For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुस्ताख सवाल(लघुकथा)राहिला

स्वर्ग के प्रवेश द्वार के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगी हुई थीं ।तभी खुद से बहुत आगे आ़ला दर्ज़े के स्वर्ग वाली कतार में अपने खा़दिम को खड़ा देख, उनकी अना को जबरदस्त ठेस पहुंची।लेकिन ये वो जगह नहीं थी जहां किसी के मन में किसी प्रकार की शिकायत या सवाल रह जाये ।सो मन में सवाल का आना हुआ नहीं कि वहाँ के दो कर्मचारियों ने फौरन उसे कतार से उठा कर परमेश्वर के समक्ष ला खड़ा किया ।
"बोलो. .!हमारे न्याय पर तेरे मन में क्या सवाल खड़ा हुआ है? "
"प्रभु! समस्त जीवन मेरा दान, पुण्य,पूजा-पाठ में गुजरा । और वो जिसने शायद ही कभी कोई अनुष्ठान या सतकर्म किया हो,वो आ़ला दर्ज़े के स्वर्ग में, और मैं निचले. ..?"
"हां..,उसे ये मुकाम मिला, क्योंकि पूरे जीवन भर उसने क्षण भर के लिये भी किसी बात का फक्र(गर्व)या तकब्बुर(घमंड)नहीं किया।"
"फक्र और तकब्बुर? वो किस बात पर करता प्रभु? मेरा दिया खाया, मेरा दिया पहना और तो और जो कुछ भी उसके पास था सब कुछ मेरा दिया हुआ ही तो था । "कहते -कहते फितरतन उसके चेहरे पर तकब्बुर छा गया ।
"अच्छा...!तो तुझे किस बात का था? तूने भी तो मेरा दिया खाया, मेरा दिया पहना । यहाँ तक कि जो कुछ भी तेरे पास था सब कुछ मेरा दिया हुआ ही तो था ।"
इतना सुनना था कि गुस्ताख सवालों की सारी चर्बी पिघल गई ।
"अरे, अरे ये कहां लाकर खड़ा कर दिया ये तो वो कतार नहीं है।"
"जी..!ये वो कतार नहीं है, ये स्वर्ग का सबसे निचले दर्ज़े की कतार है।क्यों..?क्या फिर कोई और सवाल.. .?"
"नहीं, नहीं कोई सवाल नहीं।मैं यहीं ठीक हूं।"उसने घबरा कर पीछे देखा जहां से अगला मुकाम नरक नजर आ रहा था ।
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 963

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on May 22, 2016 at 1:32pm
बहुत, बहुत आभार आदरणीय परवेज साहब! सादर
Comment by Parvez khan on May 21, 2016 at 3:49pm
बहुत लजबाब तरीके से आपने समझाया बहुत सुन्दर आद.राहिला जी
Comment by Rahila on May 17, 2016 at 9:52am
बहुत शुक्रिया आदरणीय गोरखपुरी साहब! रचना आपको पसंद आई ।बहुत आभार ।सादर
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 16, 2016 at 10:24pm
वाह्ह्ह् क्या कहने...हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन..बेहतरीन लघुकथा बहुत बहुत मुबारकबाद आ.राहिला जी।
Comment by Rahila on May 15, 2016 at 10:46am
बहुत शुक्रिया आदरणीय सिद्दिकी साहब! आपको रचना पसंद आई, मेरा लेखन सार्थक हुआ । सादर
Comment by Rahila on May 15, 2016 at 10:43am
आदरणीय तेजवीर सर जी! आपकी उपस्थित का तो सदैव इंतेजार रहता है।आपकी टिप्पणी मेरे लिये बहुत मायने रखती है ।सादर नमन
Comment by Rahila on May 15, 2016 at 10:42am
बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील सर जी! आपकी प्रोत्साहित करती सुन्दर टिप्पणियाँ सदैव हौसला बढती है ।बहुत आभार ।सादर नमन
Comment by Rahila on May 15, 2016 at 10:40am
बहुत आभार आदरणीया मीना जी! आपको रचना पर उपस्थित पाकर बेहद खुशी हुई । सादर नमन
Comment by Rahila on May 15, 2016 at 10:38am
बहुत, बहुत शुक्रिया आदरणीय उस्मानी जी! आपने सबसे पहले इतने खूबसूरत लब्जों में रचना को सराहा और उसका मर्म समझा ,बहुत आभार ।सादर
Comment by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on May 15, 2016 at 7:54am

गुस्ताख सवाल , पढ़ी एक बार फिर आपने , एक ज़ोरदार पंच के साथ एक संदेस दिया है । वाक़ई अल्लाह हम सब को गुरूर और तकब्बुर से बचाए , आमीन वरना ज़रा सा किसी के साथ कुछ अच्छा कर देता है तो अपने आपको खुदा समझने लगता है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service