ, कि आज कल प्रकाशन इतना महँगा हो गया है कि हर व्यक्ति अफ़ोर्ड नहीं कर सकता है. पुस्तक छपवाना आज कल आसान काम नहीं है. ओबीओ बहुत अच्छा काम कर रहा है लोगों के लिए कि साहित्य में लेखन की नई-पुरानी विधाओं को सामने लाता है. मैंने पढ़ा है कि ये सीखने और सिखाने का माध्यम है ओपन बुक्स ऑनलाइन. अगर कोई अंतरजाल से जुड़ा है तो टंकण करके लिख सकता है. अपनी भावनाओं को पूरी दुनिया में प्रसारित कर सकता है. ये अंतरजाल का महत्व है साहित्य में.
यहाँ ओबीओ की बहुत बड़ा सहयोग मिलता है. जहाँ तक ब्लोगिंग का सम्बन्ध है, ब्लोगिंग भी बगैर अंतरजाल के संभव नहीं है. हम लोग ब्लॉग पर लिखते हैं, उसमें लिखना भी तभी संभव होगा जब हमारे पास इन्टरनेट है. बगैर इंटरनेट के ये संभव नहीं है. तो ये मुख्य महत्व है अंतरजाल का. ओबीओ यानी जीवन एक खुली किताब है, हमारे योगराज प्रभाकर जी बता रहे थे कि ओबीओ का अर्थ ही है कि जीवन एक खुली किताब है, जिसमें कोई छिपाव नहीं होना चाहिये, हर एक के सामने हमारे दिल की बात आनी चाहिये.
ओबीओ पर एक दोहा प्रस्तुत है - 
“जीवन खुली किताब है रखना हरदम याद
बंद कभी मत कीजिये करता हूँ फ़रियाद “

आप सबका स्वागत अभिनन्दन. दो मिनट में ही मैंने अपनी बात समाप्त कर दी और आयोजकों का धन्यवाद कि मुझे मौक़ा दिया यहाँ पर बोलने का. 
 
जय हिंद. जय भारत. जय उत्तराखंड

अगले सप्ताह अंक  8 में जानते हैं ओ बी ओ मुख्य प्रबंधक श्री गणेश जी बागी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....

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Comment

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Comment by Vindu Babu on September 19, 2013 at 10:32pm
आदरणीय मयंक सर को मेरा सादर अभिनन्दन!
इस रपट के माध्यम से हल्द्वानी न पहुंच पाने की कमी की पूर्ति हो रही है।
शुक्रिया एडमिन,इस तरह से संगोष्ठी में उपस्थित सुधी जनों से एक-एक कर के रूबरू कराने के लिए!
सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 19, 2013 at 10:41am

आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी के उद्बोधन को सुनने से मैं रह गया था.

ऐडमिन द्वारा हलद्वानी में आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं के उद्बोधनों का मय परिचय पुनर्प्रकाशन करना जहाँ उपस्थित सदस्यगणों के लिए सुखद स्मरण के पल उपलब्ध करा रहा है, वहीं मेरे जैसों के लिए जो यात्रा में हुए विलम्ब के कारण इन उद्बोधनों को सुन सकने से वंचित रह गये थे, महती कार्य कर रहा है.

आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी की साहित्य संलग्नता कइयों के दिशा-दर्शन का कारण बनती है. आपको आपके उद्बोधन के लिए सादर धन्यवाद.

Comment by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 9:54am

आ. डॉ मयंक जी के व्यवहारिक उद्बोधन की याद ताज़ा हुई , विमर्श की अपेक्षा करते विचार प्रभावित करते हैं | हम फिर मिलें और कालांतर में आये \ हुए परिवर्तनों पर चर्चा करें यही कामना है | एडमिन जी के प्रति आभार विचार क्रमवार शेयर करने के लिए !!

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